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कर्मसाहित्ये निष्णाताः प्रेरका मार्गदर्शकाः संशोधकाच सिद्धान्तमहोदधय आचार्यभगवन्तः (ग्रन्थ ४५)
श्रीमद्विजयप्रेमसूरीश्वराः
आचार्यविजयवीरशेखरसूरिरचितं : सत्ताविहाणं
स्वोषज्ञ-हेमन्तप्रभारिण-समलङकृता
उत्तरपयडिसत्ता
पूर्वार्धः
परिशिष्टत्रिकयुतः
कामाता
प्रकाशिका :-भारतीय-प्राच्य-तत्त्व-प्रकाशन-समिति, पिंडवाडा
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॥ श्री शङ्कश्वरपार्श्वनाथाय नमः ।। आत्म-कमल-वीर-दान-प्रेम-रामचन्द्र-हीरसूरीश्वरसद्गुरुभ्यो नमः भारतीय प्राच्य तत्त्व प्रकाशन समिति पिंडवाड़ा संचालिताया प्राचार्यदेव श्रीमद्विजयप्रेमसूरीश्वरकमसाहित्यजनग्रन्थमालायाः
__पञ्चचत्वारिंशो (४५) ग्रन्थः कर्मसाहित्यनिष्णाताः प्रेरका मार्गदर्शकाः संशोधकाश्च
सिद्धान्तमहोदधय आचार्य भगवन्तः
श्रीमद्विजयप्रेमसूरीश्वराः प्राचार्यविजयवीरशेखरसूरिरचितं सत्ताविहारणं स्वोपज्ञ-हेमन्तप्रभाचूर्णिसमलकृता
उत्तरपडिसत्ता परिशिष्ट वकयुतः
पूर्वाधः
तत्र
प्रकाशिका-भारतीय-प्राच्य-तत्त्व-प्रकाशन-समिति, पिण्डवाडा
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प्रथमआवृत्तिः
वीर संवत् २५१७ राजसंस्करण- १५) २०१
। विक्रम संवत् २०४७
प्रति ५००
* प्राप्तिस्थान * भारतीय-प्राच्यतत्व-प्रकाशन समिति
C/o रमणलाल लालचंद शाह १३५/१३७ झवेरी बाजार, बम्बई २
भारतीय-प्राच्यतच-प्रकाशन-समिति C/o शा. समरथमल रायचंदजी
पिंडवाड़ा (राज) स्टे. सिरोही रोड (W. R.)
मारतीय-प्राच्यतत्व-प्रकाशन समिति
पाा. रमणलाल वजेचन्द, C/o दिलीपकुमार रमणलाल
मस्कती माकेट, अहमदाबाद २.
मुद्रकज्ञानोदय प्रिंटिंग प्रेस, पिंडवाडा स्टे.-सिरोहीरोड (W. R.)
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मूलग्रन्थकृत् चूर्णिग्रन्यकृत्सम्पादकश्च
प्रवचनकौशल्याधार-सिद्धान्तमहोदधि-सुविशालगच्छाधिपतिपरमशासनप्रभावक-कर्मसाहित्यनिष्णात-परमपूज्य-स्वर्गताचार्यदेवेशश्रीमद्विजयप्रेमसूरीश्वरविनीताऽन्तेवासिनिःस्पृहशिरोमणि-गीतार्थमूर्धन्य परमपूज्याचार्य
देव-श्रीमद्विजयहीरसूरीश्वर-विनेयरत्नाचार्यश्रीविजयललितशेखर.
सूरीश्वर-शिष्यरत्नाचार्यश्री विजयराजशेखरमरीश्वर.
शिष्यः प्राचार्यश्रीविजय.
वीरशेखरसूरिः
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First Edition Copies 500
}
DELUXE EDITION RS. 25
///
{
///
AVAILABLE FROM
A.D. 1991
III
7/1
1. Bharatiya Prachya Tattva Prakashana Samiti,
C/o. Shah Ramanlal Lalchand,
135/137, Zaveri Bazzar,
BOMBAY - 400 002
(INDIA)
2. Bharatiya Prachya Tattva Prakashana Samiti C/o. Shah Samarathmal Raychandji, PINDWARA 307022 (Rajasthan) St. Sirohi Road, (W.R.) (INDIA)
3. Bharatiya Prachya Tattva Prakashana Samiti Shah Ramanlal Vajechand, C/o Dilipkumar Ramanlal, Maskati Market, AHMEDABAD-380002
(INDIA)
Printed by :
Gyanodaya Printing Press PINDWARA. 307022 (Raj.) St. Sirohi Road, (W.R.) (INDIA)
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सकलागम रहस्यवेदि सूरिपुरन्दर बहुश्रुत गीतार्थ – परज्योतिर्विद परमगुरूदेव
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परम पूज्य आचार्य देवैश श्रीमद् विजय दान सूरीश्वरजी महाराजा
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Acharyadeva-Shrimad-Vijaya-Premasurishwarji
Karma-Sabitya Granthmala
GRANTH NO. 45 SATTA VIHANAM
UTTARA PAYADI SATTA Along with HEMANAT PRABHA Choorni WITH THREE APPENDICES
Part I
By
ACHARYA SHRI VIJAYA VEERSHEKHAR SURI MAHARAJA
Inspired and Guided by His Holiness Acharya Shrimad Vijaya PREMASURISHWARJI MAHARAJA the leading authority of the day
on Karma Philosophy.
कामा तित्थरम
Published by Bharatiya Prachya Tattva Prakasbana Samiti Pindwara (INDIA)
DIA):
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® प्रकाशकीय निवेदन हमें यह निवेदन करते हुए अपरिमित वर्ष की अनुभूति हो रही है कि सन् १९६६ में अहमदाबाद में हमारी भारतीय प्राच्य-तत्त्व प्रकाशन समिति द्वारा सर्व प्रथम तत्प्रकाशित कर्मसाहित्य के आद्य दो ग्रन्थरत्नों का विशाल कुंकुमपत्रिका, अनेकविध पत्रिकाओं और पुस्तिकाओं आदि के द्वारा अत्यन्त विराट्काय एवं भव्य समारोह में विमोचन किया गया था । उस अवसर पर दोनों ग्रन्थरत्नों को गजराज पर विराजमान कर, विराट मानव समुदाय के साथ, अनेकानेक साजों से अलंकृत बड़ा भारी जुलूस निकाला गया था। सिद्धराज जयसिंह ने सिद्धहेम व्याकरण का भव्य जुलूस निकाला था, उसके बाद सम्भवतः यही सर्वप्रथम साहित्य प्रकाशन का ऐसा भव्य जुलूस होना चाहिये। इन प्रकाशनों के उपलक्ष में प्रकाश हाई स्कूल में विशाल पैमाने पर प्राचीन तथा अर्वाचीन जैन साहित्य की विविध सामग्री की पृथक-पृथक विषयान्तंगत एक भव्य एवं विराट् प्रदर्शनिका भी आयोजित की गयी थी एवं प्रबल जनाग्रह के कारण प्रदर्शनिका की अवधि दो तीन दिनों के लिए बढानी पडी थी. जुलूस के उपरान्त प्रकाश हाई स्कूल के विशाल प्रांगण में सुशोभित मंडप में चतुर्विध संघ की प्रचुर उपस्थिति में नानाविध कार्यक्रमों के साथ ग्रन्थरत्नों का विमोचन किया गया, जिससे सामान्य जनता एवं बुद्धिजीवी
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प्रकाशकीय निवेदन [७ लोग प्रचुररूपेण जैन साहित्य की ओर आकृष्ट हुए, जैन साहित्य के दर्शन से भी लोग प्रभावित हुए तथा उक्त समिति के सदस्यों में भी अपूर्व उत्साह, ओज व उमंग का संचरण हुआ ।
अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप स्वर्गीय परम पूज्य आचार्य भगवन्त श्रीमद् विजयप्रेमसूरीश्वर महाराज साहब से प्रेरित कर्मसाहित्य के कइ ग्रन्थ आज तक तैयार हो गये है तथा और भी तैयार हो रहे हैं। इनके अतिरिक्त अन्य भी अर्वाचीन एवं प्राचीन छोटे बडे लगभग २५ से ३० ग्रन्थ प्रकाशित हुए है । बन्धविधान महाशास्त्र के सभी भाग मुद्रित होने से सम्पूर्ण षन्धविधान सटीक मुद्रित हो चुका है एवं आज आपके कर कमलों में 'सत्ताविधान' महाग्रन्थ के "हेमन्तप्रभाचूर्णिसमलङकृता उत्तरपयडिसत्ता" 'पूर्वार्ध' का मुद्रण समर्पित कर रहे हैं।
इसके साथ ही और भी पांच ग्रन्थ का भी मुद्रण हम आपके करकमलों में प्रस्तुत कर रहे है ।
तीन-चार (३/४) वर्षे पूर्व में भी हमारी संस्था द्वारा प.पू. आचार्यदेव श्रीमद्विजयवीरशेखरसूरीश्वरजी म. सा. के द्वारा रचित (२२) बाइश पुस्तकों का विमोचन बडे समारोह के साथ उन्ही की निश्रा में पिंडवाडा में करवाया था ।
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प्रकाशकीय निवेदन
| ८
इससे पूर्व भी हमारी संस्था द्वारा 'प्राचीनाः चत्वारः कर्मग्रन्थाः ' 'सप्ततिका नामनो छडो कर्मग्रन्थ ' ' १ थी ५ कर्मग्रन्थ' आदि छोटे बडे ग्रन्थ भी प्रकाशित हुए हैं ।
आज तक इस समिति द्वारा प्रकाशित किये गये समस्त ग्रन्थरत्नों की आधार शिला दिबंगत परम पूज्य आचार्य भगवन्त श्रीमद् विजय प्रेमसूरीश्वर महाराज साहब है । जिनकी सतत सत्प्रेरणा, मार्गदर्शन, प्रस्तुत साहित्य का उद्धार करने की अदम्य उत्कंठा और कालोचित अथक परिश्रम से ही प्रस्तुत ग्रन्थरत्नों का जन्म हुआ है तथा इन्हीं महापुरुष के शुभाशीर्वाद से हम ग्रन्थरत्नों के प्रकाशन के महत्कार्य में उत्तरोत्तर साफल्य की ओर पदार्पण कर रहे हैं । इन्हीं महात्मा ने हमारी संस्था को कर्म साहित्य के इन ग्रन्थरत्नों के प्रकाशन का लाभ देकर अनुग्रहीत किया । अतः हम इनके ऋणी है और इस ऋण से कभी भी उॠण नहीं हो सकते। अतः ऐसे परमोपकारी महाविभूति आचार्य भगवन्त श्रीमद् विजयप्रेमसूरीश्वर महाराज साहब का हम नतमस्तक कोटि-कोटि वन्दन करते हुए, इनके प्रति अवर्ण्य आभार प्रदर्शित कर रहे हैं ।
प्रस्तुत ग्रन्थरत्न के प्रणेता परम पूज्य आचार्य श्रीमद्विजय वीरशेखरसूरीश्वर महाराज साहब का हम सवन्दन आभार मानते हैं । आपके अथक, अविरल, एवं सतत
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प्रकाशकीय निवेदन
परिश्रम के फलस्वरूप ही हम इस ग्रन्थरत्न को पाठकों के करकमलों में समर्पित करने में सक्षम रहे हैं।
मुद्रण करने में संस्था के निजी ज्ञानोदय प्रिन्टिग प्रेस के मेनेजर श्रीयुत शंकरदास एवं उनके अन्य कर्मचारीगण भी धन्यवाद के पात्र हैं।
इसके अतिरिक्त जिस किसी ने भी जिस किसी भी तरह से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से ग्रन्थ प्रकाशन में सहायता की हो, उन सभी महानुभावों के प्रति हम अपना हार्दिक आभार प्रदर्शित करते है।
द्रव्यसहायक:-श्रीवलसाड जैन श्वेताम्बर महावीरस्वामी भगवान पेढोने श्रुतभक्तिसे अनुप्रेरित एवं अनुप्राणित होकर इस ग्रन्थरत्न के मुद्रण में अपनी ज्ञान द्रव्यराशि के सम्यक सहयोग से यथोचित योगदान किया है, अतः हम इनके प्रति ऋणी एवं आभारी हैं । नजदीक भविष्य में और प्रकाशन की आशा में
भवदीय(i) पिंडवाडा
शा.समरथमल रायचन्दजी (मंत्री) स्टे. सिरोहीरोड (राजस्थान) (ii) १३५/१३७ जौहरो बाजार शा.लालचन्द छगनलालजी (मंत्री) बम्बई-२
भारतीय-प्राच्य तत्व प्रकाशन समिति
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-:श्राञ्जलि :जिन्होंने भवरूपी कूपसे संयमरूपी रज्जु द्वारा बाहर निकाला। और प्रव्रज्यादिन से लेकर बारह साल तक निजी निश्रा में रख कर ग्रहण शिक्षा और आसेवन शिक्षा के साथ साथ हो संस्कृत-प्राकृतव्याकरण न्याय दर्शन तर्क काव्य कोश छन्द अल
ङ्कार प्रकरण आगम छेदादि विविध विषयक ___ शास्त्रों के परिशीलन द्वारा सुधारस
पीलाया। जिन्होंकी सतत सत्प्रेरणा और कृपादृष्टिसे ही महागंभीर और अतिभगीरथ ऐसे कर्मसाहित्य के नव निर्माण में और सम्पादन में तथा प्राचीन कर्मसाहित्य के सम्पादन आदि में आज लगातार ३० साल
तक प्रयत्नशील रहा हूं। उन कर्मसाहित्य के सूत्रधार सिद्धान्तमहोदधि सच्चारित्रचूडामणि परमशासन प्रभावक सुविशालगच्छाधि
पति परमाराध्यपाद स्वर्गीय.
