Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
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रूप है एवं सम्यग्दृष्टि सद्द्रव्य स्वरूप है । केवली सद्द्रव्य रूप होने से उन्हें सम्यग्दृष्टि कह सकते हैं किन्तु उन्हें सम्यग्दर्शनी नहीं कह सकते, क्योंकि उनमें अपाय का योग नहीं पाया जाता ।
(४) स्पर्शन
* प्रश्न - सम्यग्दर्शन कितने स्थान का स्पर्श करता है ?
उत्तर - सम्यग्दर्शन लोक के प्रसंख्यातवें भाग का ही स्पर्श करता है, किन्तु सम्यग्दृष्टि सम्पूर्ण लोक का स्पर्श करता है । इस विषय का स्पष्टीकरण करते हुए कहा है कि- सम्यग्दर्शनवन्त जीव-प्रात्मा जघन्य से लोक के असंख्यातवें भाग को ही स्पर्श करता है तथा उत्कृष्ट से एक जीव- श्राश्रयी या अनेक जीवों से प्राश्रयी चौदह रज्जुप्रमाण लोक के कुछ न्यून आठ भाग को स्पर्श करता है । यह माप घनक्षेत्र की अपेक्षा है । सूचिक्षेत्र की अपेक्षा से तो एक जीव-प्राश्रयी के प्राठ राजलोक और अनेक जीव श्राश्रयी के बारह राजलोक की स्पर्शना होती है । केवली समुद्घात की अपेक्षा से तो सम्पूर्ण चौदह राजलोक की स्पर्शना प्रतिपादित की है। क्षेत्र और स्पर्शना में भेद के सम्बन्ध में भी कहा है कि केवल वर्त्तमानकाल आश्रयी क्षेत्र की विचारणा करने में आती है और स्पर्शना की विचारणा तीन काल श्राश्रयी करने में प्राती है । क्षेत्र और स्पर्शना में यह भेद काल की अपेक्षा माना गया है ।
(५) काल
* प्रश्न - - सम्यग्दर्शन कितने काल तक रहता है ?
उत्तर-- एक जीव की अपेक्षा सम्यग्दर्शन का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त्त मात्र है और उत्कृष्ट काल कुछ अधिक छयासठ सागरोपम का है तथा अनेक जीवों की अपेक्षा सम्यग्दर्शन का सर्व काल है । अर्थात् सम्यग्दर्शन सर्वदा विद्यमान है – विश्व में कोई भी समय ऐसा भूतकाल में नहीं था, वर्तमानकाल में नहीं है और भविष्यकाल में नहीं होगा कि जब किसी भी जीव- श्रात्मा में सम्यग्दर्शन न रहा हो
या न पाया जाय ।
(६) अन्तर
* प्रश्न -- सम्यग्दर्शन का विरहकाल कितना है ?
उत्तर -- सम्यग्दर्शन का एक जीव आत्मा की अपेक्षा जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त तक विरह होता है तथा उत्कृष्ट से देशोन अर्धपुद्गल परावर्त्तं पर्यन्त सम्यग्दर्शन का विरह होता है । अनेक जीवों की अपेक्षा से सम्यग्दर्शन का अन्तर काल होता ही नहीं है अर्थात् - सम्यग्दर्शन का विरहका कभी होता ही नहीं ।
(७) भाव
* प्रश्न - प्रपशमिकादिक पाँच भावों में से सम्यग्दर्शन को कौन-सा भाव समझना ?
उत्तर - प्रौदयिक भाव और पारिणामिक भाव इन दोनों को छोड़कर शेष तीनों (श्रौपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक) ही भावों में सम्यग्दर्शन रहता है । अर्थात् - प्रपशमिक सम्यग्दर्शन श्रपशमिक भाव में, क्षायिक सम्यग्दर्शन क्षायिक भाव में और क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन क्षायोप