Book Title: Shighra Bodh Part 16 To 20
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ravatmal Bhabhutmal Shah

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Page 409
________________ होते है. वह कहते है कि हे नाथ ! हम क्या करे ? क्या मापका हुकम है ? क्या आपकी इच्छा है ? किसपर आपकी रुचि है ? इत्यादि उस कुलादिके उत्पन्न हुवे पुरुष पुण्यवन्तकी ऋद्धिका ठाठ देख अगर कोइ साधु निदान करोकि हमारे तप, संयम, ब्रह्मचर्यका फल हो, तो भविष्यमें हमको मनुष्य संवन्धी ऐसे भोग प्राप्त हो. इति साधु । हे श्रमण ! आयुष्यवन्त ! अगर साधु ऐसा निदान कर उसकी आलोचना न करे, प्रतिक्रमण न करे, पापका प्रायश्चित न लेवे और विराधक भावमें काल करे, तो वहांसे मरके महा अद्धिवन्त देवता होवे. वहांपर दिव्य ऋद्धि ज्योति यावत् महा सुखोंको प्राप्त करे. उस देवतावों संबन्धी दीर्व काल सुख भोगवके, वहाँसे चवके इस मनुष्य लोकमें उप कुलमें उत्तम वंशमे पुत्रपणे उत्पन्न हुवे. जो पूर्व निदान कियाथा, ऐसी ऋद्धि प्राप्त हो जावे यावत् स्त्रीयोंके वृन्दमें नाटक होते हुवे, वाजिंत्र बाजते हुवे मनुष्य संबन्धी भोग मोगवते हुवे विचरे.. हे भगवन् ! उस कृत निदान पुरुषको केवली प्रापित धर्म उभयकाल सुनानेवाला धर्मगुरु धर्म सुना शके १ । हां, धर्म सुना शके, परन्तु वह जीव धर्म सुननेको अयोग्य होते है. वह जीव महारंभ, महा परिग्रह, स्त्रीयोंका कामभोगकी महा इच्छा, अधर्मी, अधर्मका व्यापार, अधर्मका सं

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