आचार्य भगवंतश्रीमद् विजयप्रेमसूरीश्वरजी महाराजा
की परम पवित्र स्मृति में
भवदीय कृपैककाङ्क्षी आचार्यविजयवीरशेखरसूरि
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कर्म साहित्य ग्रंथोना प्रेरक,मार्गदर्शक अने संशोधक सिध्धान्त महोदधि सुविशाल गच्छाधिपति कर्मशास्त्र रहस्यवेदीशासन शिरछत्र
स्व. परम पूज्य आचार्य देव श्रीमद विजय प्रेम सूरीश्वरजी महाराजा
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शद्धिपत्रकम्
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०द्वारम् विहरण
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दुदंसणतिअ उं/(गीतिः) तिउं/ (गीत)
(गीतिः ) सत्त अ/गहाहि/संत यं सत्ताअ/०गाहाहिं/संतपयं ०य ओ
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सख-भा. २८
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०संभव २८ १८ बध० २८ २६ खाण २९ ५ सिद्ध०
गाआणं २९ १९ उजि० २१ २२० बांधिo
०रणा -Tण/सत. २९ २६ जहष्णा ३० ४ लद्ध
(गीतिः) टुकायठि० ०हा का० मंग० हियमिः Cश्ची-म० लपरा० संखभा० मणुय०
संभव बंध० खीण. सिद्ध० गोआनं ० उ-जि० बांधिo ०णामाण/त० जहण्णो लद्ध
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१४ ]
शुद्धिपत्रकम्
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ग्घादं ३० ११ णवर त/Sणता०
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प्रणाण ३१ १७ ठिई
ठिई ३१ १६ हुत्तं
(सकोणम) (संकीर्णम्। उग ण
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ऽण्णेसि ०कृत त्त०
०कृतोत्त० ४४३॥ ।४४४॥
॥४४४॥
त्ता का० ०णदो असत्ताका ३६ २० भवदि
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पणि. ३७ १३ चक्खु स०
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[ १५
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शुद्धिपत्रकम् पृष्ठम् पङ्क्तिः अशुद्धिः ३७ १५ सत्ततरं ३७ १६ पणि ३७ १६/२२ ०बधिo ३७ २१ पंचि. २५ प्रणतानुबधि
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सम्सविट्ठिा गु० ३८ ११ गराव०
०ऽऽहा ग३८ १३ पथयं३९ ८ गाण ३६ २२ गादाण. ४० ४ पाच०
०बांध. सत्ततरं
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पचि० ४१ ८ अजागि०
०र ग० ०६ म०/ऽऽहारि -धिद.
दा बधि० ४१ २२ ०पचगे
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सतरं -पणि० oबंधिo
पचि० अणंतानुबंधि-मिस्स० संसारे सम्मदिट्ठिमण. गरोव० ossहारगपत्थयंगणि गोदाण ०पंचि० बधि० सत्तंतरं पंचि०/-पथ्य अंते
पचि.. अजोगि०
राग. ०द-म०)ऽऽहारि-धिद. ०दा-5010बंधि० ०पंचगे
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2
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शुद्धिपत्रकम्
पृष्ठम् पडिक्तः अशुद्धिः ४१ २५ अस० ४१ २६ ०बधस्स ४२ २ षष्ठं
तोटम. ४३ १ तात्त० ४३ २ ०गा 50 ४३ ३/१८ सते । ४३ ५ भाषणे ४३ १३ दुणिदितस10 ४३ १५ ०स पण. ४४ ६ सते ४४
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॥ ८८॥ ४५ १३ गाप्रस्स
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असं० बंधस्स षष्ठ संते दंस० तोत्त० गा-550 संते
मा-ऽण्णे ०रदुणिदितसप०
सण्णि संते तिरि० व्हारदु०
संते, सिआ ॥४८॥ गोप्रस्स प्रोघव
मीस० सेसिगसंते संते जियमा संतम्मि
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४७
४७
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पृष्ठम् पङ्क्तिः प्रशुद्धिः
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________________
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शुद्धिपत्रकम् पृष्ठम् पक्तिः अशुद्धिः शुद्धिः ७८ ईण, ईणं,
२७ नपु स०/०हाण, नपुस०/०हाणं, १ शिष्टम् /०शा शिष्टम् /-शाः ७ जहण्ण जहण्णं, १३ पच०
०पंच० १४।१५ ०सखिय० संखिय० १६ साए
साए, २३ हुत्त,
०हत्तं, २४ लाण,णयो, ०लाणं,णेयो, २६ हुत्त १ ०थ द्यांशाः ०थाद्यांशाः
०द्यांशा ०धांशाः ६२६ ०सते
०संते १० १ ०द्यांशाः
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०सते बिउवे. ०एसू ष्टम सते गाण, प्रत० ८वा त्थि पचसु
संते विउवे०
एसु oष्टम सते गाणं, अंत०
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१७
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५
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________________
२० ]
शुद्धिपत्रकम्
पृष्ठम् पङिक्तः अशद्धिः
शुद्धिः
१३ ९११ १३ १६ १३ १८ १३ २४ १४ २ १४ ५ १४ ११ १५ १ १५ . ८
ततो सते प्रसख० सतम्मि शंङखे० त्वं लते द्वितीय यतो मोसस० त्वम] द्वितीय पण गवई
तंतो संते असख० संतम्मि शङखे० त्वम ०लअंतो द्वितीयं यंतो मीससं०
त्वम् द्वितीयं परण-णवई ०सीई, वेऊणा मिच्छापज. छसयं/०इतिग०
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वेउ णा मिच्छ पज्ज. छ सय०/०इ तग० ०र दु० अण •ष्टम व्यतो -बधण तृतीयं
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२० ३ २० ७ २१/२६ १ २४ १५ २४ २१ २५ १
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व्यतो -बंधण.
तृतीयं
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विषयानुक्रमणिका
उत्तरपयडिसत्ता हेमन्तप्रभाचूर्णिसमलङ्कृता
गाथाङ्का ।
१९० मङ्गलाचरणम् १६१-१९२ पञ्चाधिकाराः १६३-१६४ प्रथमाधिकारद्वाराणि
विषयाः
१६५-२२८ प्रथमं सत्पदद्वारम् २२-२५२ द्वितोयं स्वामित्वद्वारम् २५३-२६० तृतीयं साद्यादिद्वारम् २६१-४०२ चतुर्थ कालद्वारम् ४०३-४५५ पञ्चममन्तद्वारम् ४५६ ७९७ षष्ठं सन्निकर्षद्वारम्
परिशिष्टानि
प्रथमे परिशिष्टे मूलगाथाद्यांशाः द्वितीये परिशिष्टे उदयस्वामित्वम् तृतीये परिशिष्टे सत्तास्वामित्वम्
समिति का ट्रस्टी मंडल
पृष्ठाङ्काः
२-७
७-९
९-११
११-३१
३१-४१
४२-७६
१-२८
१-१३
१४-२३
२४-२८
शा. खूबचन्द अचलदासजी
शेठ रमणलाल वजेचन्दजी
शा. समरथमल रायचन्दजी मंत्री शा. हिम्मतलाल रुगनाथजी शा. लालचन्द छगनलालजी मंत्री शा. जयचन्द
भबुतमलजी
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अध्याञ्जली :
परमशासनप्रभावक सुविशाल गच्छाधिपति व्याख्यानवाचस्पति पूज्यपाद स्वर्गीय आचार्य भगवंत श्रीमद् विजयरामचन्द्रसूरीश्वरजी
महाराजा
की पवित्र स्मृति में
- फ 5 ::
भवदीय गुणगणानुरागी श्राचार्यविजयवीरशेखरसूरि
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Param Shasan
Prabhavak Tapogachchhadhipati Vyakhyan-Vachaspati Acharydev
1212
Shreemad Vijay Ramchandra Surishwaraji Maharaja
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अथ
आचार्यश्रीविजयवीरशेखरसूरिरचितं सत्ताविहार
(सत्ताविधानं)
तत्र
स्वोपन - हेमन्तप्रभाचूर्णिसमलङ्कृता
उत्तरपयाडसता
(उत्तरप्रकृतिसत्ता)
परिशिष्टविकयुतः
पूर्वार्धः
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अध्याञ्जली :
गीतार्थमूर्धन्य निःस्पृहशिरोमणि गच्छहितचिन्तक परमपूज्य
स्वार्गीय आचार्य भगवंत श्रीमद् विजयहीरसूरीश्वरजी
महाराजा
पवित्र स्मृति में
भवदीय गुणानुरागी श्राचार्यविजयवीरशेखरसूरि
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નિં:સ્પૃહ શિરોમણ ગીતાર્થ મૂર્ધન્ય
ગચ્છહિંત ચિંતક
| સ્વઃ પરમ પૂજ્ય આચાર્યદેવ શ્રીમદ્ વિંજક્ય હીર સૂરીશ્માજી મહારાજ
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॥ श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नमः ॥ बोप्रात्म-कमल-वोर दान-प्रेम-रामचन्द्र-होरसूरीश्वरसद्गुरुभ्यो नमः ।
मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं सत्ताविहारणं
(सत्ताविधान)
तत्थ स्वोपज़हेमन्तप्रभाचूर्णिसमलकृता उत्तरपडिसत्ता
(उत्तरप्रकृतिसत्ता)
पूर्वाधः हेमन्तप्रमाणि:-अह सिरिवोरंणमिउं, चुणि हेमन्तपहमुवदिसिस्सं ।
हेमन्तप्रमाणि:- सत्ताविहाणउत्तर-पयडपणमिऊणं ।
अह सचउरिविभूषण-सिरिवीरजिणेसरं पणमिऊणं । मणिमु गुरुकिवाअ सपर-हियत्थमुत्तरपयडिसत्तं ॥१६॥
(हे.चू.) "अह" इच्चाइ गाहा मंगलाइच उगपडिवादिगा सुगमा, पुरवेण गयत्था ॥१०॥
॥ अथ पञ्चाधिकाराः ॥ १ ग्रह अहिगारा वोच्छदि
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२] मुनिश्रीवोरशेखर विजयरचिते सत्ताविहाणे | अधि-द्वार. सत्पद। या इहुत्तरपयडि- सत्तार पर्याड ठाण - भूगारा 1 पयणिक्खेवो वडी, पण अहिगारा जहाकमसो ॥ १६१॥ तेसु पयडिआईसु, अहिगारेसु हवन्ति दाराणि । पणरस चउदस तेरस, तिष्णि य तेरस जहाक्रममो ।।१९२।। (हे. वू.) "या" त्ति गाहाजुगलं कंठमहिगारणाम-तद्दारसंखदरिसगं ।। १११-१९२॥
| अथ प्रथमप्रकृत्यधिकारद्वाराणि || इयाणि पढमडिअहिगारदाराणि भणदिअह विष्णेयाणि पयडि अहिगारम्मि पढमम्मि संतपर्यं । सामित्तसाइ आई, कालंतरमणियाता य ॥ १६३॥ भंगविचयो उ भागो, परिमाणं खेनकोसणा कालो । अंतरभावtपबहू, पणरमदाराणि जहकमसो ॥१६४॥ (हे. चू.) "अह' त्ति गाहादुगं पणरसदारणामणिमगं पाठसिर्द्ध ।। १६३-१६४ ।।
॥ अथ प्रथमं सत्यद्वारम् 1 संपदं संतपयदारं कहिज्जदि
॥ १९५॥
1
