Book Title: Shravak Dharm Vidhi Prakaran
Author(s): Rajshekharsuri
Publisher: Velji Depar Haraniya Jain Dharmik Trust

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Page 41
________________ ३६ ગુજરાતી ભાવાનુવાદ સહિત - विहितं-अनुष्ठानं येषां ते सुविहिताः साधवः 'सर्वप्रयत्नेन' सर्वादरेण 'वर्जयन्ति' परिहरन्ति वन्दनादिना। "इह यद्यपि सुविहिताः साधव एव प्रतीतास्तेषां चैव परिहारः प्रतिपादितस्तथाऽपि श्रावकाणामपि तद्वन्दनादेर्दोषहेतुत्वेन सुविहितानुसारत एव प्रस्तुतपरिहारः प्रोक्त एव प्रतिपत्तव्यः'। अतः प्रकृतसमर्थनात एवोक्तमणुव्रतविधौ- "पासत्था ओसण्णा, होति कुसीला तहेव संसत्ता। समणाण सावगाण य, अवंदणिज्जा जिणमयम्मि॥१॥" [अणु.वि.] आगमेऽप्युक्तम्- "पासत्यो ओसण्णो, होइ कुसीलो तहेव संसत्तो। अहछंदो वि अ एए, अवंदणिज्जा जिणमयम्मि॥१॥" [आव. हारि. वृ. पृ. ५१७ पार्श्वस्थादिस्वरूपं च परिभाषाहेमतो भाष्यादवसेयम्-“सो (१) पासत्यो दुविहो, सव्वे देसे अ होइ नायव्वो। सव्वम्मि नाणदंसणचरणाणं जो उ पासम्मि॥१॥ देसम्मि उ पासत्थो, (१) सिज्जायरऽभि (२) हडरायपिंडं (३) च। (४) नीयं च (५) अग्गपिंडं, भुंजइ निक्कारणे चेव॥२॥ (६) कुलनिस्साए विहरइ, (७) ठवणकुलाणि अ अकारणे विसइ। (८) संखडिपलोअणाए। गच्छइ तह (९) संथवं कुणइ॥३॥ (२) ओसण्णो वि अ दुविहो, सब्वे देसे अ तत्थ सव्वम्मि। उउबद्धपीढफलओ, ठविअगभोई य नायव्वो॥४॥ आवस्सगसज्झाए, पडिलेहणझाण- भिक्खऽभत्तटे। आगमणे निग्गमणे, ठाणे अ निसीअण तुअट्टे॥५॥ आवस्सयाइयाई, न करेई अहव हीणमहिआई। गुरुवयणबलाइ तहा, भणिओ एसो उ ओसण्णो॥६॥ गोणो जहा चलंतो, भंजइ समिलं तु सो वि एमेव। गुरुवयणं अकरेंतो, बलाइ कुणई च ओसोढुं॥७॥ (३)तिविहो होइ कुसीलो, नाणे तह दंसणे चरित्ते । एसो अवंदणिज्जो, पण्णत्तो वीयरागेहि।।८॥ नाणे नाणायारं, जो उ विराहेइ कालमाईयं। दंसणे दंसणायारं, चरणकुसीलो इमो होइ॥९॥ कोउयभूईकम्मे, पसिणापसिणे निमित्तमाजीवी। कक्ककुरुआ य लक्खण, उवजीवइ विज्जमंताई॥१०॥ सोहग्गाइनिमित्तं, परेसि ण्हवणाइ कोउगं भणि। जरिआइ भूइदाणं, भूईकम्मं विणिहिटुं॥११॥ सुविणगविज्जाकहिअं, आइंखणिघंटिआइकहिअं वा। जं सीसइ अण्णेसिं, पसिणापसिणं हवइ ए॥१२॥ तीयाइभावकहणं, होइ निमित्तं इमं तु आजीवं। जाइकुलसिप्पकम्मे, तवगणसुत्ताइ सत्तविहं।।१३।। कक्ककुरुया य माया, नियडीए डंभणं तु जं भणि॥ थीलक्खणाइ लक्खण, विज्जामंताइया पयडा॥१४॥ (४)संसत्तो उ इयाणिं, सो पुण गोभत्तलंदए चेव। उच्चिट्ठमणुच्चिटुं, जं किंची छुब्भई सव्वं॥१५॥ एमेव य मूलुत्तर, दोसा य गुणा य जत्तिआ केई। ते तम्मी सण्णिहिआ, संसत्तो भण्णई तम्हा॥१६॥ रायविदूसगमाई, अहवा वि नडो

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