Book Title: Stavan Manjari
Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi
Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 43
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनतेरा, विमल कर नाथ मन मेरा । चरण में आप के डेरा, तिलक भवभव सकारी है ॥ ४ ॥ गायन नं. ५३ मह उठी मैं सदा नमुं हाथ जोड के साम, चौवीसे जिनराजकु हुं नित्य करूं प्रणाम || ढेर || रिषभ अजित संभव अभिनंदन, और सुमति जिनराज । पद्म सुपार्श्व चन्द प्रभु से, लगन लगी है आज || १ || सुविधि शीतल श्रेयाँस, सवाई दीजे मुक्ति नाथ । वासुपूज्य जिन बारमा, विमल अनंतनाथ || २ || धर्म शांति अरु कुंथु जिनेश्वर, अर मल्ली महाराज | मुनिसुव्रत नमि नेमजी, पार्श्व वीर जिनराज || ३ || कहै पाठक कल्याण की, निधान पूरी आस । कर जोडी गुण गावता, चंद गोपालदास ॥ ४ ॥ गायन नं. ५४ ( तर्ज - कल्याण ) जिन गल सोहे मोतियनकेरी माला || ढेर || मस्तक मुकुट सोहे मनमोहन, कुण्डल लागत वाला || जि० ॥ १ ॥ भजो रे भजो तुम लोक सहर के, नहीं रे भजे सोही काला || २ || माणक पर प्रभु मेहर करीने, अपनो विरद संभाल || ३ ॥ ( ४० ) गायन नं. ५५ ( तर्ज - सुखकर दुःखहर प्रणतपाल तुम ) भावो भविकजन भाव से भावना, वीर दर्शन की जय जय महासती सुरसुन्दरी किं. ०-८-० For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74