सत्ता-सत्ताऽस्थि पर्याड अडवण्णा हियस्यस्स ओघव । तिणरदुपर्णिदितमपण-मणवय का उर लवि उवेसु कम्मतिवेअकसाय - चउगतिणाणति अणाणअजएस' तिदरिसणछलेसाभवि-सम्मुवसमवे अगेसु तहा ॥१९६॥ मिच्छे सणिम्मि तहा, आहारियरेसु होइ सत्तेचं | ( गीतिः ) संजम - समइअ - छेए-ऽवि परे विंति विण णिरयतिरियाऊ || १६७ || णिरये पढमाइणिरय- तिगे सुराउं विणा जिणसुराऊ । तुरि श्रइतिणिरयेसु दु आउजिणं विण चरमणिरये ॥ १९८ ॥
-
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द्वारम् ] स्वोपज्ञ-हेमन्तप्रभाचूर्णि-समलङ्कृतोत्तरपडिसत्ता [ ३ तिरिये पणिदियतिरिय तिगे य सासाणमीसअमणेसु । मत्ता सगवण्णाहिय-सयपयडीणऽत्थि विण तित्थं ॥१९॥ असमत्तपणिदितिरिय-मणुयपणिंदियतसेसु सव्वेसु । एगिदियविगलिंदिय-पुहवीसलिलवणकायेसु ॥२०॥ जिणणिरयसुराऊ विण, पणवण्णाहियसयस्स पयडीणं । णिरयाउं विण देवे, अडज्जकप्पाइदेवेसु ॥२.१।। आणतपहुडीसु विण दु-आऊ एगे अवेअअकसाये । सुहमाहक्खायेसु वि, एवं इहरा विणा अणदुआऊ ।।२०२॥ (गीतिः) भवणतिगम्मि विणा जिण-निरयाऊ सचतेउवाऊसु। तित्थतिआऊ विण विण, णिरयसुराऊ उरलमीसे ॥२०३।। विक्कियमीसे विण पर-तिरियाऊ अस्थि केवलदुगम्मि । साय असायणगउग--•णामणवइउच्चणीआणं ॥२०४॥ णिरयतिरिक्खाऊ विण, आहारदुगमणणाणपरिहारे । देसे ओघव्य भवे, अण्णे बिति विण णिरयाउं ॥२०५।। मीसं सम्मं तिथं, आहारगसत्तगं विणा अभदे । आइमकसायदंसण-तिगहीणा-ऽस्थि खइए सत्ता ॥२०६॥ णिरयपढमाइतिगिरय-सुरजअडकप्पविउवमीसेसु। (गीतिः) अस्थि असत्ता-ऽऽउगद्ग-दंसण आहारसत्तगजिणाणं ॥२०७॥ अणचउगसम्ममीसदु-आउगआहारसत्तगाणऽस्थि । (गीतिः) तुरिआइणारगमवण-तिगे तमतमाअ उण विण णराउं ।।२०८।। दसणविउवाहारग--सत्तगणिरयणरसुरतिगुच्चाणं। (गीतिः) तिरिये पणिदियतिरिय-तिगेणवरिजोणिणीअमिच्छृणा ॥२०॥
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४] मुनिश्रोवोरशेखरविजयरचिते सत्ताविहःण । सत्पदअसमत्तपणिदितिरिय-सव्विगविगलऽक्खपंचकायेसु (गीतिः) दंसणिग्यसुग्दुगणर-तिगविउवाहारसत्तगुच्चाणं ॥२१०॥ णवरि विणा सयलागणि-वाऊसु णराउगं अपजणरे । विगलब्धिगवीमाए, णरतिगउच्चणमतिरियाऊणं॥२११।।(गीतिः) णराउगइपणिदिय-सुहगादेयजमतसतिगुच्चूणा । (गीतिः) तिणरविरईसु णिरय-व्वाणतपहुडीसु विण तिरिक्खार ।।२१२।। दुपणिदितसमवीसु ति-तमसुभगादेयज सपणि दणा । (गीतिः) असमत्तपणिदितसे, विगलव्व पर सतिरियाऊ ।।२१३।। अस्थि तिमणसच्चवयण-सुक्कासु सयलघाइआऊणं । तेरसणामाण तहा, आहारगसत्तगजिणाणं ॥२४॥ तेत्तीमघाइआउग-च उगजिणाहारसत्तगाण तहा । तेरसणामाणऽत्थि उ. दुमणवयतिणाणओहीसु ॥२१५॥ सगचत्तघाइआउग -चउक्कदेवदुगतेरणामाणं । विउवाहारगसत्तग-तित्थाण हवेज्ज दुवयेसु ॥२१६।। हवए कायउरलदुग-कम्माहारेसु घाइपाऊणं । जिणतेरणामणरसुर-दुगविउवाहारसत्तगुच्चाणं । २१७ । (गीतिः) चउआउतित्थदंसण-आहारगसत्तगाण वेउव्वे । ते उपउमासु देसे. सम्मं विण वेअगे एवं ।।२१८॥ आहारदुगे णेया, दंसणसत्तगसुराउतित्थाणं णपुमदुवेाण कमा, इत्थीपुरिसेसु वेएसु ॥२१९।। तीसु वि थीणद्वितिगति-दसणवारसकसाय आऊणं जिणतेरणामणरसुर-दुगविउवाहारसत्तगुच्चाणं ॥२२०।। (गीतिः)
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द्वारम् ] स्वोरज्ञ हेमन्तप्रभा चूणि समलङ्कृतोत्तरपडिसत्ता [ ५ गयवेए अकसाये, केवलजुगलम्मि सम्मत्ते । खइआणाहारेसु, सप्पाउग्गाण मन्वेसि ।।२२१।। (उपगीतिः) कोहाईसु पुमश्च स-हस्सछगपुमा परंतु माणतिगे ।(गीतिः) इगदुतिमंजलणाणं, मणणाणम्मि अवाहिन्य अतिआऊ ॥२२२ । अण्णाण दुगे मिच्छे, जिणविउवाहारसत्तगुच्चाणं । (गीतिः) दंमणणिरयणरसुरदु-गाउणेवममणे अजिण साऊ १२२३ । विभंगम्मि दुदमण-आलजिणाहारसत्तगाणऽस्थि । (गीतिः) दुमणव्यथि समइए, छेए अदुणि हलोहमणुयाऊ ॥२२४॥ विउवव्य तिअ उं विण, परिहारे ममइअव्व विण सुहमे ।(गीतिः) आउदुगं अहखाये, सपा इग्गाण तिणव्व ॥२२५।। अजयासुहलेमासु, तिरिव्व णवरि तिरियाउतित्थाणं (गीति:) अभवे चउआउणिरय-णरसुग्दुर्गावउवसत्तगुच्चाणं ।।२२६॥ तेत्तीसघाइआउग-जिणविउवाहारसत्तगुच्चाणं । तेरसणामणरअमर-दुगाण गणियरसण्णीसु ॥२२७॥ अणतित्थाण उवसमे, मीसे अणमम्मगाणऽणाणऽण्णे । तहि दोसु सासणे य अ-सत्ता आहारमत्तगाऊणं ॥२२८। (गीतिः)
(हे.चू.) "सत्ता" इचाइचउतीसगाहा, तत्थ प्रोहओ. देसूण. द्धगाहाअ सव्वेसिमुत्तरपयडीण अडवण्णाहियसयपयडीण सत्ताध प्रसत्ताअ रा संतपयं दरिसिदं । तहा मग्गणासु उत्तरपयडीएम देसूणगाहाबारसगेण सत्त' बावीमग हाहि असत्ताप्र संत यं निरूविरं सामण्णो मिच्छाइउवसंततामण्णयरजीवाण पवेसे सवपयडीण सत्ता पाविज्जइ । केवलं तिरियणिरयाऊरण अप्पमत्ताओ
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६ ] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे | सत्पद-स्वामित्वउरि सत्ता ण लहिज्जदि, तस्सत्ताकाण सेढीआरम्भाभावादु । मयंतरेण पुरण तिरियाउस्स देसविरयासो णिरयाउस्स य अविरय. सम्मट्टिीओ गुणाणाप्रो उरि सत्ता रण सिपा, तस्संतकम्मिगाण सम्वविरयाइ रिणामालाहादो। जिरयेसु सुराउस्स सत्तमणिरये णराउस्स वि, देवेसु णिरयाउस्स, प्राणयपहुडिसुरेसु तिरियाउस्स वि लद्धि अपज्जत्तभेएसु एगिदिय-विलिदियभेएसु ओरालियमिस्स. जोगे य णिग्यसुराऊण विविकय मिस्सजोगे य णरतिरियाऊण बंधाभावेण तत्तस्संतकम्मिगाभावेण य सत्ताअ अभावो हवदि । बीप्र-तइ प्रगुणठाणे चउत्थाइणिरयेसु तिरिक्खेसु लद्धि अपज्जत्तेसु भवणवइ-वतर-जोइमसु रेसु असणीसु जिणणामसंतकम्मियाण अपवैसेण जिणणामबंधाभावेण य जिणणामस्स सत्ता ण हुवदि । जे प्रारिमा उसमसेढोप्रारंभे प्रणताणुबधोण उवसमणमंगीकरंति तेसिमहिपाएण अवे प्राइमग्गरणाच उगे ऽणताणुबंधिसना लहदे। अण्णहा-ऽवस्सं विसंजोजणाअ सत्ता ण होदि । केवल दुगे सजोगि वलिणो प्रासिज्ज जहुत्तपयडीण मत्ता लहदि । भव्व. पाउग्गदरूपयडी वज्जिअ सेसपयडीण सत्ता अभवे हवे।
सिद्धाण पवेसे सदि सव्वपयडीणमसत्ता भवदि । मग्गणासु उण मग्गणापाउग्गाण मत्वपयडीण असत्ता बोद्धन्वा । जदो जाण पय होम सत्ता अस्थि ताण चिन पयडीण असतानवियारो कीरइ, जारण सत्ता य्येव ण भोदि ताण 'मूलं गतिथ कुप्रो साहा' त्ति णायेण वियारणाम चेव प्रणयगासो, प्रदो मग्गणापाउग्गाण त्ति उत् णेयं । धुवसत्ताकप्परहिप्राण अधुवसत्ताकाण पयडीण प्रसत्ता भुवदि, मधुवसत्ताकत्तणाचिय । जहसंभवं खीणसत्तगमत्था खाइप्र. सम्मदिट्रिमासिज्ज दसणसत्तगस्सा-ऽणताणबधिचउग-दसणमोह. नीयत्तिगलक्खणस्स विसंजोजणावेक्खा वि अणंताणुबंधिचउकस्स, सम्मत्तमोहनीय-मिम्समोहनीयाण पुण पुरिमुशाऽधुवसत्तागहे उणा वि प्रसत्ता विज्जदि । सेसपयडीण जहजोग्गं खोवगसेढो-ख णमोह
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द्वारे ] स्वोपज्ञ हेमन्तप्रभाचूरण समलङकृतोत्तरपदसत्ता [ ७ सजोगिकेवलि-अजोगि के वलिरगो पडुत्र प्रसत्ता विज्जदे || १६५-२२८|| ॥ प्रथ द्वितीयं स्वामित्वद्वारम् || प्रहुणा सामित्तदारं पडिपाडिज्जइविग्वणवावरणाणं, सत्तासामी उ खीण मोहंता गिद्द | दुगस्स दुचरम- समयंता खीणमोहस्स थीणद्धि तिगसुराउग - मोहणिरयतिरियआयवदुगाणं जाइच उगथावरदुग-साहाराण उवसंतता अरमत्तंता ऽणाण व खवगं तु पडुच्च दंसणसगस्स | ( गीतिः ) अणि असिंख मागा. जा सोलसथीनगिद्विपहाणं ॥२३१॥ ताउ कमा ऽहियऽहिययर- भागता अस्थि अडकलायाणं ।
॥२२९॥
1
॥२३०||
·
॥२३२॥
पुमित्थिहरुमछगपुम-अतिमको हमयमायाणं सुमंता विण्णेया अतिमलोहस्स अडकसायाओ । पच्छा भणन्ति अण्णे, सोलसथीणद्धिआईणं ॥ २३३॥ अजोगिता, दुवे अणी अमणुया उगगईणं । पंचिदियतसतिग सुहगादेयजमउच्चाणं ॥ २३४ ॥ अमर्त्तता तिरिणिरयाऊण कमाऽत्थि देमसम्मता | गीतिः) अण्णे बिंति जिणस्स उ, अजोगि ता अमीससासाणा || २३५ ।। या बासीईए, सेसाण अजोगिदुचरमखणंता I के चरमसमयंता, भणन्ति मणुयाणुपुब्बीए ॥२३६॥ तित्थाहारगसत्तग- णिरयतिरिसुराउगाणं सव्वे वि । अस्थि असत्तासामी, सम्माई हुन्ति मिच्छस्स ॥ २३७॥ मिच्छा तह सम्माई, मीसस्स हवेज्ज मिच्छमीसाई । सम्मस्स मीसपमुद्दा, पढमकसायाण बोद्धव्वा ॥ २३८ ॥
या
•
तह
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८] मुनिश्रीवी शेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे । स्वामित्व. देसंता तह सिद्धा. णराउगस्स इयराण अवसेसा । (गीतिः) णवरं मिच्छा वि णिरयणरसुग्दुगविउवमत्तगुच्चाणं ॥२३९॥ सत्तासामी तिमणुय-दुपणिदितसभवियेसु ओघव्व । आसिज्ज जीवभेआ, सप्पाउग्गाण ओघव ॥४०॥ पणमणवयकाय उरल- चउवेअकसायणाणपणगेसु । (गीतिः) संजमममहअछेअग-अहखायदरिमणच उगसुक्कामु ॥२४॥ सम्मखाअमण्णीसु, आहारियरेसु होइ ओघव । . अणच उगआऊणुव-समे-ऽस्थि सव्वे वि सेसाणं ॥२४२॥ सव्वे वि अत्थि अण्णह, सप्पाउग्माण णवरि तित्थस्स ।(गीतिः) गिरयऽजतिणिरयवि उव अजयकुलेसासु सामणदुगूणा॥२४३॥ सव्वणिरयेसु तिरियति-पणिदितिरियेसु भवतिगे । मासणहीणा गोया, आहारगमत्तगस्स खलु ॥२४४॥ (उपगीतिः) निरिचउगे देसजई, ण व णिरयाउस्स हुन्ति सम्माच्च । . . देवे . मोहम्माइग-गेवितेसु तित्थम्स ॥२४५।। घाइतिरियाउतेरस णामाण सजोगिणो णुरलमीसे ।। कम्मे तिन्थस्स उरल-मीसे सासाणमिच्छृणा ॥२४६॥ सासणसजोगिरहिआ, कम्मे णिरया उगस्स विण्णेया । देवाउस्स सजोगी, विण तित्थस्स उ अमामाणा ॥२४७॥ विक्कियमीसे सासण-रहिआ णिरयाउतित्थणामाणं । तित्यस्स अणाणतिगे,सासणवज्जा मुणेयव्वा ॥२४८॥ णारयतिरियाऊणं, ओघव हवेज्ज तेउपम्हासु । परिवज्जिअ सासायण-मीसा तित्थस्स विण्णेया ॥२४॥
