Book Title: Swarshastra
Author(s): Vadilal Motilal Shah
Publisher: Vadilal Motilal Shah
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(३०)
अरुन्धती एटले जीभ, ध्रुव एटले नाकनी अणी, विष्णुपद एटले भव, अने मातृमंडळ एटले आंखनी कीकी आ ते न जोइ शके.
जे मनुष्य भव जोइ शकतो नथी, ते नव दिवसमां मरण पामे छे; जे आंखनी कीकी जोइ शकतो नथी, ते पांच दिवसमा मरण
पामे छे;
त्रण दिवसमा मरण
अने जे जीभ जोइ शकतो नथी ते एक दिवसमां मरण पामे छे. आंखने नाक तरफ दाबीने लेइ जवाथी आंखनी कोकी जोवाय छे.
नाडीओ.
जे नाकनो अग्र भाग जोइ शकतो नथी,
पामे छे;
इने गंगा कहे छे, पिंगलाने जमुना कहे छे, अनें सुषुम्णाने सरस्वती कहे छे; आ त्रणेनुं संगमस्थान ते प्रयाग छे.
योगीए पद्मासन स्थितिमां बेसीने प्राणायाम करवा.
शरीर उपर निग्रह मेळवावा सारु योगीए पूरक, रेचक अने कुंभक क्रिया जाणवी जोइए.
पूरकने लीधे वृद्धि अने पोषण थाय छे; अने वात, कफ अने पित्त शांत थाय छे. कुंभकने लीधे शरीरनी स्थिरता वधे छे, अने आयुष्य लंबा छे. रेचक संघळां पापाने हरे छे. जे आ प्रमाणे करें छे ते योगावस्था प्राप्त करे छे.
मी नासिकाथी श्वास अंदर खेचवो, अने जेटलीवार सुधी ते अंदर रही शके तेलीवार सुधी प्राणने अंदर रोकवो अने पछी डाबी नासिका वंडे ते बहार काठवो. बीजीवार डाबी नासिकाथी श्वास अंदर लेइ जमगी नासिकाथी व्हार काडवो. श्वास अंदर चबो ते क्रियाने पूरक कहे छे, अंदर राखी मूकवानी क्रियाने कुंभक कहे छे अने बहार
पाछो काढवानी क्रियाने रेचक कहे छे.
चंद्र सूर्यने पीए छे, अने सूर्य चंद्रने पीए छे, एक बीजार्नु उपर प्रमाणे पान कराववाथी ज्यां सुधी चंद्र के तारा चाले त्यां सुधी मनुष्य जीवी शके.
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