Book Title: Ud Jare Panchi Mahavideh Mai
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Simandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ ते चारेय निक्षेपाओमां खरेखर उत्कृष्ट कोटीनी छे, माटे ज अप्राप्त परमतत्वनी प्राप्ति काजे भरतक्षेत्रनो भाविक भक्त घणी वार तलपापड बनतो होय छे. पण ए 'अप्राप्त' तो बीजी वार 'अप्राप्त'मां रहेलु छे, केमके अप्राप्त छे 'साक्षान् अरिहंत परमात्मा' अने ए पाछा वसे छे अप्राप्त एवा महाविदेहनी मांह्य महाविदेह छे अत्यंत दूर, एवी मुसाफरी छे जोखमोथी भरपूर पण भक्त तो बनेलो छे भगवंतना विरहमां चकचूर. सतीशिरोमणि सत्यकीना नंदनने ए नयणे निहाळी भले न शके पण अना मनमंदिरमां पधारवा तेडु शाने न आपी शके. ओ सत्यकी राणीना नंद ! अमारा मनमंदिरमा अक वार पधारी आप अमने आपो आनंद. ओ राजवी शिरोमणि श्री श्रेयांस महाराजाना कुल गगनमां चांद समान ! मनमंदिरमां पधारतां अमे आपनुं करीशु अनेरु बहुमान. आप तो मान-अपमानथी रहित छो, पण ओ देवाधिदेव स्वामिसीमंधर ! छतां अमे तो अमारा भावना झराने ए रीते सफळ करशुं ज खरेखर......" अमारा देशमां आपना जेवा ज्ञानी-केवलज्ञानीओनो विरह छे हडहडतो, अमने अमारी मुशीबतोमांथी माग नथी ज जडतो. जुओ : आ सेवकनो चहेरो छे रडतो, अने आप केम अम राखो छो रडतो ?" "मेरुगिरि लेखिणी आभ कागळ करूं, क्षीर सागर तणां दूध खडिया भीं; तुम्ह मिळवातणा स्वामी ! संदेशडा, इंद्र पण लिखीय न शके अछे एवडा......" बीजा विहरमाण विश्वाधार विभुओ आपनाथीय आगळ छे, भक्त तो 'सीमन्धर' मां पागल छे. "दया करो देव ! मारी स्वीकारोने सेव..." भक्तने तो प्रभुनु 'नयन प्रत्यक्ष'-साक्षात् दर्शन जोई छे, जाणे के, पोते भरतक्षेत्रने विकराळ पचभकाळनो, बाह्य अने अभ्यंतर उभय रीते For Private And Personal Use Only

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