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द्वारम | स्वोपज्ञ-हेमन्तप्रभाचूणि समलङ्कृतोत्तरपडिसत्ता | . णिरयतिरिक्खाऊणं, ओघव्व उवसमवेअगेसु खलु । (गीतिः) मिच्छाइतिगावरहिआ, अणस्म ण व उसमे अपुवाई ॥२५०॥ सवह असंतसामी, सजोगीवा पडुच्च ओघव्य । (गीतिः) समजोग्गाण परं जहि, खइआ ण तहि ॥ दुगस्त सम्माई॥२५१॥ तिदारसणाण तिरितिगे,देमा ण णराउगस्स उण खइए । गीतिः) णिरयदुगस्स ण मिच्छा, णवसु सुराउस्स ण दुइआमीसे ॥२५२॥ ___ हेचू०) “विग्ध०" इच्चाइगाहा चउवीसा सामित्तदारसक्का णिगदसिद्धा । तत्थ प्रोहदो गाहाटगेण सत्तासामो गाहातिगेण प्रसत्तासामी य त्ति एकादसगाहाहि भणिदं । पाएसत्तो मग्गरणासु गाहेगादसगेण सत्तासामो गाहादुगेण असत्तासामी यत्ति गाहातेरसगेण कहिदं । तस्थ प्रोहदो कम्मत्थवणामदुइअकम्मग्गंथेण संतपदेण य गयत्थं । तहाहि-खवगसेढि-उवसमसेढि-खाइगसम्मदिद्विप्राई पडुच्च नहा धुवाऽधुवसत्ताकत्तेण य समतान्तरं जहुत्तसामित्तलाहो संतपददरिसिदमयंतरेण तिरियणिरयाऊण सामित्तविसंसो। तहेव ससजीवमेा पडुच्च मग्गरमासु वि सत्ताऽसत्तासामिणो सयं या, सुगमपायत्ता। मिच्छत्त-मास-सम्मत्ता ऽणताणुबन्धिच उगाण कमेण पढमादिगुणठाणत्तिग-बोप्राइगुणठाणदुग-दुइअगुणठ ण-पढमादिगुणठाणदुगेसु धुवसत्ताकत्तणेण सेसुवसंततेसु गुणठणेसु अधुवसत्ताकतेण य तह गराउस्स प्रमत्तसंजदपहुदिप्रजोगिकेवलिपज्जतेसु धुवसत्ताकत्तेण सामित्तबिसेसो णेया दुइप्र-तइप्रगुणठाणदुगे जिण. णामस्स सत्ता ण भोदि, देवभेदसु ओरालियमिस्से य पढमगुणठाणे वि । विउव्वमीसे कम्मे बिदीयगुणटाणे जिरयाउस्स सत्ता गस्थि दुदीयगुणठाणेण सह णिरये अणुप्पादादो। इच्चाइविसेसो सयमुज्झो ।।२२१-२५२।।
॥अथ तृतीयं साधादिद्वारम् ॥ संपदि सादिप्रादिदारं पठदि
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१० ] मुनिश्रीवीरशेखर विजय रचिते सत्ताविहाणे साद्यादिद्वा० माइप्रणाइधुवियरा, अणाण सत्ता अणाइधुवअधुवा । धुवसंताणऽण्णेसि, सेसाणं साइअधुवाऽस्थि ॥२५॥ साइधुवा.ऽस्थि असत्ता, धुवसत्ताण अणचउगवजाणं । णेया बत्तीसाए, अण्णाणं साइधुवअधुवा ॥२५॥ सत्ता ओघव्य भवे, अचक्खुभवियेसु णवरि णत्थि धुवा । (गीतिः भविये धुवसत्ताणं, चउहा दुअणाणअजयमिच्छेसु ॥२५५|| अभवम्मि अणाइधुवा, हवेज्ज पंचमु वि अधुव पत्ताणं । ' सप्पाउग्गाण दुहा, सव्वेमिं अस्थि सेमासु ॥२५६ । निदरिसणमोहचउप्रण-सुराउआहारसत्तगजिणाणं । (गीतिः) गयवेए अकमाए, तिहा असत्ता-ऽस्थि माइधुवअधुवा ॥२५७।। मम्मे होइ तिहा चउ-अणाउआहारसत्तगजिणाणं । (गीतिः) आउद्गाहारगसग-मिणाण खइए तिहा अणाहारे ।।२५८॥ घाइणिश्यतिरिणरसुर-तिगविउवाहारसत्तगाण तहा । चउ बाइजिणायवथावरदुगसाहारणुच्चाणं ॥२५९।। सेसाण पंचसु वि साइधुवा केवलदुगेऽस्थि सव्वेसि । सप्पाउन्गाणं खलु, सेसासु साइअधुवाऽत्थि ॥२६०॥
(हे.च.) "साइ०" इच्चाइगाहाटगं सुगमं । तत्थ प्रोहदो एगाअ गाहाअ सत्ताअ अण्णा असत्ताम ति गाहादुगेण णिरूविदं । पाएसत्तो गाहादुगेण संताप गाहाचउक्केण प्रसत्ताअ ति गाहा. छक्केण प्ररूविदं । विसंजोजिआणताणुबधीण पुणो पादसंभवेण मणताणुबंधिचउक्कस्स सत्ताअ साइत्तं संभवदि । ण पुरण सेसधुव. सत्ताकाण छठवीसोत्तरसयपयडोण तेसि सत्तुच्छेदे पादप्रभवर्णण पुण
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कालद्वा ] स्वोपज्ञ - हेमन्तप्रमाचूर्णिसमलङ्कृतोत्तरपयडिसत्ता | ११ सत्ताअ प्रभवणादु साइतणं णत्थि । सव्वारण तीसुत्तरसदपयदोण धुवसत्ताकाण अणाइकाल दो संततिभावेण वत्तणादु सत्ताअ अणादितणमत्थि । श्रभव्वमासिज्ज कया वि प्रणुच्छेदेण धुवा । भवियमहिकिच्च विच्छेदसंभत्रा अधुवा । सेसपयदीरण अट्ठावीसाध प्रधुवसत्ताकत्तेण य्येत्र प्रणादिदा धुवदा य ण संभवदि, सादिदा अधुवदा य संभवदि ।
सतुच्छेदेण य्येव असत्ताअ लाहादु असत्ताअ अणादितणं णत्थि, सादित्ताय प्रत्थि । अधुवसत्ताकाण पुरण प्रधुवसत्ता कोण वि अणाइत्ता ण होदि, सादिशं य भर्वाद । ध्रुवसत्ताकाण अनंताणुबंधिवज्जाण छव्वीसुतरसदवयदोण उण पातश्रमावादी असत्ताअ अधुवदा ण हुवदि । अताणुबंधीण उण विसजोजिघ्राणं ताणबंधीण पदरणस्स संभवादु सेसाण प्रट्ठावीसाअ प्रधुवसत्ताकत्तणेण य अमत्ताअ बत्तीस यडोण प्रधुवदा प्रत्थि सिद्धा पडुच्च पादस प्रभावादु सव्वेमिट्ठावनाहियस दपयदीण असत्ता धुवदा प्रत्थ ।
एवं मग्गणा वि ओह गुमारेण सप्पाउग्गाणं सव्वपयदीरण सत्ताअ असत्ताअ अ साइप्राइस सयं बुज्झ । केवलं छउमत्थ-भवस्थI सिद्धाइजीवा पडुच्च मग्गणाण तहत दु तहातणं विष्णेयं । २५३ २६० ।। ॥ श्रथ चतुर्थं कालद्वारम् ||
अहुणा कालदारं निगवदि
कालो अणाइणती, अणाहसंतो य साइसंतो य । (गीतिः) तिविहो सत्ताए चउ अणाण तइओ लहू मुहुत्तो ॥ २६१ ॥ देखणद्धपरट्टो, जेट्ठो सेसधुवसंत कम्माणं
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दुविहो अणाइतो, अनाइसंतो मुणेयब्बो ॥२६२॥ णिरय- सुराऊण लहू. हवेज्ज दस साहिया सहस्ससमा । जेट्ठोऽत्थि पुव्वकोडिति भागहिया जलहितेत्तीसा ॥ २६३ ॥
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१२ । मुनिश्रीव रशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे । काल.
अहिया समा अड णिरय-णग्सुरदुगविउवसत्तगुच्चाणं । हस्सो जिणस्स साहिय सहस्सचुलमीइवासाणि ॥२६४ । सेसाण मुहत्तंतो, लहू गुरू सम्ममीसमोहाणं । (गीतिः) . अहियदुतीसुदहिसयं, अहियणरगुरुट्टिई जगउम्स ।।२६५।। जेट्टो तिरियाउमणय दुगउच्चाणं असंखपरि अट्टा । पल्लासंखियभागो, आहारगसत्तगम्स भवे ॥६६॥ ' विउवेमारसगस्स य, हवेज अहियतसजेटकाठिई । तित्थस्स ऊणपुव्वदु कोडि जुआ जलहितेत्तीसा ॥२६७।। अम्मत्ताअ अणाणं, साई अणंतो य साइसंतो य । दुहअस मुहुत्तंतो, लहू गुरुदहिदुतीससयं । २६८।। साइअणंतो-ऽण्णेसि, धुवसत्ताणऽस्थि साइसंतो वि । चउ आउणिरयणरसुर--दुगविक्कियसत्तगुच्चाणं ॥२६॥ अंतमुहुत्तमणू पण-रसण्ह उ खणो उ गरदुगुच्चाणं । जेट्ठो असंखलोगा, तिरियाउस्स जलही सयपुहुत्तं ।।२७०॥(गीतिः' होइ असंखपरट्टा, चउद्दसण्हं दसह सेसाणं । (गीतिः अभविअपाउग्गाणं, अणाइणंतो अणाइसंतो य ॥२७१॥ साइअणंतो तह जिण-वज्जाण णवण्ह साइसंतो वि । तुरिअस्स खणो व लहू, जेट्ठो ऊणद्धपरिअट्टो । २७२॥ . तिरिमणयाऊण सयल-णिरयसुरेसुलहू मुहुर्ततो (गीतिः सत्ताअ गुरू मासा, छोघव्वा-ऽऽहारसत्तगस्स गुरू ॥२७३।।
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द्वारम ] स्वोपज-हेमन्तप्रमाणिसमलङ्कृतोत्तरपर्याडसत्ता [ १३ पल्लामंखियभागो, लहू वि पणऽणत्तरेसु समयो वा । णवर्गविज्जेसु भवे, समयो सेससुरणिरयेसु ॥२७॥ णिरयपढमणिरयेसु, तित्थस्स महस्सवासचुलसीई । हस्मो अहियलहुठिई, णिरयदुर्ग-soणासु अल हुटिई ।।२७५।। णिग्यताअणिरयेसु. गुरू अहियतिअयग ऽस्थि णिरयदुगे। ऊणा गुरुकायठिई, देवेसु जेट्टकाठिई · । २७६।। भिन्नमुहुनमणाणं, चरमणिरयपणअणुत्तरेसु लहू । (गौतिः) बत्तीसाए ममयो, अडतीसाए वि सम्ममीसाणं ।।२७७ ।
वरि पणऽणुत्तरेसु, मासम्म भवे जहण्णकायटिई । मबह सेमाण लहू, लहुट्टिई गुरुठिई जेट्ठो । २७८ । सियराउतिगम्म लहू, होइ तिरिपणिदितिरिणरतिगेसु। भिन्नमुहत्तं जेट्टो, कोडितिभागोऽथि प्रचाणं ॥२७९।। साउअणरहि अधुवसत्ताण लहू लहुठिई खणोऽण्णेसि । ... गरि णिरयणरसुग्दुग-वेउब्धियसत्तगुच्चाणं ॥२८० । तिरिये लहुकार्याठई, तिणरेसु हवेज गरदुगुच्चाणं ।। तित्थस्स मुहुत्तंतो, तहि जेट्टो पुचकोडी से ॥२८१।। सत्तप्तु वि मग्गणासु, ओघव्वाहारसत्तगस्म गुरू । सेसाणं पयडीणं, हवेज्ज ससजेट्टकाटिई १२८२॥ जवरि तिरिये तिपल्ला, अमहिया होइ सम्ममासम्म ! विउवेगारसगस्स य, ओघव्ध गरदुगउच्चाणं ॥२८.३५, अप्पजत्तपणिदिय-तिरियपणिदियत से सु .. सम्वेसु. ।।. एगिदियविगलिंदिय-पणकायेसु . असण्णिम्मि। ॥२४॥
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१४ । मुनिश्रोवीरशेखर विजय रचिते सत्ताविहाणे [ काललहुजेडो धुवसत्ता - तिरियाऊण लहुजेटुकार्याठई । (गीतिः) वरि पर्णिदितसेसु, तिरियाउस्स उ लहू मुहुत्त्तो ||२८५ || सेसाऊण जहण्णो, भिन्नमुहुत्तं पणिदियतसेसु 1 जेडो विभवे अण्णह, होइ सगुरुभव ठिइतिभागो ||२८६ ॥ सेसाण लहू समयो, गुरुकायठिई गुरू भवे णवरं । लहुकायठिई णरदुग- उच्चाणे गिदियम्म लहू ||२८७|| विउवेगारसगस्स व अमणे सिं चउदसह वि लहुठिई । एगिंदिये णिगोए, पण काछवायरो हेसु ।। २८८ । । · छोह हम भेएस पत्ते अवणे तहा अपण्णिम्मि । पल्लासंखियभागो, गुरु रदुगुच्चवजवीसाए || २८९|| (गीति ते अणिलेसु तेसिं, सुहमोहेसु तह बायरोहेसु । पल्लासंखंसो णर- दुगउच्चाणं पि होइ गुरू ॥ २९०॥ असमत्त पणिदितिरिव्व अपजणारे परं दुआऊणं । वच्चासो होइ लहू, लहुट्टिई णरदुगुच्चाणं ||२९१॥ .. ओघव्वाउजिणाण दु-पणिदितसचक्खुसण्णिगेसु लहू । ( गीतिः ) आहारेऽन्तमुहुत्तं, सत्तसु सेसाण सगुरुकार्याठिई ||२२|| प्रेसाण लहुठिई पर-माहारेऽणचउगस्स समयोऽत्थि । (गीति
सुवोधव्व दुदंसण-तिआउआहारसगजिणाण गुरू ||२९३ || विवेगार सगस्स वि, ओघव्वाहारगे ऽहियतिपन्ला । ( गीतिः ) तिरियाउस्स छसु भवे, सत्तसु सेसाण सगुरुकायठिई || २६४ || । (गीतिः) -
घाइचउआउजाइणिरयतिरिसुरथावरायवदुगाणं विउवाहारगसगजिण - साहाराण समयो लहू काये || २६५||
