Book Title: Ud Jare Panchi Mahavideh Mai
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Simandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
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आवी विकट परिस्थितिने ध्यानमा लइ घणा भक्तवर्यो तोरजनीना राजा श्री चंद्र जोडे ज पोताना प्राणाधार प्रभुने प्रेमभर्यो संदेशो पाठव्यो :
"कहेजो वंदन जाय दधिसुत ! कहेजो, महाविदेहमा स्वामी मेरो जय जय त्रिभुवनराय दधिसुत."
-न्यायसागरजी "सणो चंदाजी ! सीमन्धर परमातम पासे जाजो, मुज विनतडी, प्रेम धरीने अणी पेरे तुम संभळावजो."
-श्री पद्मविजयजी "चंद्र देवता ! एक हमारी अरज चितमे घरनाजी, मीमंधर जिनबरको वंदन खूब विदित तुम करनाजी' ।
(लेखक पोते) आम छतां चंद्रदेवता प्रभुने प्रेमभर्यो संदेशो पाठवे एनी खातरी शी? अटले केटलाक भक्तोमे तो प्रभु साक्षात न मळे तो कांई नहि पण सर्व रीते तेमना अर्थ शणगारेला पोताना मनमंदिर मां तो अवश्य पधारवा विनंती करी.
"मनमंदिर मोरे आवीए, श्री सीमंधर भगवंत रे, करुणाकर ठाकुर माहरा, भयभंजन तु भगवंत रे
मनमंदिर मोरे आवीए."
-नयविमळजी पण मेक भक्तकवि तो एमनाथीय चार डगला आगळ वधो गया अने खुद प्रभुने साक्षात् भरतक्षेत्रमा ज पधारी जवा तेमज तेओश्री अहीं पधारता पोताने सर्वसंगनो त्याग करी ए 'सत्यकी सुत' स्वामीना चरणकमळमां सर्वविरति चारित्र लेवानु पण विनंतिना रूपमा जणाव्यु .
"श्री सीमंधर जग घणी, आ भरते आवो; करुणावंत करुणो करी अमने वंदावो."
-कविवर्य श्री भाण
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