Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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सम्बन्धकारिका-६
अर्थ : वे भगवान शुभसार (शरीर की स्थिरता की कारणभूत शक्ति) उत्तम सत्त्व, श्रेष्ठ संघयण, लोकोत्तर वीर्य, अनुपम माहात्म्य, अद्भुत रूप और दाक्षिण्य इत्यादि विशिष्ट गुणों से
कत थे। अतएव शक्रेन्द्रादि देवों ने इन गुणों को देखकर लोक में उनका नाम महावीर प्रसिद्ध किया था॥ १३ ॥ हिन्दी पद्यानुवाद : • बल-वीर्य-प्रभुता-रूप-गुण, माहात्म्य और सात्त्विकता ,
शुभ सार सारे दृढ़ वपु में अतिवीर्यशाली दन्यता। इन गुणों को देख कर इन्द्र नाम महावीर दिया , गुणनिष्पन्न नाम ये ही, प्रसिद्ध विश्व में हुआ।
श्री महावीर प्रभु की दीक्षा और तपश्चर्या स्वयमेव बुद्धतत्त्वः सत्त्वहिताभ्युद्यताचलितसत्त्वः ।
अभिनन्दितशुभसत्त्वः सेन्द्रलॊकान्तिकर्देवैः ॥ १४ ॥ टोका : स्वयमेव तत्त्वस्य ज्ञाता प्राणीनां हिताय तत्परः प्रथमसत्त्ववान् तथा इन्द्रसहितैर्लोकान्तिकदेवैरभिनन्दिताः (प्रशंसिताः) सन्ति शुभसत्त्वगुणा यस्य तादृशः प्रभुरस्ति ॥ १४ ॥
___ अर्थ : श्री तीर्थंकर भगवान स्वयंबुद्ध होते हैं, उनका निश्चल सत्त्व-पराक्रम अन्य जीवों का हित-कल्याण करने के लिए सर्वदा उद्यत रहा करता है। अतः उनके शुभसत्त्व—पराक्रम की अर्थात् शुभभावों की देवेन्द्रों व लोकान्तिक देवों ने भी प्रशंसा की थी॥ १४ ॥ हिन्दी पद्यानुवाद : • तजा संसार के सुख को, प्रभु ने तीस की वय में ,
ग्रही वैराग्यवृत्ति तब लोकान्तिक देव आ प्रणमे । जीव मात्र के हित अय प्रभो! स्थापिये धर्मतीर्थ को ,
देकर वार्षिकदान फिर, स्वयं साधना परमार्थ को। जन्मजरामरणातं जगदशरणमभिसमीक्ष्य निःसारम् ।
स्फीतमपहाय राज्यं शमाय धीमान् प्रवद्वाज ॥ १५ ॥ टीका : जन्मजरामरणः पीडितं विश्वमशरणमसारं दृष्ट्वा, विशालं राज्यं परित्यज्य, समतायै (कर्मणो विनाशाय) बुद्धिमान् , एतादृशो महावीरो देवः दीक्षां जग्राह ।। १५ ॥
अर्थ : नाना गुणों से युक्त प्रभु महावीर ने इस संसार को जन्म-जरा और मृत्यु की पीड़ाओं से व्याप्त तथा अशरण और असार जानकर, अपनी आत्मा में परम शान्ति और मोक्ष का शाश्वत सुख पाने के लिए राज्यवैभव को त्याग कर उत्तम संयम-चारित्र को ग्रहण किया अर्थात् दीक्षा स्वीकार कर भगवान महावीर प्रवजित हुए॥ १५ ॥