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द्वारम् ] स्वोपज्ञ-हेमन्तप्रभाणि समलकृतोत्तरपर्याडसत्ता [ १५
सेमाण मुहुत्तंतो, गुरू उण णिरयसुरा उतित्थाणं । अब्भहिया सत्त भवे, सहस्सवासा णराउम्स २९६।। विवाहाम्गमत्तग-णारगदेवदुगसम्ममीसाणं । पल्लामंखियभागो, सेसाणं जेट्टकार्याठई ॥२६७॥ उरले मव्याण लहू, समयो जेट्ठो दुआउतित्थाणं । भिन्नमुहत्तं गुरुभू-भवठिइतसो गराउस्म । २६८॥ सेमाणं जेठिई, घाईगं सम्ममीमवज्जा । निरियतिगथावरायव-दुगमाहारचउजाईणं ॥२६९॥ मिनमुहुत्तं दुविहो, उरालमीमम्मि मनवणाए । सेसाण लहू ममयो, भिन्नमुहुत्तं गुरू यो ॥३००।। सम्मम्मीसाहाग्ग-मत्तगपयडीण विउवमीसम्मि । समयो लहू गुरू उण, भिन्नमुहत्तं दुहा- गणेसि ।३०१ ।
आहारमीसजोगे, समयोऽस्थि लहू सुर उतिस्थाणं । जेट्ठी भिन्न हुत्तं, दुविहो वि हवेज्ज सेसाणं ॥३०२।। कम्माणाहारेसु, समयो सव्वाण होअइ जहण्णो । णिरयसुराऊण गुरू, दो समया तिणि सेसाण ॥३०३॥ गवरं मिन्नमुहुतं, सिमणाहारे गुरू मुणेययो । पणणवइ अघाईणं, जेसि मामी अजोगी वि ॥३०४।। तिरिणिरयाऊण लहू, मिनमुहुत्तं हवेज्ज इत्थीए । समयो सेसाण गुरू, देवाउगसम्ममीसाणं ॥३०५।।
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| काल
१६] मुनिश्रीवोरशेखर विजय रचिते सत्ताविहाणे अहियपणवण्णपलिया, तिरियणराऊण साहियतिपल्ला । णिरया उग आहारग-सगतित्थाणऽत्थि मणुसिव्व ॥ ३०६ ॥ चउआलीसा हियसय-सेसाण हवेज जेट्ठकार्याठई । (गीतिः) पुरिसे भिन्न मुहुत्तं, लहू जिरयतिरिसुराउतित्थाणं ॥ ३०७ ॥ समयो अणसेस धुव-सत्ताणण्णाण इस्सकार्याठई । (गीतिः) ओघन्त्र दुदंसण जिण सुराउआहारसत्तगाण गुरु ॥३०८|| णिरयतिरिणराऊणं, इस्थिव्वऽण्णाण जेडकायठिई | णिरयाउस्स णपु से, लहू दस सहस्सवासाणि ॥ ३०९ ॥ भिन्नमुहुत्तं णेयो, तिरियाउस्स समयो भवेऽण्णेसिं । साहियतेचीसुदही, उक्कोसो सम्ममीसाणं ॥ ३१०॥ मणुयाउस्स पुडुत्तं विष्णेयो पृथ्वकोडीणं । ( उद्गीतिः) पुव्वाण कोडितसो देवाउस्स णिरयन्व तित्थस्स ।। ३११ ॥ सेसअधुवसत्ताणं ओघव्वऽण्णाण सगुरुकार्याठिई ।
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गयवेए अकसाए, अहखाए य छउमत्थदुविहठिई || ३१२ ॥ (गीति घासुरा उगतेरस - णामाण दुहाऽत्थि एसु सेसाणं । सव्वाण केवलदुगे, दुविहो दुबिहा भवत्थठिईं ||३१३ || आहारसत्तगस्स खणो महसुअसम्भवे अगे लहू । सेसाण मुहुत्ततो, गुरू तिपल्ला दुआऊणं ॥ ३२४ ॥ देवाउजिणाहारग- सत्तगपयडीण होइ ओघव्व । ( गीतिः ) णिरयाउस्सूणजल हि ते तीसा ऽण्णाण अथरछासट्ठी || ३१५|| सव्वाण लहू समयो, ओहिदुगे उअ महव्व जेट्टो वि । (गीतिः वरि तिरिण ऊणं, कमृणअहिया ऽत्थि पुव्वकोडी वा ॥ ३१६
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द्वारम् ] स्वोपज्ञ-हेमन्तप्रमाणिसमलङ्कृतोत्तरपयडिसत्ता [ १७ धुवसत्ताणोघअण-व्वत्धि उ दुअणाणअजयमिच्छेसु । सेसाण मुहुत्ततो, लहू गुरू होइ ओघव्व ॥३१७॥ णवरि लहू तीसु खणो, आहारसगरसहियिगतीसुदही । होइ सुराउस्स गुरू, अजए उण जलहितेत्तीसा ॥३१८॥ अजए जेठो साहिय-तेत्तीसुदही व सम्ममीसाणं । पल्लासंखियभागो, तीसु जिणस्स य मुहुत्तत्तो ॥३१॥ तित्थस्स मुहुत्तंत्तो, समयो व लहू जहागमं होइ । सयमुझो विभंगे, मिन्नमुहुत्तं गुरू होई ॥३२०॥ सेसाण लहू समयो भवे गुरू होइ सम्ममीसाणं । आहारसत्तगस्स य, असंखिययमो पलियभागो ॥३२१॥ णिरयाउगस्स अयरा, तेत्तीसा होइ तिरिणराऊणं । पुव्वाणेगा कोडी, देवाउस्सेगतीसुदही ॥३२२॥ सेसाणं जेट्टठिई, ओघन्च भवे अचक्खुभवियेसु । सव्वाण णवरि भवियेऽणाइअणंतो ण चेव भवे ॥३२३॥ लेसासु लहू समयो, दुदंसणाहारसत्तगाण तहा । वेउव्वेगारसणर-दुगउच्चाणं पि असुहासु ॥३२४॥ तित्थस्स सुहासु रवणो,हवेज्ज सेसाण छसु मुहुत्तंतो । पल्लासंखियभागो, आहारगसत्तगस्स गुरू ॥३२५॥ णिरयाउस्स सुहासु,देवाउस्स असुहासु सुक्काए । (गीतिः) तिरियाउस्स वि जेट्टो, मिन्नमुहत्तं अणाण समयो वा ॥३२६।
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मुनिश्री वीरशेखर विजय रचिते सत्ताविहाणे [ काल
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सुहअ सुहासु कमसो, सुरणिरयाऊण ऊणजेडटिई । ( गीतिः) साऊण छमासा, जिणस्स काऊअ तिअयराऽब्भहिया || ३२७|| भिन्नमुहुत्तं दोसु अ- सुहासु सेसाण छसु वि जेट्ठठिई । धुवसत्ताण अभविये, अणाइतो मुणेयच्वो ॥३२८|| दुखणाण हवा, दुविहो आउचउगस्स सेसाणं । पल्लासखियमागो, लहू गुरू होइ ओघव्व ॥ ३२९॥ णिरयाउजिणारा लहू, वासान्महिया सहस्सचुलसीई । खइए हवेज्ज पल्लं अमहियं तिरिसुराऊणं ॥ ३३० ॥ आहारसत्तगस्स उ, समयो अतोमुहुत्तमण्णेसिं । पल्लासंखियभागो, आहारगसत्तगस्स गुरू ॥ ३३९॥ णिरयाउस्सतिअयरा-ऽहिया तिपल्लाऽस्थि तिरिणराऊणं । सेसाणं पयडीणं, तेत्तीमा सागराऽब्भहिया ||३३२ || सव्वाणपण लहूगुरु- कायठिई लहुगुरू कमा रोयो । णवर कसायतिगे उण, अतिमुहुत्तल हुटिइगमए ॥ ३३३ ॥ | होइ जहण्णो समयो, चउअणमिच्छत्त अधुवसत्ताणं संजम सम अच्छे अग - देसेसु ं पुत्र कोडितंसंतो ||३३४|| (गीतिः) णिरयतिरिकखाऊणं, होइ गुरू आसु चउसु तहा । ( उद्गीतिः) मणणाणे परिहारे, सुराउणो पुत्र कोडितंसोऽत्थि ॥ ३३५ ॥ इह तहुवसमे मीसे, समयो आहारसत्तगस्स लहू । समइअछेएस लहू, वांतमुहुत्तमणच उगस्स ।। ३३६ ।।
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द्वारम } स्वोपज हेमन्तप्रभाणिसमलङ्कृतोत्तरपडिसत्ता [ १६ सव्वणिग्यदेवेसु अ-सत्ताकालोऽस्थि सम्ममीसाणं ।। समयो लहू णवरि पण अणुत्तरेसु लहुकाठिई ॥३३७॥ भिच्छम्म महम्सपमा, चुलसीई णिग्यपढमणिरयेसु । खाइअसहुठिइमाणो, अण्णहऽणाण मुहुत्तंतो ॥३३८।। ऊणा लहुकायठिई, उगाहारमत्तगाण परं । (गीतिः) आहारमगस्स खणो. णिरयज्जणिरयसुरेसु भवणदुगे ॥३३६।। तित्थस्म लहुभवठिई सव्वाणऽस्थि गुरुभवठिई जेट्ठी । (गीतिः)
महियजलहिनिग, गिरये तइणिरये य मिच्छसि ॥३४०॥ णिरयदुगे तम्म अडसु. तिसु य अणाण णिग्यंतणिरयेसु(गीतिः) तिरियाउम्स सुराणय-पहुडीसु णराउगस्स मा ऊणा ।।३४१।। निरिये मिच्छरम अहिय-पल्लं व भवे लहू मुहुत्तंतो । अणच उगतिआऊणं, समयो तेवीमसेसाणं ॥३४२।। अणमिच्छतिपल्ला-ऽण्णो, असंखलोगा ऽथि गरदुगुच्चाणं। विउवेगारस्सूणा, गुरूकाठिई समा-डण्णेसि ॥३४३॥ विउवेगारस्स दुहा, अंतमुहुत्तं पणिदितिरियतिगे । तिरियन्वऽण्णाण लहू, गुरू तिपन्ला-ऽणमिच्छाणं ॥३४४॥ ऊणा गुरुकायठिई, देवाउस्सऽथि गरदुगुच्चाणं ।
तमुहुत्तं गेयो, सेमाणं जेडकायठिई ॥३४५।। वीसापज्जत्तेसु स-जोग्गाऊण दुविहो मुहुत्तंतो । सेसाण लहू समयो, अंतमुहुत्तं भवे जेट्ठी ॥३४६॥
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२०] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे
काल.
तिणरेसु मुहुत्तंतो लहू, उ धुवघाइतेरणामाणं । (गीतिः) देमूणपुवकोडी, गुरू परमणाण तिपलिऊणहिया ।।३४७॥ मिच्छस्सऽणव्व दोसु, आउजिणाणं लहू मुहत्तंतो । सेसाण खणो सुरदुग-विउवसगाणं गुरू मुहुत्तंतो॥३४८॥ (गीतिः) दंसणआउगदुगजिण-आहारसगाण जेट्टकाठिई । देवाउस्सूणा सा, सेसाण गुरू वि समयोऽस्थि ।।३४६।। तिरियव्व सजोग्गाणं, एगक्खे ऊणहस्सकायठिई । मणयाउम्स जहण्णो, सेसेगक्खऽग्गिवाऊसु ३५०॥ सेसाण लहू समयो, गुरू गुरुठिई ममाण एमेव । विगलतिकायपणे सु गरदुगुच्चगुरू पर मुहुत्तंतो ।। ३५१।। (गीतिः) दुपणिदितसेसु णर-व्वऽखिलाण दुहा पणिदितिरियव्व । गरदुगउच्चाण लहू, तमुहुत्त गराउस्स ॥५२॥ परमाउतिगस्स गुरू, अयरसयपहुत्तमस्थि जेट्टाठई । सम्मगमीसणराउग- पाहारगसत्तजिणाणं ॥३५३॥ तेत्तीसा मिच्छस्स अयराऽहिया.ऽणाणउण दुतीससयं । सुरदुगविउवसगाण दु-तसेसु संखियसहस्ससमा ॥३५४ । सव्वाण लहू पणमण-वयविउवाहारचउकसाएसु । समयो अंतमुहुत्तं, गुरू कहिचि काणचि विसेसो ॥३५५॥ कायुरलेसु जहण्णो, समयो सव्वाण गरदुगुच्चाणं । जेट्ठो असंखलोगति सहस्सवासा कमा यो ॥३५६ ।
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द्वारम । स्वोपक्ष-हेमन्तप्रभाणिसमलकृतोत्तरपडिसत्ता । २१ दोसु वि गुरुकाठिई, तिरियाउगवज्जअधुवाणं । चउवीसाएऽत्थि इयर सगवण्णाए मुहुत्तंतो ॥३५७॥ (उपगीतिः) ओगलमीमजोगे, मणुयाउस्म दुविहो मुहुत्त तो । ममयो होइ जहण्णो, एगामीईअ सेसाणं ॥३५८॥ घाइदरिमणसगरहिअ- चत्ताएगारतिग्यिपयडी] होड दुममया जेट्ठो, सेसाण भवे मुहुत्तंतो ॥३५९।। मिच्छाणाउजिणाणं, विउव्वमीसे दुहा महत्ततो । सेसाण णवण्ह लहू, समयो जेट्ठो मुहुत्त तो ॥३६०। आहारमीसजोगे, ममयोऽन्थि लहू सुराउगजिणाणं । जेट्ठो अनमुहुत्त, सेसाण दुहा मुहुत्ततो ॥३६१॥ अडवीसअधुवसत्ता-मिच्छाणाण समयो लहू कम्मे । जेट्ठोऽस्थि तिण्णि समया, दुहा वि सेसेगवण्णाए ।।३३२॥ थीअ जहण्णो सोलस-थीणद्धितिगाइअडकसायाणं । णपुमणरसुराऊणं, देवदुगविउव्वियसगाणं ॥३६३॥ अतमुहुत्त समयो-ऽण्णेसि मिच्छस्स पुनकोडतो । जेट्ठो गुरुकायठिई,दुदंसणाहारसगजिणाऊणं ॥३६४।। (गीतिः) ऊणपणवण्णपलिया, अणाणऽहियतिपलिया सुराउस्स ।
यो अंतमुहुत्त, सेसाणं सत्ततीसाए ॥३६५॥ हस्सछगस्स दुहा खलु, पुरिसे समयोऽत्थि बारसण्ह लहू । सेसाण मुहुत्तंतो, मिच्छाणाणं पणिदियव्व गुरू ॥३६६।। (गीतिः
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२२ ] मुनिश्रीवोरशेखर विजयरचिते सत्ताविहाणे । काल.
