Book Title: Shiksharthi Hindi Shabdakosh
Author(s): Hardev Bahri
Publisher: Rajpal and Sons

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Page 869
________________ णकी 855 स्थिति बणकी-सं० (स्त्री०) जननेंद्रिय के रोगों का चिकित्साशस | कक्षा~ (सी०) एक कक्षा से दूसरी कक्षा में जाना स्त्याजीत-सं० (पु०) स्त्री या स्त्रियों की संपति का भोग | स्थानांतरणीय-सं० (दि०) स्थानांतरण संबंधी करनेवाला पुरुष स्थानांतरित-सं० (वि०) स्थानांतरण किया हआ सायपयोगी-सं० (वि०) स्त्रियों के उपयोग में आनेवाला स्थानापत्ति-सं० (सी.) 1किसी के बदले में काम करना स्थ-सं० (प्र०) शब्द के अंत में प्रयुक्त होकर अनेक । 2 किसी का पद ग्रहण करना अर्थबोधक एक प्रत्यय (जैसे-तटस्थ, कंठस्थ, आत्मस्थ, स्वानापन-सं० (वि०) 1 किसी की गैरहाज़िरी में नियुक्त किया ध्यानस्थ आदि) गया 2 दूसरे का स्थान ग्रहण किया हुआ स्थकित-(वि०) थका हुआ, शिथिल . स्थानाभाव-सं० (पु०) स्थान का अभाव स्थगन-सं० (०) 1 कुछ समय के लिए रोकना (जैसे-सम स्थानिक-सं० (वि०) = स्थानीय का स्थगन) 2 विचार आदि हेतु कुछ समय तक रोकना स्वानी-सं० (वि.) 1 स्थान से युक्त, पद युक्त 2 उपयुक्त (जैसे-प्रार्थना पत्र का स्थगन) :3 छिपाना या ढाँकना। | 3स्थायी। -करण (पु०) बिखरे हए कार्य व्यापार आदि को प्रस्ताव (पु०) कार्य स्थगन के लिए उपस्थित किया गया नियंत्रित करके एक केंद्र में आबद्ध करना; ~कृत (वि०) प्रस्ताव, एडजनमेंट मोशन स्वनीकरण किया हुआ स्थगित-सं० (वि०) स्थगन किया हुआ। करण (पु०) स्थानीय-सं० (वि०) 1 स्थान विशेष से संबंधित 2 स्थान स्थगित करना, टालना विशेष के लिए उपयुक्त। ~करण (पु०) - स्थानीकरण; स्थल-सं० (पु०) 1 भूमि, ज़मीन 2 भू भाग 3 जल से रहित । ता (स्त्री०) स्थानीय होने का भाव भूमि, खुश्की, लैण्ड (जैसे-स्थल मार्ग से यात्रा करने में समय स्थापक-सं० (वि०) 1 स्थापना करनेवाला 2 स्थिर करनेवाला अधिक लग जाएगा) 4 निर्जल और मरुभूमि। ~गामी, 3स्थित करनेवाला ल्चर (वि०) ज़मीन पर रहनेवाला (प्राणी); चर जीव स्थापत्य-सं० (पु०) 1 राजगीरी, मेमारी 2 भवन बनाने की (पु०) ज़मीन पर निवास करनेवाला प्राणी; चारी (वि०) _ विद्या, वास्तु विज्ञान । कला (स्त्री०) वास्त विद्या; ~वेद = स्थलचर; ~ज (वि०) स्थल से उत्पन्न; डमरू मध्य (पु०) एक वेद जिसमें वास्तु शिल्प का ज्ञान प्राप्त होता है (पु०) दो तरफ़ दो बड़े और लंबे स्थलों से घिरा हुआ स्थल स्थापन-सं० (पु०) 1 स्थापित करना 2 स्थिर करना 3 स्थित का लंबा भाग; ~फ़ौज + अ० (स्त्री०) स्थल सेना; ~मार्ग करना 4प्रतिपादन (पु०) ज़मीन या पृथ्वी पर बना रास्ता; युद्ध (पु०) भूभाग स्वापना-सं० (स्त्री०) 1 स्थापित करने का भाव 2 मत आदि पर