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गृहस्थोंका सर्व योग साव है, वास्ते गृहस्थोंसे नहीं निकलवाना, धर्मबुद्धिसे साध्वीयोंसे नीकलाना चाहिये. कारन - ऐसा कार्यतो कभी पड़ता है. अगर गृहस्थोंसे काम करानेंमें छुट होगा, तो आखिर परिचय बढनेका संभव होता है.
(४) साधुके आँखों (नेत्रों) मे कोइ तृण, कुस, रज, बीज या सुक्ष्म जीवादि पड़ जावे, उस समय साधु निकालनेमें असमर्थ हो, तो पूर्ववत् साध्वीयों निकाले, तो जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं होता है. ( कारणवशात ) एवं ( ५-६ ) दोय
लाप साध्वयों कांटादि या नेत्रोंमे जीवादि पड जानेपर साध्वीयों असमर्थ हो तो, साधु निकाल सक्ता है, पूर्ववत्.
( ७ ) साध्वी अगर पर्वत से गिरती हो, विषम स्थानसे पडती हो, उस समय साधु धर्मपुत्री समज, उसको आलंबन दे, आधार दे, पकड ले, अर्थात् संयम रक्षण करता हुवा जिनाज्ञाका उल्लंघन नहीं होता है. अर्थात् वह जिनाज्ञाका पालन करता है.
(८) साध्वीयों पाणी सहित कर्दममें या पाणी रहित कर्दममें खुंची हो, आप व्हार निकले में असमर्थ हो, उस साधु धर्मपुत्री समज हाथ पकड चाहार निकाले तो भगवानकी आज्ञा उल्लंघन नहीं करै, किन्तु पालन करे.
( ९ ) साध्वी नौकापर चढती उतरती, नदी में डूबती को साधु हाथ पकड निकाले तो पूर्ववत् जिनाज्ञाका पालन करता है,