यो गुरुकायठिई, दुदंसणाहारसगजिणाऊणं । देवाउस्स तिपल्ला, अहियाऽण्णेसिं मुहुत्त तो ॥३६७ । णपुमे थीए दुविहो, समयो सेसाण होइ थिव्व लहू । मिच्छस्स भवे जेट्ठो, अब्भहिया सागरा तिण्णि ॥३६८॥
यो गुरुकायठिई, चउवीमाए उ अधुवसत्ताणं । (गीतिः) सागरतेत्तीसूणा-ऽणाणं तिरियव्व गरदुगुच्चाणं ॥३६९॥ तिरियाउस्स अयरस र पुहुत्तमंतोमुहुत्तमण्णेसिं गयवेए असाए, साइअणंतोऽथि सव्वेसि ॥३७०।। दंसणआहारगसग-सुगउतित्थाण साइसंतो वि । स लहू ममयो जेट्ठी, अंतमुहुतं दुहा सुगउस्स ।।३७१ ॥(गीतिः। णाणतिगोहीसु दुहा, णिहदुगस्म समयो सगम्स लहू। सेसाण मुहुत्तंतो, तेत्त'सुदही तिदंसणाण गुरू ।।३७२।। (गीतिः) अणचउगाउदुगाणं, आहारसगस्स तित्थणामस्स । साहियछसटिजलही, अहियातपल्ला सुराउम्स ॥३७३।। विण्णेयो देसूणा, तेत्तीमा सागरा गराउम्स । भिन्नमुहुत्तं हवए, सेसाणं सत्ततीसाए ॥३७४।। थीणद्धितिगस्स तहा, बारकसायणवणोकसायाणं । तेरसणामाणं मण-णाणे दुविहो मुहुत्तंतो ॥३७५।। णिहादुगस्स दुविहो, समयो आहारसत्तगस्स लहू । अतमुहुत्तं यो, सेसाण गुरू य पुवकोडतो ॥३७६।।(गीतिः)
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द्वारम् ] स्वोपज्ञहेमन्तप्रभाचूर्णिसमडलकृतोत्तरपडिसत्ता [ २३
सव्वाण केवलदुगे, साइप्रणतोऽस्थि साइणंतविणा । (गीतिः) ओघव्व सजोग्गाणं, दुअणाणाजयअभवियमिच्छेसु॥३७७।। परमत्थि साइसंतो, वि चउसु तित्थस्स कायठिइमाणो । अजए अणमिच्छाणं, गुरू य अहियुदहितेत्तीसा ॥३७८॥ समयो लहू विभंगे, चउद्दसण्हाहियेगतीसुदही । णिरयाउस्सुक्कोसो, सेसाणं जेट्टकायट्टिई ॥३७९।। संजमअहखाएसु, घाइतिउहगवीसणामाण । (गीतिः) अतमुहुत्त तु लहू, गुरू गुरुठिई खणो दुहा-ऽण्णेसि ॥३८०॥ समइअछेएसु दुहा, दुविहठिई सगदुगाउतित्थाण । णवरि सुराउस्स लहू, अंतमुहुत्तं दुहा-ऽण्णेसि ॥३८१॥ सुहमे अंतमुहुत्त, सव्वाण दुहा परं लहू समयो । णेयो दसणसत्तग-आहारगसत्तगजिणाण ॥३८२॥ होइ दुहा परिहारे, देसे सव्वाण दुविहकायठिई । णवरि गुरू देसूणा, गुरुकायठिई सुराउस्स ॥३८३।। णयणे सणिम्मि दुहा, दुतसव्व परं खणो दुणिहाण । (गीतिः) दुविहो तु मुहुत्तंतो, विउवेगारसगखवगपयडीण ॥३८४॥ दुविहो पणणिहाण, बारकसायणवणोकसायाण । तिरियेगारसगस्स य, चक्खुव्व भवे अचक्खुम्मि ॥३८५।। मिच्छस्स मुहुत्त तो, लहू गुरू अहियजलहितेत्तीसा । सेसाण साइणंतं, विण बत्तीसाअ ओघव्व ॥३८६॥
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२४] मुनिश्री वीरशेखर विजय रचिते सत्ताविहाणे
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अणमिच्छा उजिणाण अ-सुइलेसासु लहू मुहुत्तो । (गीतिः) मिच्छणिरया उणरदुग-विउवेगारसग उच्चगाण गुरु || ३८७॥ णवरं मिच्छस्स गुरू, काऊन तिसागराऽब्महिया । माण लहू समयो, गुरुकायठिई गुरु यो || ३८८ | | ( उपगीतिः) वरि अणाणं ऊणा, तिरियाउस्स उण किण्हाए । ( उद्गीति ) समयो लहू दुदंसण - आहारसगाण तिसुहलेसासु ॥ ३८९ ॥ सेसाण मुहुर्त्ततो, गुरू सुराउस वि दुसु जेठिई । अट्ठारसह पुव्वा, चउवण्णाअ सुइलाअ कांडूणा || ३६० ॥ गीतिः) भविये अंतमुहुत्तं, दंसणस गर हिअघाइचत्ताए । तिरियेगारसगस्स य, लहू गुरू ऊणपुब्वकोडी उ ।। ३९१ । । (गीतिः ) दुविहो समयो णेयो, धुवसत्ताणं अघाइसेसाणं 1 सगसडीए - Sण्णाण अ-चक्खुव्व अणाइणंतविणा ||३९२ ||
साइअतो हवेज्ज सव्वेसिं ।
साइअधुवो विकमसो, सोल-दसण्हं लहू मुहुत्ततो || ३६३ ।। (गीतिः ) रणूणा तेत्तीसुदही, गुरू णराउस्स तह सुराउस्स । ( गीतिः ) सम्मे अहियतिपञ्चा खइए - ऽण्णेसिं भवत्थजेडटिई ॥ ३९४ ॥
सम्मत खाइए, सम्मत्तखाइए,
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परमाहारसग जिणाण खणो ऽण उ खइए णराउस्स चुलसीइस हस्ससमा, तित्थगुरू पुव्वकोडितं संतो || ३९५ । । (गीतिः) सव्वाण वेअगेऽण, महव्व जेट्टो उ मिच्छमीसाण । अंतमहुतं ऊणा, तेतीसुदही णराउस्स ॥ ३६६ ॥
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द्वारम् ] स्वोपज-हेमन्तप्रभाणिसमलङ्कृतोत्तरपडिसत्ता [२५ देवाउगस्स ऊणति-पल्ला सेसाण जेट्टकायठिई । सव्वाण मुहुत्तंतो, उवसममीसेसु होइ दुहा ॥३९७॥ णवरि जहण्णो समयो, आहारसगस्स सासणे यो । सव्वाण लहू जेट्ठो, कमसो लहुजेट्टकायठिई ॥३६८|| अमणे आऊण लहू, अंतमुहृत्तं भवे खणोऽण्णेसि । जेट्ठो तिग्यिव्य भवे, छव्वीसाए वि सम्वेसि ॥३६९।। पंचक्खव्वाहारे, सव्वाण परं लहू दुगम्स खणो । णरदुगविउव्वतेरस-उच्चाण गुरू य जेठिई ॥४००। (गीतिः) मव्वाण अणाहारे. अडवण्णाहियमयस्स पयडीण । साइअण तो गेयो, चुलसीए साइसंतो वि ॥४०॥ समयो अणमिच्छ धुव-सत्ताण लहू गुरू तिसमयाऽत्थि । दुविहो वि घाइचत्ता-तिरियेगाग्मगणामाणं ॥४०२ ।
(हे.च.) "कालो" उच्चाइ चायालीसुतरसयगाहाकारदारसक्का पयहत्था। तत्थ प्रहदो गाहासत्तगेण सत्ताकालो गाहापंचगेण असत्ताकालो तह पाएसत्तो चउस ढिगाहाहिं सत्ताकालो छट्टिगाहाहिमसत्ताकालो दरिसिदो।।
तत्थ सामण्णओ प्रोहाएसेहि ध्रुवसत्तागारण धुवसत्ताकप्पगाण य घाईण छउमत्थकायट्रिवितुल्लो अधाईण भवत्यकायठिइसमो सत्ताकालो भवदि, सामण्णण छउमस्थाण भवत्थाण कमसो घाइ. अघाइसत्तासंभवादो।
विसेसदो पुण अणंताणुबंधिचउगस्स ओहे तह आएसत्तो जहि कायट्रिदी साविसंता गस्थि तहि सादिसंतभगगदो सत्ताकालो उक्कोसो देसूणद्धपरिप्रट्टो, जहण्णो अंतमुहुत्तं, सत्तान्तरालकालस्स
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२६ ]
मुनिश्रीवोरशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे | काल
तहत्तणादो, मग्गणापरावत्तिआदित्तो पुण गिरयोहादिमग्गणासु समयमाणो वि जहण्णो सत्ताकालो होदि ।
धुवसत्ताकप्परहिदाण अधुवसत्तागाण पुण जहसंभवमट्ठावोसान अधुवसत्तागत्तणेण चेव सादिसंतभंगगदो चिअ सत्ताकालो लब्मदे।
तह उव्वलणाजोग्गाण तेवीसान पयडीण उव्वलणाकालस्स पल्लोवमासंखभागमत्तत्तेण तदो गुणकायट्ठिदिगमग्गणासु मग्गणागुरुकायटिदिमाणो गुरुसत्ताकालो जहसंभवं ताण संभवदि। ___ तहा मोहे पल्लोवमासंखभागदो अहिगट्ठिदिगासु मग्गणासु वि य जहि जाण केवला उव्वलणा अस्थि बंधादी य गस्थि, थोवकाला वा-ऽत्थि तहि ताण सत्ताकालो पल्लोवमासंखभागोहुवदि, उचलणाकालस्स तहत्तणा । जहा पोहे जिरयगइप्रोधादिमग्गणासु प्राहारग. सत्तगस्स, एगिदियोहादिमग्गणासु सम्ममीसाण वेउव्वेगारसगस्स य, तेउक्कायोघ-वायुकायोहादिमग्गणासु मणुयदुगउच्चगोआण ।
सम्मत्त मीसमोहाण पुण ओघ-पगिदियोह-पज्जतपणिदियतसकायोघ-पज्जत्ततसकाय-पुवेद-चक्खु-प्रचक्खु-भविय-सण्णि-माहारगमग्गणासु साहिय-मिस्संतरियखओवसमसम्मतजिटुकायटिदिदुग. पमाणो साहियबत्तीसुत्तरसागरोवमसयपमिदो गुरुसत्ताकालो होदि, अट्ठावीससंतठाणकालस्स तहत्तणादु। मिस्समोहणीयस्स पुण अट्ठावीस-सत्तावीससत्ताहाणदुगगुरुसत्ताकालपमिदो सत्ताकालोऽस्थि । __एवं मग्गणागवसम्मत्तकालमाणो मइ-सुआ-ऽवधिणाणतिग.
