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तिलकमंजरी का साहित्यिक अध्ययन
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है।1 गाढपदबन्धता को ओज कहा गया है ।2 मम्मट ने भी ओज के प्रकाशक वर्णों से युक्त वृत्ति को परूषा कहा है । धनपाल ने गौडी रीति का प्रयोग विकट प्रसंगों के वर्णन में ही किया है ।
साहित्यशास्त्र के अनुसार गद्य के चार प्रकार हैं-मुक्तक, वृत्तगन्धि, उत्कलिकाप्राय तथा चूर्णक । मुक्तक गद्य समास रहित होता है, वृत्तगन्धि में पद्य का अंश होता है. उत्कलिकाप्राय दीर्घ समासों से मण्डित होता है तथा छोटे-छोटे समासों वाला गद्य चूर्णक कहलाता है। उत्कलिका गद्य शैली को तण्डक भी कहा जाता था एवं समासरहित मुक्तक शैली को आविद्ध भी कहा जाता था । तिलकमंजरी में यद्यपि चारों प्रकार का गद्य प्रयुक्त हुआ है, किन्तु धनपाल ने प्राय: चूर्णक अर्थात् छोटे-छोटे समासों वाली गद्य शैली का ही अधिक उपयोग किया है । नीचे इन सभी शैलियों को उदाहृत किया जाता है।
मुक्तक-यह गद्य समास रहित होता है. जहां भी तिलकमंजरी में संवादतत्व की प्रधानता है अथवा भावतत्व की प्रधानता है, वहां यह शैली पायी जाती है । धनपाल ने संवादों में समासरहित सरल भाषा का प्रयोग किया है यथा वेताल तथा मेघवाहन, लक्ष्मी तथा मेघवाहन एवं मलयसुन्दरी तथा विचित्रवीर्य के संवाद। यथा
(1) नरेन्द्र, न वयं पक्षिणः न पशवः न मनुष्याः । कथं फलानि मूलान्यन्नं चाहरामः । क्षपाचराः खलु वयम्
__ -पृ. 50-51 (2) इदं राज्यम्, एषा में पृथ्वी, एतानि वसूनि, असो हस्त्यश्वरथपदाति प्रायो बाह्य परिच्छदः, इदं शरीरम्
-पृ. 26
1. ओज : कान्तिमती गोडीया माधुर्य सौकुमार्योरभावात् समासबहुला अत्युल्वणपदा च ।
- वामन, काव्यालंकारसूत्रवृत्ति, 1/2/12 2. गाढपदबन्धत्वभोजः
-वही, 3/1/5 3. ओजः प्रकाशकैस्तैस्तु परूषा
--मम्मट, काव्यप्रकाश, 9/80 वृत्तगन्धोज्झितं गद्य मुक्तकं वृत्तगन्धि च । मवेदुत्कलिकाप्रायं चूर्णकं च चतुर्विधम् ।। आद्य समासरहितं वृत्तभागयुतं परम् । अन्य दीर्घसमासाढ्यं तुर्य चःल्पसमासकम् ।।
-विश्वनाथ, साहित्यदर्पण, 6/330-32 5. अग्रवाल वासुदेवशरण, कादम्बरी : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ 15 6. वही, हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ. 4