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युगवीर-निबन्धावली
जो तीनों वर्णोंमेंसे किसी वर्गका धारक हो रूपवान हो, सम्यग्दृष्टि हो, पंच अणुव्रत का पालन करनेवाला हो, चतुर हो, शौचवान हो और विद्वान हो वह जिनदेवकी पूजा करनेके योग्य होता है । (परन्तु ) शूद्र, मिध्यादृष्टि, पापाचारमें प्रवीरण, नीचक्रिया तथा नीच कर्म करके प्राजत्रिका करनेवाला, रोगी अधिक अगवाला, अगहीन, अधिक लम्बे क़दका, बहुत छोटे कदका (वामना), भोला वा मूर्ख निद्रालु या आलसी, अतिवृद्ध बालक, प्रति लोभी दुष्टात्मा, प्रतिमानी, मायाचारी, अपवित्र, कुरूप और जिनसहिताको न जाननेवाला पूजन करनेके योग्य नही होता है । यदि निषिद्ध पुरुष भगवानका पूजन करे तो राजा मोर देशका तथा पूजन करनेवाले और करानेवाले दोनोका नाश होता है । इसलिये पूजन करानेवालेको य नके साथ जिनेन्द्रदेवका पूजक ऊपर कहे हुए गुरगोवाला ही ग्रहण करना चाहिये- दूसरा नही । यदि ऊपर कहे हुए गुरगोवाला पूजक इद्र समूहसे वदित श्रीजिनदेवके चररणकमलकी पूजा करे तो राजा, देश तथा पूजन करनेवाला और कराने वाला सब सुखके भागी होते हैं ।"
अब यहाँपर विचारणीय यह है कि, यह उपर्युक्त स्वरूप साधारण नित्यपूजकका है या ऊंचे दर्जेके नित्यपूजक्का अथवा पूजकाचार्यका है । साधारण नित्यपूजकका यह स्वरूप हो नही सकता, क्योकि ऐसा माननेपर आगमसे विरोधादिक समस्त वही दोष यहाँ मी पूर्ण रूपसे घटित होत है, जो कि धममग्रहश्रावकाचार और पूजासार में वर्णन किये हुए ऊंचे दर्जेके नित्यपूजकके स्वरूपको नित्यपूजक मात्रका स्वरूप स्वीकार करनेपर विस्तार के साथ ऊपर दिखलाये गये हैं। बल्कि इस स्वरूपमें कुछ बातें उससे भी अधिक हैं, जिनसे और भी अनेक प्रकारकी बाधाएं उपस्थित होती हैं और जो विस्तार - मवसे यहाँ नही लिवो जातो। इस स्वरूप के अनुसार जो जेमी रूपवान् नहीं है, विद्वान् नहीं है, चतुर नही है अर्थात् मोला वा मूर्ख है, जो जिनसंहिताको नही जानता, जिसका कद अधिक लम्बा