होनेवाली लड़ाई ~शक्ति (स्त्री०) स्थल सेना; अन्य के समक्ष रखना, प्रतिपादन सेनाध्यक्ष (पु०) थल सेना का प्रधान सेनापति; सीमा स्थापनीय-सं० (वि०) स्थापन करने योग्य, स्थाप्य (स्त्री०) देश या भूभाग की हद; ~सेना (स्त्री०) पैदल सेना, स्वापित-सं० (वि०) 1 स्थापना की गई 2 प्रतिष्ठित किया हआ ज़मीन पर लड़नेवाली सेना 3नियुक्त किया हुआ 4 निश्चित किया हुआ स्थली-सं० (स्त्री०) 1 जल शून्य भू भाग, शष्क जमीन | स्वाप्य-सं० (वि०) 1 स्थापित करने योग्य 2 नियक्त किए जाने 2 जगह, स्थान 3 प्राकृतिक भूमि योग्य स्थलीय-सं० (वि०) 1 स्थल का 2 स्थानीय स्वायिक-सं० (वि०) 1विश्वसनीय 2 स्थायी स्थविर-I (पु०) 1 बौद्ध भिक्षुओं का एक संप्रदाय 2 वृक्ष । स्थायित्व-सं० (पु०) 1 स्थायी होने का भाव 2 नौकरी आदि में व्यक्ति II (वि०) वृद्ध और पूज्य सुरक्षित और नियत काल तक बने रहने की स्थिति स्थान-सं० (पु.) 1 जगह 2 पद, ओहदा 3 टिकाव, ठहराव स्थायी-सं० (वि०) 1 हमेशा बना रहनेवाला 2 निर्धारित काल 4 अवस्था, स्थिति 5 घर (जैसे-आपका निवास स्थान कहाँ है) तक चलता रहनेवाला (जैसे-स्थायी नौकरी) 3 टिकाऊ 6 देश, भूभाग (जैसे-आप किस स्थान के निवासी हैं) 7 नगर 4 स्थायी भाव। -करण (पु०) 1 स्थायी रूप देना 2 स्थायी 8 अवसर १ वर्ण के उच्चारण की जगह। ~च्युत (वि०) रूप से नियुक्त करना; ~भाव (पु०) मन में सदा बने 1 पद से हटाया हुआ 2 स्थान से अलग हुआ; जापिकी रहनेवाले मूल भाव (जैसे-रति, क्रोध, शोक, भय, विस्मय (स्त्री०) स्थानों के नामों से संबद्ध शास्त्र; पदिक (वि०) आदि) नियमित रूप से एक स्थान पर होनेवाला या पाया जानेवाला |स्थाली-सं० (स्त्री०) मिट्टी के बर्तन। पुलाक न्याय (पु.) (जैसे-स्थान पदिक रोग); ~पाल (पु०) 1 स्थान का रक्षक पुलाव का एक दाना देखकर जान जाना कि पुलाव पक गया है 2 चौकीदार, पहरेदार; ~भ्रष्ट (वि०) = स्थान च्युत; या नहीं ~संकोच (पु०) जगह की कमी; ~सीमन (पु०) = स्थावर- सं० (वि०) 1स्थिर 2 स्थायी 3 अचल संपत्ति स्थानीकरण संबंधी 4 वानस्पतिक II (पु०) 1 अचल संपत्ति 2 पर्वत स्थानकवासी-सं० (पु०) एक विशिष्ट जैन संप्रदाय 3अचेतन पदार्थ स्थानस्थ-सं० (वि०) 1 स्थान पर टिका हुआ 2 स्थानीय स्वाविर-सं० (पु०) वृद्धावस्था, वार्धक्य स्थानांतर-सं० (पु.) 1 एक स्थान से अन्य स्थान पर चले जाने स्चित-सं० (वि०) 1ठहरा हुआ 2 बसा हआ 3 दृढ़, पक्का का भाव, बदली 2 भिन्न या दूसरा स्थान । गत (वि०) (जैसे-स्थित प्रज्ञ) 4 उपस्थित, मौजूद। प्रज्ञ (वि०) स्थानांतर से संबंधित | तस्थिर बुद्धिवाला 2 समरस और निर्विकल्प स्थानांतरण-सं० (पु०) तबादला करना, बदली करना। रिति-सं० (सी०) 1 ठहराव 2 दशा, हालत 3 स्वभाव,

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