Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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९।१ ]
श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे ध्यानाग्नि दग्धकर्मा तु,
सिद्धात्मा स्यान्निरञ्जनः। अर्थात, ध्यान रूपी अग्नि के द्वारा आत्मा, कर्म रूपी काष्ठ को जलाकर भस्म कर देता है तथा अपना शुद्ध-बुद्ध-सिद्ध निरंजन स्वरूप प्राप्त कर लेता है।
शान्ति एवं समाधि की कामना रखने वाले व्यक्ति को अतिरौद्रध्यान का परित्याग करके सदैव धर्म एवं शुक्लध्यान करना चाहिए। वस्तुत: ये दो ही ध्यान तप-स्वरूप है। भगवान् महावीर स्वामी ने कहा है
अट्ट रूहाणि वजित्ता, झाएजा सुसमाहिए।
धम्म सुक्काई झाणाई झाण तं तु बुहा वए॥ जैनागमों में धर्म ध्यान के चार प्रकार भी बताए गए हैं
धम्मे झाणे चउब्विहे-पण्णत्ते तं जहा
आणा विजए, अवाए विजए, विवागविजए, संठाण विजए॥
१. आज्ञाविचय - विचय का अर्थ है- निर्णय या विचार करना। आज्ञा के सम्बन्ध में चिन्तन-आज्ञाविचय कहलाता है।
आज्ञा किसकी? के समाधान में कहा गया है कि उसकी आज्ञा मान्य होती है, जो आप्तपुरुष हो, वीतराग हो। आज्ञा ही वस्तुत: धर्म है। कहा भी है
आणाए मामगं धम्म' जो धर्म है, वही वीतराग की आज्ञा है, और जो उनकी आज्ञा है, वही धर्म है। आज्ञा में तप एवं संयम दोनों समाहित हैं
आणा तवो आणाइ संजमो २. अपाय विचय - अपाय का यहाँ अर्थ है- दोष/दुगुर्ण। आत्मा के साथ अनादि काल से मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय एवं अशुभ योग-रूपी दोष जुड़े हैं। इन दोषों के कारण ही आत्मा
१. योगशास्त्र (श्री हेमचन्द्राचार्य) २. दशवैकालिक अ.१ ३. भगवती सूत्र २५/७, स्थानांना-४/१ ४. आचारांग - ६/२ ५. सम्बोधसत्तरि ३२