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भरतक्षेत्रमा बे महानदी कहेल छे. ते बहुसमतुल्य यावत् रक्ता अने रक्तवती नामनी छे. (४). (मू०८८) टीकार्थः-'जंबू' इत्यादि० अहिं हिमवान आदि छ वर्षधर पर्वतोने विषे छ ज द्रहो छे, ते आ
पउमे १ य महापउमे २ तिगिंछी ३ केसरी ४ दहे चेव ।
हरए महापुंडरिए ५, पुंडरीए चेव य ६ दहाओ ॥ ६१ ॥ १ पद्म, २ महापद्म, ३ तिगिंछी, ४ केशरी, ५ महापुंडरीक अने ६ पुंडरीक. आ छ द्रहो क्रमशः छे. हिमवान पर्वतनी उपर बहुमध्यभागने विषे पद्म छ जेनी अंदर तेवो पद्मद्रह नामनो हद छे. एवी रीते शिखरी पर्वतनी उपर बहुमध्यभागने विपे पुंडरीक नामनो द्रह छे. ते बन्ने द्रह, पूर्व अने पश्चिममा हजार योजन लांबा अने पांचसो योजन पहोळा, चार खूणाने विषे दश योजन ऊंडा, चांदीना कांठावाळा, वज्रमय पाषाणवाळा, तपनीय(रक्तसुवर्ण)ना तलीआवाळा, सुवर्ण मध्य रजतमाणिनी वेळुवाळा छे, चारे दिशाए मणिना पगथिआवाळो, सुखपूर्वक उतरी शकाय एवा, तोरण, ध्वज अने छत्र वगेरेथी सुशोभित, नीलोत्पल अने पुंडरीक कमल वगेरेथी रचित विविध पक्षी अने मत्स्यो जेमां फरी रहेला छे एवा तेमज भ्रमरोना सम्रहवडे उपभोग्य छे. 'तत्थ णं 'ति० ते बे द्रहने विषे बे देवीओ वसे छे, पद्मद्रहमां श्रीदेवी अने पुंडरीकद्रहमां लक्ष्मीदेवी छे. ते बन्ने देवीओ भुवनपतिनिकायमां अंतर्भूत छे, कारण के तेओ पल्योपमना आयुष्यवाळी छे. व्यंतरनी देवीओनुं तो
१. टोकामां चतुर्दशमणिसोपानो पाठ छे, पण जंबूद्वीपपन्नती वगेरेमा चारे दिशाए पगथिआनुं वर्णन छे माटे ते प्रमाणे लखेल छे.
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