Book Title: Aahar Aur Aarogya
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 43
________________ अनुकूल, रस-रक्त-ओज-तेज का निर्माण करने वाले सुपाच्य, हल्के और शुद्ध खाद्य पदार्थों का इतनी ही मात्रा में सेवन किया जाय, जिससे शरीर स्वस्थ रहे, मन निर्मल और बुद्धि स्फुरणशील । आत्मा में भी शुभ पवित्र करुणापूरित भावनाओं का संचार सहजतया होता रहे। __इन सब बातों को जैन आहार-जैन विधि से तैयार किया हुआ आहार, बहुत ही श्रेष्ठ रीति से पूर्ण करता है । जैन आहार-मीमांसा : जैन आहार की विशेषता दो प्रकार से है- आहार बनाने में भी और भोजन करने में भी। आहार जहाँ बनता है, उस स्थान का नाम है-रसोईघर । रसोईघर को ही किचिन कहते हैं, आधुनिक भाषा में । पहले रसोईघर ही भोजन बनाने और खाने का स्थान होता था, ये दोनों काम रसोईघर में

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