Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 99
________________ (पडिसाहर) विधि 3/1 सक आइण्णो (प्राइण्ण) 1/1 खिप्पमिव [(खिप्पं) + (इव)] खिप्पं (अ)=तुरन्त इव (अ)-जैसे पखलीणं (क्खलीण) 2/1. * वाच → वाचा → वाया। 99. अप्पा (अप्प) 1/1 खलु (अ)=निस्संदेह सययं (अ)=सदा रक्खि यन्वो (रक्ख) विधि-कृ 1/1 सविदिएहि [.(सव्व) + (इंदिएहिं)] [(सव्व) वि-(इंदिन) 3/2] सुसमाहिएहि (सु-समाहिर) 3/2 वि अरक्खिनो (अ-रक्खिन) 1/1 वि जाईपहं [(जाइ)-(पह) 2/1 उवेई (उवे) व 3/1 सक सुरक्खिनो (सुरक्खिन) 1/1 वि सव्वदुहाण [(सव्व)-(दुह)* 6/2] मुच्चइ (मुच्चइ) व कर्म 3/1 सक अनि * कभी-कभी तृतीया के स्थान पर षष्ठी का प्रयोग पाया जाता हैं। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-134)। • छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'इ' को 'इ' किया गया हैं। 100. दुल्लहा (दुल्लह) 1/2 वि उ (अ)-निस्सन्देह मुहा (अ)=किसी के लाभ के बिना दाई (दाइ) 1/2 वि जीवी (जीवि) 1/2 वि विं (अ)=भी दो (दो) 1/2 वि (अ)=ही गच्छति (गच्छ) व 3/2 सक सोग्गई (सोग्गइ) 2/1. चयनिका 1 | 77

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