Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 67
________________ वि किं (किं) 2/1 वि काही (काही) भवि 3/1 सक कि वा (अ) =कसे नाहिइ (ना) भवि 3/1 सक छेय* (छेय) मूल शब्द 2/1 पावगं (पावग) 2/1 • पिशलः प्राकृत भाषामों का व्याकरण, पृष्ठ 771 (अर्धमागधी में 'काही' भी होता है)। * किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा-शब्द काम में लाया का सकता है। (प्राकृत भाषानों का व्याकरण, पृष्ठ 517)। . सोच्चा (सोच्चा) संकृ अनि जाणइ (जाण) व 3/1 सक कल्लारणं (कल्लाण) 2/1 वि पावगं (पावग) 2/1 वि उभयं (उभय) 2/1 वि पि (अ)=भी जारई (जाण) व 3/1 सक जं (ज) 1/I सवि छेयं (छेय) 1/1 वि तं (त) 2/1 सवि समायरे* (समायर) विधि 3/1 सक • छन्द की माता की पूर्ति हेतु 'ई' को 'ई' किया गया है । * पिशलः प्राकृत भाषानों का व्याकरण, पृष्ठ 683 । 10. जो (ज) 1/1 सवि जीवे (जीव) 2/2 वि (अ)=भी न (अ)= नहीं याणति (याण) व 3/1 सक अजीवे (अजीव) 2/2 जीवाऽजीवे [(जीव) + (अजीवे)] [(जीव)-(अजीब) 2/1] अयाणतो (अयाण) वकृ 1/1 कह (अ)=कैसे सो (त) 1/1 सवि नाहिह (ना) भवि 3/1 सक संजमं (संजम) 2/1 11. जो (ज) 1/! सवि जीवे (जीव) 2/2 वि (अ) =भी वियाणति .. (वियाण) व 3/1 सक अजीवे (अजीव) 2/2 जीवाऽजीवे [(जीव) + (अजीवे)] [(जीव)-(अजीव) 2/2] वियाणंतो (वियाण) वकृ 1/1 सो (त) 1/1 सवि हु (अ)=निश्चय ही नाहिइ (ना) भवि 3/1 सकं संजमं (संजम) 2/1 चयनिका ] [ 45

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