Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 23
________________ श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ९।१ गुप्ति एवं समिति के बिना संयम-चारित्र नहीं हो पाता तथा ग्रहण किए हुए चारित्र-संयम के रक्षण-पोषण भी सम्भव नहीं हो पाते। अत: ये संयम की सबल आराधना में प्रमुख कारण है। अतएव 'अष्टप्रवचनमाता' अन्वर्थनाम से शाद्धकारों ने महिमाण्डित किया है॥८-५॥ * धर्मस्य वर्णनम् * ॐ सूत्रम् - उत्तमक्षमामार्दवाऽऽर्जव-शौच-सत्य-संयम-तपस्यागाऽ-किन्चिन्य ब्रह्मचर्याणि धर्मः॥६-६॥ 卐 सुबोधिका टीका ॥ उत्तमेति। उत्तमपदेन क्षमादीनां दशविध धर्माणां साधुधर्म प्रसङ्गे उत्कृष्टत्वं द्योत्यते। उत्कृष्टक्षमामार्दवार्जवादिधर्माः पन्च महाव्रत धारिणां कृते एव सन्ति। गृहस्थधर्मावलम्बिनामणुव्रत धारिणां विषये तु एतेषां जघन्यत्वमेव संसूच्यते। अर्थात् श्रावकाणां श्रविकाणां च विषये क्षमादिधर्मा जघन्यप्रकारका भावन्ति। क्षमादिगुणसाधनैरेवक्रोधादिकषायाणमुपशमनं भवति। एतावताक्षमामार्दवादयोऽपि संवरोपाया एव सन्तीति ज्ञेयम्। क्षमा तावत् सहिष्णुता क्रोधनिग्रहस्वरूपा भवति। मृदोभाव: कर्म वा मार्दवम्-। आर्जवम्- ऋजोः भाव: सरलतेति पर्याय:। शौचम्-शुद्धिः आध्यामिक शुद्धिरिति यावत् । शास्त्रसम्मतं यथार्थवचनं सत्यम् । मानसिक-वाचिक-कायिक-त्रिकरणैर्विषय योगनिग्रहः संयमः। सामान्यत: संयमस्य सप्तदशभेदाः। तापयतीति तप:- कर्मकषायान् संताप्यात्मविशुद्धि तनोतीति तपः। बाह्याभ्यन्तर शुद्धि पूर्वकं योग्यपात्रेभ्य: सद्गुण ज्ञानादिप्रदानं त्याकधर्मः। अनासक्तिराकिव्यन्यम् । मैथुनवृत्तित्यागपूर्वकं ब्रह्मणि आत्मनि चरणं-ब्रह्मचर्यम्। * सूत्रार्थ - क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिञ्चन्य तथा ब्रह्मचर्य-यह दशविध धर्म उत्तम है। * विवेचनामृत * उत्कृष्ट क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग आकिन्चन्य तथा, ब्रह्मचर्ययह दश प्रकार का यति (मुनि) धर्म है। व्रतधारियों के दो भेद है- सागार (साधुधर्म), गृहस्थधर्म तथा अनगार (साधुधर्म) प्रस्तुत सूत्र में उत्तम पद द्वारा यह द्योतिक किया गया है कि उत्तम क्षमा आदि दशविध धर्म साधु-साध्वियों के ही हैं क्योंकि उत्कृष्ट क्षमा आदि दशविध धर्म अनगार(साधु-साध्वी) के ही होते है। गृहस्थ श्रावक-श्राविकाओं के सन्दर्भ में क्षमा आदि धर्म जघन्य प्रकारक होता है।

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