Book Title: Swarshastra
Author(s): Vadilal Motilal Shah
Publisher: Vadilal Motilal Shah

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Page 27
________________ (२७) मरणनां चिन्ह. पखवाडीभा, महीना के वर्षनो शरुआतमा सुज्ञ मनुष्ये प्राणनी गति वगेर उपरथी सरणकाळनो निश्चय करवो. आ पांच तत्वोना दीवानुं तेल चंद्रमाथी आवे छे, माटे सूर्यना बळमाथी तेर्नु रक्षण करवु जोइए. तेथी जींदगी लांबी थशे. स्वर उपर पूर्ण विजय मेळवीने जो सूर्यस्वरने दाबमा राखवामा आवे, अर्थात सूर्यस्वर जेम ओछो चहे तेम वर्तवामां आवे तो जींदगी लंबाय छे. शरीररुपी कमळोने अमृत सिंचतो चंद्र स्वर्गमाथी उतरे छे. सारां कामो करवानो अभ्यास पाडवाथी अने योगथी चंद्रना अमृतघडे मनुष्य अमर बने छे. दिवसनी अंदर चंद्ररवर वहेवा दो, अने रात्रिनी अंदर सूर्यस्वर चहेया दो. आ प्रमाणे जे दिन रात करी शके छे ते खरेखरो योगी छे. .. जो एक आखो दिवस अने एक आखी रात एकज नळीमा प्राण चाल्यां करे, तो व्रण वर्षमा मनुष्यर्नु मरण थाय. .. वे आखा दिवस भने बे आखी रात्रि सुधी पिंगला नाडी ( सूर्य स्वर ) चालु रहे तो तत्वना जाणकार कहे छे के ते मनुष्यने माटे हवे बे वर्ष बाकी छे.. जो आखी रात चंद्रस्वर वहे अने आखो दिवस सूर्यस्वर बहे तो तेनुं मरण जरुर छ मासनी अंदर आवे. जो सूर्यस्वरज चाल्यां करे अने चंद्ररवर तद्दन बंध थइ जाय तो . ते माणस पंदर दिवसमा मृत्यु पामे. ए प्रमाणे काळशास्त्र अगावे छे. . जेनी एक नासिकामांथो त्रग रात लागलागट प्राग चाल्या करे ते फकत एकज वर्ष जीवी शके; ए प्रमाणे आ शास्त्रना जाणकारो जगावे छे. . * मनुष्ये मरण काळ जाणघो अहरनो छ, कारण के मरण का पासे भाग्यो जागी मनुष्य यथाशक्ति धर्मध्यान करी शके. Scanned by CamScanner

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