ओहिररिसण-सम्मत्त-खमोवसमसम्मत्तमग्गणासु सजिटकाटिदि. मिदो, साहियमग्गणागदसम्मत्तकालपमाणो तिरियगइमग्गणाम साहियपल्लोवत्तिगपमिदो, थीमग्गणाम साहियपणवण्णपलिप्रो. वममाणो, रणसगवेआ-ऽसंजममग्गणादुगे साहियतेत्तीससागरोवम. मिवो, लेसामग्गणछक्के सुक्कोसकायटिदिपमाणो भोदि।
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द्वारम् ] स्वोपज्ञ-हेमन्तप्रभाणिसमलङ्कृतोत्तरपडिसत्ता [10
जणु कायजोगमागणाम कायट्टिदीअ बहत्तणादु कधमोहव्व गुरुसत्ताकालो णुत्तो ?, सच्चं, किंतु सम्मत्तकाले मग्गणाअ परा. वत्तमाणादु तोमुत्तकालादो अहिगो कालो ण लब्भदे, मग्गणाबहक्कायद्विदिकाले य सम्मत्स्स अमावेण उव्वलणाविक्खान य्येव पल्लोवमासंखभागमाणो गुरुमत्ता कालो पारिदि, अट्ठावीससत्ताट्ठाणकालस्स अट्ठावीस-सत्तावीससत्ताट्ठाणदुगसमृदिदकालस्स य तहत्तरगादो।
वेउव्वेगारसगस्स पुण जत्थ णारगाण देवाण व वि पवेसो अस्थि, तत्थ जदा तसगुरुकाटिदित्तो प्रहिआ गुरुकायट्टिदी विज्जदे तदा साहियगुरुतसकायटिदिमाणो गुरुसत्ताकालो भवदि । जधा ओहे ण सगवेदा-रणाणदुगा- संजमा-चक्खुदरिसण-भवियाऽविय. मिच्छत्ता-ऽऽहारिमग्गणासु । कायजोगमगरणा पुण णारग-देवाण १वेसे वि तेसा अन्तमुहुत्ते अन्तमुहुत्ते जोगपरावत्तमाणतणादु ण तदविक्खाअ गुरुसत्ताकालो लब्भदे, किंतु एगिदियाविक्खाम्र पल्लोबमासंखभागपमिदो हुवदि । जत्थ पुण जुगलिआण पवेसो अस्थि तत्थ साहियपल्लोवमत्तिगमाणो हदि । जहा तिरियोह. पणिदिय तिरियोह-पय्यत्तपणिदियतिरिक्ख-तिरश्चो मणुयोह-पय्यत्त मणुय-माणुसीमग्गणासु । ___मणुयदुगउच्चाण पुण जत्थ तेउक्काय वाउकायाण पवेसो अस्थि कायट्टिदी य असंखपुग्गलपरिवत्ता तदो पहिया वा.ऽस्थि तत्थ मणुयदुगोच्चगोआरण गुरुमत्ताकालो प्रसंखपुग्गलगरावत्तमाणो भवदि । जधा मोह तिरियोघ-एगिदियोह-कायजोग-णपुंसगवेदाऽणाणदुगा-ऽसंजमा-चक्खुदारसरण--मविया -ऽर्भावय-मिच्छत्ताऽसण्णिमग्गणासु ।
उव्वलणाजोग्गाण जहण्णसत्ताकालो पुण समयमत्तलहुकाय. द्विदीय समयमत्ताव सेसमग्गणापवेसे मग्गणाचरमसमयरगूतणबंधादि.
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२] मुनि श्रीवोरशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे ।काल. णूतणसत्तालाहे य मग्गण.सु चेव समयमाणो होदि, ण पुण पोहे । अोहे प्रचक्खु-भवियमगणादुगे य वेउव्वेगारसग मणुयदुगउच्चगोप्राण माहियवासो उव्वलगानो कारगाण जहण्णभवद्विदि. कालस्स तहत्तणादु । जत्थ उण लहुकाटिदी वि पल्लोवमा. संखभागदो प्रहिगा अस्थि उज्वलणापारम्भो वि तत्थ य्येव अस्थि तत्थ ताण लहुसत्ताकालो पल्लोवमासख-भागमाणो अस्थि । जहा पणाणुत्तरसुरमग्ग गासु प्राहारगसत्तगस्स, प्रभविए वे उव्वेगारसगमणयदुगउच्चाण, अण्णेसि जहसंभवं नतमुहुनं लहुकायट्टिदी वा।
जत्थ जाणाऊण जावइग्रं कालं वेइज्जमाणदाऽत्थि तत्थ तावइप्रो कालो गइमग्गणासवभेदादीसु अब्भहिगो वा प्रबाहाजुत्ततरणादु ओघादीसु सत्ताकालो जहसंभव भवदि । जहि मग्गणासु जाणाऊण वेइज्जमाणदा रणस्थि तहि णिरयोषादिमग्गणासू ताण तिरियमणुयाउमादीण प्रबाहाकालसमो सत्ताकालो लज्मदे जत्थ कायठिई प्रणा तत्थ कायठिदिमाणो मवदि, जहा पञ्चमनोजोगादिमग्गणासु एवं कायजोगसामण्णमग्गणाअ रिणरयासुराऊण वि, जदि विकायजोगस्स कायट्रिदो बिहत्तमा अस्थि तह वि णिरयसुराउगाण वेदगाण बधगाण वा कायटिदी अप्पा अत्थि परावत्त. माणतणादु। णराउस्स पुहवीकायस्स प्रबाहाकालाविक्खाअ पाविज्जदि। एवं ओरालियकायजोगमग्गणाअ वि णेयं । एवमेव लेसामग्गणाछक्के वि जहसंभवं णायव्वं ।
जिणणामस्स प्रोधादोसु सत्ताकालो साधिकबंधकालसमो भुदि, 'वेइज्जमाणकालस्स अधिगत्तणादो, गिरयगदिओघादिमग्गणासु बंधकालसमो सत्ताकालो होदि, तुल्लपायत्तणा, णिरयगदिनोहादिमग्गणासु कदिवयासु मिच्छत्तंतमुत्तेण अहिगोय,प्रकसाय-अहक्खाय. मग्गरणाजुगले साहियवेइज्जमाणकालतुल्लो भवदि, खोरणकसाय. कालस्स अहिगत्तगेण लाहादो, केवलणाण-केवलदरिसणमग्गणादुगे वेइज्जमाणकालतुल्लो सत्ताकालो मोदि, तुल्लत्तणादो।
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द्वारम् ] स्वोपज्ञ हेमन्तप्रभाणिसमलङ्कृतोत्तरपडिसत्ता [२६
जत्थ सिद्धाण पवेसो अस्थि तत्थ मोहे प्रवेप्रा-उकसाय केवलणाण-केवलदरिसण-सम्मत्त-खइप्रसम्मत्ताऽणाहारिमग्गणासत्तगे य सप्पाउग्गाण पयडीरण प्रसत्ताकालो सादिअणंतभंगगदो मोदि, सिद्धजीवकालस्स तहत्तणादो ।
विसेसदो पुण अोहे विसंजोजिदाणताणुबंधिचदुगपडणेरण अणंताणुबंधिचदुगस्स, प्रधुवसत्तत्तणेण अधुवसत्ताण जिणवज्जारण सत्तावीसाअ य त्ति एगतीसाप सादिसंतभंगगदो वि असत्ताकालो लब्भदे। जिणणामस्स अधुवसत्तात्तणे वि सकयं य्येव सक्कम्मदाम लाहादु प्रसत्ताकालो सादिसंतभंगगदो ण हवदि तत्थ चदुवीससंतकम्मिगाविक्खाअ अयंताणबंधिच उगस्स अबंधकालमासिज्ज, पाऊण अवेइज्जमाणे सदि वेउव्वेगारसगस्स मणुयदुगउच्चगामाणं पाहारगसत्तगस्स य उज्वलिदे सदि असत्ताकालो पाविज्जदि।
सम्मत्त-मोसमोहाणं पुण उव्वलिदे सदि पुण सम्मत्तप्पत्ति. विरहकालस्स प्रविक्खाम असत्ताकालो लब्भदे।
सम्मत्त-मीसा-ऽहारगसत्तग-जिणणामाण उण प्रभव्वं पडुच्च अणादिअणंतभंगगदो, मन्वं समासिज्ज अणादिसंतभंगगदो वि मसत्ताकालो लब्भदे ।
अवेदा-ऽकसायमग्गणादुगे दरिसण सत्तग-सुराउ.जिणणाम पाहा. रगसत्तगाण सादि-संतभंगगदो वि प्रसत्ताकालो जहण्णो समयो, उक्कोसो तमुहत्तं भवदि, उवसमसेटिकालस्स तहत्तणादो।
सम्मत्तमगरणा प्रणंताणुबंधिच उगा-ऽऽउच उगा-ऽऽहारगसत्तग-जिणणााण सोलसपयडीणं असत्ताकालस्स सादिसतमङ्गगदो वि जहुत्तमाणो होदि, गराउस्म अणुत्तरसुरास्सयेण उक्कोसो, सुराउगस्स उक्कोसो गरभवयुतयुगलिकभवाविक्खाअ, दोण्ह वि जहण्णा तह सेसचउदसगस्स दुविहो असत्ताकालो मग्गणाकालस्स सादिसंतभंगगदस्स तहत्तणादु ।
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मुनिश्री वीरशेखर विजयरचिते सत्ताविहाणे ( काला
खइअसम्मत्तमग्गणाअ गराउग-सुराउग ! -ऽऽहारगसप्तग-जिणणामाणं दसण्ड पयडीरण उत्तपमाणो सादिसंत भंगो वि प्रसत्ताकालस्स हवदि, णराउवज्जाण णवण्ह खइअसम्भन्ते लद्ध सदि जहष्णुककोसओ जहतकाले गए सत्ताकाललाहादु, पर उसत्तान्तरस्स तहत्तणादु ।
प्रणाहारमग्गणाअ चुलसीदिपयदीपण जहुतमिश्रो सादिसंतमङ्गगदो वि प्रसत्ताकालो जहसंभवं केवलिसमुग्धाद विग्गहृगद्द पञ्च भवदि ।
३० ]
ओहव्व मश्रणाणणा-संजमा ऽचक्खु भवियाम वियमिच्छत्तमग्गणासु सप्पाउग्गाण असत्ताकालो भुर्वाद, नवरं सिद्धाणमपवेसेण सादिश्रणंतभंगगदो असत्ताकालो ण लब्मदे । तेण धुवसागाण पयडीण सादिसंतभंगगदो य्येव श्रसत्ताकालो लब्भदे, त जहा - प्रसंजम मग्गणाश्रमिच्छत्ता ऽणताणुबंधिचउगाण प्रसत्ता कालो उक्कोसो साहियतेत्तीससागरोत्रमाणि, जहण्णो अंतमुहत्त, एमबीस सत्ताठास खइप्रसम्मद्दिट्टिस्स वा कालस्स तहत्तणादो, अनंता बंधिनउगस्स उण चउवीससत्ताठा रण कालस्स वि तहत्तणादु ।
प्रचक्खुदरिसणमग्गणा णिदुगस्स दुविहो वि असत्ताकालो समयो हवदि, खीणक सायदुचरमसमये तस्स विच्छेदादु खीणकसायचरमसमये मग्गणाअ उच्छेदादो य । सेससप्पा उग्गघादिधुवसत्ताण दुविहो वि असत्ता कालो अंतमुद्दत्तं, आसां खवगसेढीश्र विच्छेदे जाए मग्गण व कालस्स तत्तणादो ।
भविमग्गणाश्रमिच्छत्तस्सुक्कोसो असत्ता कालो साहियत्तेतीससागरोवमाणि, जहण्णो प्रांत मुहुतं, एगवीससत्ताठाणस्स खश्रसम्म. छिट्टिस्स वा कालस्स तहत्तणाद धुवसत्ताण अरणताणबंधिच उगवज्जसेसघादिपयडीण तिरियेगारसगस्स यत्ति एगवण्णा प्रसत्ताकालो : उक्कोसोदेसूणपुव्वकोडी, जहणणो अंतमुहुत्तं, प्रासां विच्छेदे जाए
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ऽन्तरद्वारे] स्वोपज्ञ-हेमन्तप्रभाणिसमलङ्कृतोत्तरपडिसत्ता [३१ पाहण्णेण सजोगिकेलि पडुच्च मग्गणावढाणकालस्स तहत्तणादो ।
सेसप्रघादिधुवसत्तागपयडीण सडसट्रीम दुविहो वि प्रसत्ता. कालो समयो भवदि, मग्गणाचरमसमये अजोगिकेवलि चरमसमये य्येव तल्लाहादो।
सेसमग्गणाण चेव सादिसंतत्तणादु सादिसंतभगगदो चेव असत्ताकालो होदि । स य जहुत्तमाणो सामित्तादिविसेसादो विष्णेयो ॥२६१-४०२।.
