Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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| काल
१६] मुनिश्रीवोरशेखर विजय रचिते सत्ताविहाणे अहियपणवण्णपलिया, तिरियणराऊण साहियतिपल्ला । णिरया उग आहारग-सगतित्थाणऽत्थि मणुसिव्व ॥ ३०६ ॥ चउआलीसा हियसय-सेसाण हवेज जेट्ठकार्याठई । (गीतिः) पुरिसे भिन्न मुहुत्तं, लहू जिरयतिरिसुराउतित्थाणं ॥ ३०७ ॥ समयो अणसेस धुव-सत्ताणण्णाण इस्सकार्याठई । (गीतिः) ओघन्त्र दुदंसण जिण सुराउआहारसत्तगाण गुरु ॥३०८|| णिरयतिरिणराऊणं, इस्थिव्वऽण्णाण जेडकायठिई | णिरयाउस्स णपु से, लहू दस सहस्सवासाणि ॥ ३०९ ॥ भिन्नमुहुत्तं णेयो, तिरियाउस्स समयो भवेऽण्णेसिं । साहियतेचीसुदही, उक्कोसो सम्ममीसाणं ॥ ३१०॥ मणुयाउस्स पुडुत्तं विष्णेयो पृथ्वकोडीणं । ( उद्गीतिः) पुव्वाण कोडितसो देवाउस्स णिरयन्व तित्थस्स ।। ३११ ॥ सेसअधुवसत्ताणं ओघव्वऽण्णाण सगुरुकार्याठिई ।
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गयवेए अकसाए, अहखाए य छउमत्थदुविहठिई || ३१२ ॥ (गीति घासुरा उगतेरस - णामाण दुहाऽत्थि एसु सेसाणं । सव्वाण केवलदुगे, दुविहो दुबिहा भवत्थठिईं ||३१३ || आहारसत्तगस्स खणो महसुअसम्भवे अगे लहू । सेसाण मुहुत्ततो, गुरू तिपल्ला दुआऊणं ॥ ३२४ ॥ देवाउजिणाहारग- सत्तगपयडीण होइ ओघव्व । ( गीतिः ) णिरयाउस्सूणजल हि ते तीसा ऽण्णाण अथरछासट्ठी || ३१५|| सव्वाण लहू समयो, ओहिदुगे उअ महव्व जेट्टो वि । (गीतिः वरि तिरिण ऊणं, कमृणअहिया ऽत्थि पुव्वकोडी वा ॥ ३१६
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