Book Title: Updesh Tarangini
Author(s): Ratnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek Samiti

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Page 195
________________ उपदेशतरंगिणी.. १७७ हवे ते तीर्थयात्रा नीचेप्रमाणे विधिपूर्वक करवी. एकाहारी नूमिसंस्तारकारी, .. पनयां चारी शुधसम्यकावधारी॥ यात्राकाले सर्वसञ्चितहारी, पुण्यात्मा स्याद् ब्रह्मचारी विवेकी ॥१॥ अर्थ- विवेकी एवो पुण्यशाली माणस यात्रा समये एक वखतज लोजन करनारो होय,' पृथ्वीपर संथारो करनारो होय, पगे चालनारो होय, शुद्ध सम्यक्त्वने धरनारो होय, सर्व प्रकारनां सचित्तोने परिहरनारो होय, तथा ब्रह्मचारी होय. आबुजी पासे रहेला उवर नामना गाममा रहेनार पारसशाहना पुत्र देशलशाहे चौद कोड सोनामोहोरो खरचीने शत्रुजय श्रादिक सात तीर्थोनी यात्रा करी जे. कडं ने के, श्रीदेशलः सुकृतपेशलवितकोटी श्चंचच्चतुर्दशजगजानितावदातः॥ · शत्रुजयप्रमुख विश्रुतसप्ततीर्थ यात्राश्चतुर्दश चकार महामहेन ॥१॥ वली तेज देशलशाहना वंशमां श्रएला लमशाह तथा वीजडशाहे विक्रम संवत १३५३नी सालमां विमलवसतिनो उद्धार कर्यो. सदा शुन्नध्यानमसारलक्ष्भ्याः , .. फलं चतुर्धा सुकृतातिरुच्चैः ॥ तीर्थोन्नतिस्तीर्थकृतां पदाप्ति गुणा हि यात्रामन्नवाः स्युरेते ॥१॥ अर्थ- हमेशां शुलध्यान, असार एवी लक्ष्मीनु फल, उंचेप्रकारे पुण्यनी प्राप्ति, तीर्थनी उन्नति, तथा तीर्थकरपदनी प्राप्ति , एटलां तीर्थयात्राथी श्रतां फलो जाणवां.

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