Book Title: Updesh Tarangini
Author(s): Ratnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek Samiti

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Page 206
________________ १ए उपदेशतरंगिणी. अतिनिर्मला विशाला, सकलजनानंदकारिणी प्रवरा॥ कीर्तिर्विद्या लक्ष्मी-धर्मेण विज़न्नते लोके ॥१॥ अर्थ- धर्मथी आ लोकमां अति निर्मल, विशाल, सघला लोकोने आनंद करनारी एवी कीर्ति, विद्या तथा लक्ष्मी फेलाय . कीर्ति लाग्यश्री मले ने, कां ने के, जे माणसने राजा सजनो तथा गुरु वखाणे , तेने उत्तम पुरुष जाणवो. वली जे माणसने लुच्चाउ, चारणो, तथा वेश्या वखाणे , तेने अधम पुरुष जाणवो. निर्मल ब्रह्मचर्यव्रत पालनारा स्थूलजजीनी, रामचंघजीना न्यायी राजनी, तेम श्री युगादि देवनी पण कीर्ति हजु विद्यमानज बे. विद्या पण पुण्यश्रीज मले जे. जेम श्रीबप्पनट्टीजी महाराज सातसो श्लोको हमेशां कंठे करता, वज्रस्वामीजीए पालणामां सुतां थकांज अग्यारे अंगोनो अभ्यास कर्यो हतो, उर्बलिका पुष्पमित्रमुनि हमेशां घृतादिक स्निग्ध पदार्थोनुं जोजन करता हता, उतां विद्याना अध्ययनना श्रमथी ते हमेशां . पुर्बलज रहेता हता; श्री सोमप्रनसूरिजीने एक गाथाना एकसो अर्थो करवानी शक्ति हती; देवसूरिजी महाराजनी वादलब्धि जगतमां प्रसिद्धज; हेमचंजाचार्यजीने व्याकरणादिक अनेकशास्त्रो रचवानी शक्ति हती. मलयगिरिजी तथा अजयदेवसूरिजी महाराजने अनेक सिद्धांतोपर टीका करवानी शक्ति हती. ते सघलो धर्मनोज प्रजाव हतो. वली लक्ष्मीपण पुण्यने अनुसरनारीज जे. जेम मुहणसिंह शेठ जगतमां सत्यवादी प्रसिघहता. एक दहाडो तेने जूटुं बोलाववा माटे बादशाहे सना समद पूज्यु के, तारा घरमां केटलुं अव्य ? त्यारे मुहणसिंह शेठे पोतानी सर्व देशावरोनी पेहेमीउँनुं सरवायुं वांची कह्यु के, मारा स्वाधिनमां चोर्यासी लाख सोनामोहोरो . ते सांजली संतुष्ट श्रएला बादशाहे तेने बीजी सोल लाख सोनामोहोरो आपीने तेने कोटीध्वज को. तथा मोटा उत्सवपूर्वक तेना घरपर तेणे को

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