Book Title: Shabdaratnamahodadhi Part 1
Author(s): Muktivijay, Ambalal P Shah
Publisher: Vijaynitisurishwarji Jain Pustakalaya Trust Ahmedabad

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Page 803
________________ म. ७५६ शब्दरत्नमहोदधिः। [गल्द्-गवाशन गल्द् स्त्री. (गल+क्विप् गला गलेन दीयते दा कर्मणि । गवाक्षजाल न. (गवाक्षस्य जाल:) मानी. 20, घञर्थेक 4usl, नीनो मे मे. ३मानु, Mयु, ६.२ म. गल्भ् (भ्वा. आ. स. सेट-गल्भते) धृष्टता ४२वी, गवाक्षी स्त्री. (गवाक्ष+अण्+ ङीष्) अ५२%8-01२५0 हिमत. १२वी -न मौक्तिकच्छिद्रकरी शलाका प्रगल्भते नमे वनस्पति, ॐद्रवा२४, शमीट वृक्ष. कर्मणि टङ्किकायाः-विक्रमाङ्क० ९।१६, १४ादूरी 5२वी.. गवाची स्री. (गवचीवत् किन्तु पूर्वाणो दीर्घः) में गल्भ त्रि. (गल्भ+अच्) वृष्ट, मितवाणु, बहादूर, ___तर्नु भाछो. આત્મવિશ્વાસુ. गवादन न. (गोभिरद्यते अद् कर्मणि ल्युट) घास, गल्या स्त्री. (गलानां कण्ठानां समूहः यत्) पानी समुदाय, नो समूह. गवादनी स्त्री. (गवादन+ङीप्) द्रवार, घासनी गल्ल, गल्लक पुं. (गल+ल तस्य नेत्वम् । ગંજી, એક જાતનો કાકડીનો વેલો, ગાયોને ઘાસ गल्ल+स्वार्थे क, गलति क्विप् गल् तं लाति गृह्णाति नाभवानी गाए। -द्विविधा सा सीता नीला गिरिकर्णी ला+क ततः स्वार्थे क) २ पीवान, विशेष, | गवादनी-वैद्यकरत्नमाला । छन्द्रनासमलि, स- ताम्बूलभृतगल्लोऽयं भल्लं गवादि पुं शिनीय' व्या४२४६ प्रसिद्ध मे. श६ जल्पति मानुषः, - पातालप्रतिमल्लविवरप्रक्षिप्त समूड त. भा- गा, हविष्, अक्षर, विष, बर्हिस, सप्तार्णवम् -महा० नाट्यम्- ५।२२ । अष्टका, स्खदा, युग, मेघा, स्रुच्, (नाभि, नभं च) गल्लचातुरी स्री. (गल्के चातुरी यस्याः) नान, गो (शुनः संप्रसारणं वा च दीर्घत्वं तत्सन्नियोगेन ગાલ નીચે મૂકવાનું ગાલમસુરીયું. चान्तोदात्तत्वम्) (ऊधसो अनङ् च) कूप, खद, गल्वर्क पुं. (गल्+उन् गलुरर्को दीप्तिरस्य) मे तनो दर, खर, असुर, अध्वन, क्षर, वेद, वीज, दीप्त ઈદ્ર નીલમણિ, માણેક, એક જાતનું દારૂ પીવાનું (गवादिभ्यो यत् पा. हितादौ) गव्यम् । पात्र. गवाधिका स्त्री. (गवा किरणेन अधिकायति अधि+ गल्ह् (भ्वा. आ. सक० सेट्-गल्हते) निन्, निन्हा कै+क) साप ४२वी, ४५ो. आपको, 53 Au3. गवानृत न. (गवि गोविषये अनृतम् अनङादेशः) २॥ गवची स्त्री. (गां भूमिमञ्चति अञ्च्+क्विप् अवङादेशः ___ङीप् अचोऽल्लोपः) ६६२१२५॥नो . पहन सं मi. टू जोस ते. गवय पुं. (गुङ् शब्दे भावे अष् गवं शब्दभेदं याति गवामयन न. ६श मा२ भासमा ४२वा योग्य. मे. तनो य. या+क) uयन गलस. वार्नु, मे.. तनुं पशु-रो, -दृष्टः कथञ्चिद्गवयैर्विविग्नैः-कु० १५६ । गवामृत न. (गोरमृतमिव क्षीरम् आङादेशः) unk એક જાતનો વાનર. गवयी स्त्री. (गवय+ङीप्) रोजनी महा-रीति.. गवाम्पति पुं. (अलुक्समासः) मह, nel, launगवयोद्भाव न. ताई, छी... ___ योनी. स्वामी, रुद्रदेव, सूर्य, अग्नि, यन्द्र व३. गवराज पुं. (गवेन शब्देन राजते राज्+अच्) ७६. गवालूक पुं. (गवाय शब्दाय अलति अल+उकञ्) गवल पुं. (गवं लाति ला+क) u-1432, 431, मडिष, __ (न.) में सर्नु, शाई, पाउनु . गवाविक न. (गौश्च अविश्च द्वयोः समाहारः नित्यम्गवली स्त्री. (गवल स्त्रियां ङीष्) मेंस., पी. ___ वङादेशः कच्) uय. अने. .. गवल्गण पुं. संयनो पिता. गवाश्व न. (समाहारद्वन्द्वः) uय भने घो32. गवाक्ष पुं. (गवामक्षीव अक्षि अच्) 01-0री, . गवाशन पुं. (गोमांसमश्नाति) ॥यन भास. vie. विलोलनेत्रभ्रमरैर्गवाक्षाः सहस्रपत्राभरणा बभूवुः-रघु० હોવાથી બહાર મૂકાયેલ માણસ, ગાયનું માંસ ખાનાર. ७।११, असो, गियुं -कुवलयितगवाक्षां लोचनै -माताऽप्येका पिताप्येको मम तस्य च पक्षिणः । रङ्गनानाम्-रघु० ७।९३ । ते. नामनी 5 वानर, अहं मुनिभिरानीतः स चानीतो गवाशनैः ।। - ગોખરુ નામની વનસ્પતિ. कश्चित् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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