Book Title: Aahar Aur Aarogya
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 59
________________ (५७) हैं, उस समय विचार प्रसन्न या पवित्र न रहे, भावों में उत्तेजना या घबराहट हो, चंचलता या अस्थिरता हो तो भोजन का शरीर पर भी उचित प्रभाव नहीं पड़ता। २. थाली पर बैठते समय मन में विचार करें-इस समय कोई साधु-सन्त, त्यागी-व्रती या अतिथि आ जाय तो उसे आहार से प्रतिलाभित करके अपने इस अन्न को और जीवन को सफल बनाऊँ । भोजन के समय दूसरे को खिलाने व दान देने की भावना करने से भोजन का सात्विक आनंद दुगुना हो जाता है। ___ इस भावना से त्यागवृत्ति पैदा होगी, आहार के प्रति आसक्ति कम होगी और यदि संयोगवश कोई संत पधार गये तो भावना सफल होने से जो आत्मिक आनंद आपको उपलब्ध होगा, वह वर्णनातीत होगा, गूंगे केरी शर्करा, खाय-खाय मुस्काय । शालिभद्र,

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