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नो भावार्थ उपरोक्त छे. आवी माधान-कथंचित् एकपणुं अने का अनकपणु छे. कयुं छे के
श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥६३॥
न विसेसत्थंतरभूय-मस्थि सामन्नमाह ववहारो। उवलंभव्ववहारा-भावाओ खरविसाणं व ॥१२३॥
आ गाथानो भावार्थ उपरोक्त छे. आवी रीते आत्मादि पदार्थोनुं अनेकपणुं ज छे. शंका-बन्ने पक्षमा पण युक्तिओनो संभव होवाथी कयु तत्व स्वीकारवू जोइए ? समाधान-कथंचित् एकपणुं अने कथंचित् अनेकपणुं छे. ते आ प्रमाणे-वस्तुनुं समविषमपणुं होबाथी समरूपनी अपेक्षाए एकपणुं छे, अने विषमरूपनी अपेक्षाए तो अनेकपणुं छे. का छे के-"वस्तुनो ज जे समान परिणाम छे ते ज सामान्य छे अने वस्तुना जे विषम परिणाम छे तेज विशेषो छे; तेथी वस्तु एकरूप अने अनेकरूप छे."
१. स्थाना
ध्ययने स्कन्धविशेषस्य एकत्वम् ५२-५६ सूत्राणि
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इति श्रीमदूअभयदेवसूरिविरचित ठाणांग सूत्रना पहेला एक स्थानक अध्ययननो मूल तथा टीकानो अनुवाद समाप्त.
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॥६३॥
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