॥ अथ पञ्चममन्तरद्वारम । इदाणिमंतरदारमेगजीवासिदं णिरूविज्जदिसत्ता अणरहिअधुव-सत्तातित्थाण अतरं त्थि (गीतिः) इगतीसाअ लहुगुरुअ सत्ताकालोऽस्थि लहुगुरु कमसो ।।४०३।। णथि चउअणूणाणं, धुवसत्ताणंतरं असत्ताए । लहुगुरुसत्ताकालो, कमा लहुगुरुं दुतीसाए ॥४०४ । मव्वणिरय अणणत्तर-सुरेसु सत्ताअ सम्ममीसाणं । ओघव्व अतरं लहु-मंतमुहुत्तं अण ण भवे ॥४०॥ सेसाण अंतरं णो, छह वि गुरुमृणजे?कायठिई । णवरं देवे हवए, देसूणा एगतीसुदही ॥४०६॥ तिरिये अंतमुहूत्तं, लहुं अणाण गुरुमणपल्लतिगं ।
ओपन सोलसण्हं, दुहा भवे णस्थि सेसाणं ॥४०७।। तिपणिदियतिरियेसु तिरिव्व सव्वाण णवरि जेट्टठिई । सम्मदुगम्मूणा गुरु-मंतमुहुत्तं चउदसण्हं ॥४०८॥ समयो लहुं परतिगे, आहारसगस्स पुवकोडिपुहुत्तं । (सकीर्णम्) जेढ सत्तरमहं, दुहा पणिदितिरियव्व णऽण्णेसि ।।४०६॥
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३२] मुनिश्रीवोरशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे [अन्तरओघविगतीसाए, लहु दुपणिदितसचक्खुसण्णीसु । पऽण्णाण अणाणोघव्य गुरुमयरसयपुहुत्तमाऊणं ।४१०॥(गीतिः) सम्मत्तमीसमोहग-नराउआहारसत्तगाण भवे । ऊणा गुरुकायठिई , अंतमुहुत्तं चउदसण्हं ॥४११।। णवरि दुतसचक्खूसु, सत्ताए अतरं जेट्ठ । विउवेगारसगस्स य, संखेज्जसहस्सवासाणि ॥४१२।। (उपगीतिः पणमणवयकायउरल-विउवकसाएसु सम्ममीसाणं । समयो लहुं ण व गुरु, अंतमुहुत्तण सेसाणं ॥४१३॥ णवरि गरदुगुच्चाणं, काये ओघव्व विउववज्जासु । (गीतिः) आहारसगस्स लहु, समयो सोलसु गुरुमुहुत्तंतो ॥४१४।। तीसोपव्व लहु विण, णिरयाउं थीपुमेसु णऽण्णेसि । सम्माउदुगाहारग-सगाण गुरुमृणजेट्टकायठिई ।।४१५॥ (गीतिः ऊणपणवण्णपलिआ, थीअ अणाण पुरिसेऽथि ओघव । देवाउस्स तिपन्ला, अहियांतमुहुत्तमण्णेसिं ॥४१६।। सव्वाणोघव्व णपुम-अजएसु भवे परं अणाण गुरु । तेत्तीसूणुदही व ण, सुराउआहारसत्तगाण कमा ।।४१७।। (गीति मणुयाउस्स तिणाणोहिसम्मखइएसु सहससरचुलसी । (गीतिः) लहु वेअगे-ऽहियपलिय-मासु य गुरुमृणजलहितेत्तीसा ॥४१८|| दुविहं देवाउस्स कमा-६पुडुत्तणपुव्वकोडिसमा । (गीतिः) आहारसगस्स खणणछउमठिअगुरुठिई ण सेसाणं ॥४१९॥
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द्वारम् ] स्वोपन-हेमन्तप्रभाणिसमलङ तोक्तरपयडिसत्ता । ३३
ओघव्व अणाणदुगे, अभवे मिन्छे य आउगाणासु। अमणे य विउविगारम-गरदुगउच्चाण णण्णेसि ॥४२०॥ सव्वाणोपव्व भवे, अचक्खुमविएसु मम्ममीमाणं । (गीतिः) तहऽणाण छलेसासु, लहुमोघच्च गुरुमूणजेडठिई ।।४२१।। परमृणिगनीसुदही, सुकाअ लहु तिसु णग्दुगुच्चाणं । (गीतिः) आहारसगस्स य तिसु,समयो ऽन्तमुहुत्त गुरु ण सेसाणं ॥४२२॥ मव्वाणाहारे लहु- मोघव अतिरियाउग ण गुरु । ऊणा गुरुकाठिई, छब्बीसाए ण सेसाणं ॥४२३।। सव्वाण णत्थि अण्णह, णवरि हवेज दुविहं मुहुत्तंतो । (गीतिः) तिरियमणुशाउगाणम-पजपणिदितमउरलमीसेसु ॥४२४।। अप्पज्जपणिदितिरिय-पणिदितससमविगलतिकायेसु । तहुरलमीसे समयो, मणयदुगुच्चाण होइ लहु ।।४२५॥ जेट्ठ तमुहुत्तं, सिं एगिदियसगे-लहु समयो । गुरुमोघव्वेगक्खे, छसु ऊणा जेट्टकायठिई ॥४२६।। सव्वणिरय अणणुत्तर-देवछलेसासु सम्ममीसाणं । पल्लासंखियभागो, जहण्णमंतरमसत्ताए ॥४२७।। अंतमुहुत्तमणाणं, छह वि गुरुमृणजेट्टकाठिई । (गीतिः) णवरि सुरे सुक्काए , ऊणिगतीसजलहीण सेसाणं ।४२८॥ मिच्छाउतिगाहारग- सगाण तिरिये ण चउअणाण दुहा । ओषध लहुं पल्ला-संखंसो सोलसेसाणं ॥४२९॥
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३४ ] मुनिश्रीवारशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे [ अन्तर
विउवेगारसगस्स उ, गुरुमवि सो होइ सम्ममीसाणं । अहियतिपल्ला गरदुग-उच्चाणाधब्ध विणयं ॥४३०॥ तिपणिदियतिरियेसु, तिरियच्च लहुमणसम्ममीमाणं । ऊणा गुरुकाठिई, गुरु ण सेमपणवीमाए ॥४३१॥ लहुमाघन्य गतिगे. चउवीमाउ अणसम्ममीमाणं । छह भवे उक्कामं, देसूणा जेहकार्याठई ॥४२॥ विउवेगारसगस्स 3 कोडिपुहुत्तं हवेज पुत्राणं । पन्लासंखिय भागो, आहारसगम्स णऽसि ॥४३३।। दुहिगक्खे काये लहु-मेगक्खसुहमियरेसु तिरियव्य । णरदुगउच्चाण गुरु, ऊणगुरुठिई ण सेसाणं ॥४३४।। दुपणिदितसेसु दुहा, सम्मदुगाहारसगतिआऊणं । (गीतिः) अणतिग्यिाउविउविगारणम्णुपुब्बीण य लहुमोघव्व ।।४३५॥ ISण्णाणऽहियतिपल्ला, तिरियाउस्स गुरुमूण जेट्टाठई ।(गीतिः) सेसाणेवं जयणे, ण सुरदुगविउवसगाणपुवीणं ॥४३६।। पल्लासंखियमागो, हवेज्ज आहारसत्तगस्स लहु । एवं चक्खुब अहव, पणिदियव्वऽत्थि सण्णिम्मि ॥४३७|| लहुमणसम्मणिरयदुग-ताऊणोघन्य थीपुमेसु दुहा । पन्लासंखियभागो, आहारसगस्स ऽण्णेसि ॥४३८॥ गुरुमूणगुरुठिई अण-णिरयदुगाणऽहियतिपलियाऊणं । दोण्हऽहियगुरुभवठिई, सेसाण पुमे सिमोघव्व ॥४३९।।
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द्वारम] स्वोपन हेमन्तप्रमाणिसमलङ्कृत तरपडिमत्ता [३५ लहुमोघब्ध णपुसे, अणमम्मणिग्यदुगा उगतिगाणं । सुग्दुगविउवमगमणुय-दुगुच्चगो प्राण तिरियन्व ॥४४॥ आहारसगम्म दुहा. इस्थिव्व ण सेसपंचवीसाए । गुरुमहिया अयग, नेनीमा मम्ममीसाणं ॥५४१|| अमहियं पुराणं. कोडि पहुक्तं भवे गउम्म । सेमाण मजोगाणं. बीसाए हो ओघव्य ॥४४२॥ मणुगउस्म तिणाणोहिसम्मखइएस वेअगे य लहु । वामपुहुत्तं जेट्ट, छमामहियपुचकोडी उ ४४३॥ देवाउम्म जहणं माहियपलिओवयं मुणेयव्वं । गुरुपस्थि पुरकोडिति-भागहिया जलहितेत्तीमा ।४४४॥ पल्लासखियभागो, पंचसु आहारमत्तगस्स दुहा । मम्मखइएसु दुविहं, गरञ्च मत्तसु वि णऽण्णेसि ॥४४५॥ णवरि जिणस्स जहण्ण, अहियसहस्सवामचुलसीई । मम्मखइएसु जेट्ठ', तेत्तीसा सागराऽन्महिया ॥४४६।।
आघव्व अणाणदुगेः अभवे मिच्छे तिआउगाण दुहा । विउवेगारसगमणुय दुगुच्चगोआण गुरु तिरिव्व लहु ।।४४७) लहुमोघव्व सुराउ-स्सिगतीसयराऽहिया-ऽण्णमजए वि । होइ सिमेवं छह तु, णपुमव्वऽण्णाण चउसु विणो ॥४४८|| आहारसगस्स लहु', विण्णेयं संजमे मुहुत्तो । ऊणा गुरुकायठिई, गुरुमण्णाणतरं त्थि ॥४४६॥
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३६ ]
मुनिश्रोवार शेखर विज रचिते सत्ताविहाणे । अन्तर
सप्पाउग्गाणतर-मचक्नुभवियेसु हाइ प्रोघव्व ।
वरं जिणस्स ण पलिय-असंखभागो अचक्खुम्मि ॥४५०।। होइ लहुं णरसुरदुग-विवाहारमगउच्चगोआणौं । अमणे ण सम्ममीमति-आउगाहारगमगाण । ४५१।। पल्लासंखंमो सुर-णिग्यदुर्गावउवमगाण होइ दहा । तिरियव्य भवे दुविहं, मणुम्सदुगउच्चगा प्राण ॥४५२।। लहुमोघव्याहारे, मम्मणिग्य जुगलचउ प्रणाऊण । णपुमव्व उ णरसुरदुग-विउवाहारसगउच्चाण ॥४५३ । णण्णाण भवे जेट्ट, चउ प्रणतिरियाउणरदुगुच्चाण । ऊणा गुरुकायठिई, तेवीसाएऽस्थि ओघव ॥४५४।। सप्पाउग्गाणंतर-मण्णह सव्याण णथि गवरि दुहा । आऊण मुहुत्तंतो,असमत्तपणिदियतसेसु ॥४५५।।
(हे.च.) "सत्ताम"इच्चाइ, तेवण्णगाहा अंतरदारसंबंधिणी। तत्थ ओघत्तो एगाअ गाहान सत्ताम, अण्णान असत्ताअ आएसत्तो बावीसान सत्ताम एगूणतीसान गाहाहिमसत्ताअ अंतरं णिरूविदं ।
मोहा-ऽऽएसेहिं जाण सत्ता प्रसत्ता य सकयं लग्भवे तारण कमसो सत्ता असत्ताअ य अंतरं त्थि । सामाणदाअसत्ता कालसमं सत्ताम अंतरं दुविहं होदि, सत्ताकालतुल्लं य असत्ताप अंतरं दुविहं भवदि. णामंतरेण अविसेसादु । केवलमिह सादिसंतभंगगदो य्येव कालो अदिदिट्ठो बोहव्वो, अंतरस्स तहत्तणादु । कत्थ वि समाणतणे वि किछिविसेसो, कत्थ वि उण विसेसो वि ।
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द्वारम् ] स्वोपज्ञ हेमन्तप्रभाणिसमलङ्कृतोत्तरपडिसत्ता [ ३७
तह जत्थ कालो गुमकायद्विदिप्रादी उत्तो तत्थ अंतरं जहसंभवं गुरुकायट्ठिदिआदि देसूर्ण मणिदव्वं पारंभताण तरे पलाहादु । तं महा-सव्वणिरयप्रपज्जनबज्जपणिदिर्यातरियस्गि-परतिग भवण. वदि-वंदर-जोदिस -दुवालसकप्प--णवगेविज्जगतुर-अपय्यतवज्ज. पंचिदियदुग-तसदुग-थीम व प्रदुग-चक्खदरिमण-लेसाछ क. सण्णिआहारिमग्गणासु तेवण्णाअ सम्मत्त मिस्समोहाण देसृणगुरुकायदिदी, तिरियोह-पणिदिय तिरिय-पज्जत्त चिदियतिरिक्ख-मरणस्सोह-पय्यत्तमणुस्स मागणासु पचसु अणताणुबधि चदुगस्स देसूणपल्लतिगं, दुवालसकप्पसुर-ण वगेविज्जगसुर-तेउलेसा-पउमलेसा. मग्गणासु तेवीसान प्रणंताणुबंधि च उक्स्स देसूणजेटकाय दिदी, पणिदियोह-पज्जत्तपणिदिय-तसकायोह--पय्यत्ततस काय-थी--पुम चक्खु सणि पाहारिमग्गणासु नवसु गराउ.माहार सभागाण देसूणुक्कोसकायट्रिदी प्राह रिमगणाप्ररिणरयाउ-सुराउ-वेउवंगारसगं. गरदुग-उच्चगोदाण वि देसूणजेटकाटिदी गुरुसत्ततरं होदि ।
___एवं सव्वणिरय पणिदिर्यातरियोह पय्यत्तपणिदियतिरिय. तिरश्ची-मणुस्सोह- पज्जत्तमणुस्स-माणुसी भवणवइआदिगेविज्जगपज्जंतसुर-सुक्कवज्जलेसापंचगलक्खणासु तिचत्तालीसान मग्गणासु सम्मत्तमोहणीय-सम्मम्मिच्छत्तमोहणीया-ऽणताणुबधिचदुगाण छण्ह, एगिदियोह- सुहमेगिदियोह- बायरेगिदियोह कायजोगमगरणाचदुगे मणुयदुगुचगोदाण पंचिंदियोह-पय्यत्तपंचिदिश-तसकायोघ-पज्जत्ततसकायमग्गणाचदुगे प्रणंताणबधिचदुग-वे उठवेगारसग-मणुशणु. पुग्धोण, थोवेद-पुवेद-चक्खु सण्णिमग्गणाचदुगे प्रणतःणुबधि कदुगस्स संजममग्गणाम आहारगसतगस्स देसूक्णुकोसकायट्टिदी उक्कोसमसत्तरं मर्वाद।
विसेसदो पुरण तिरियोहमग्गणाप्र सम्मत्तमोह-मिस्समोहाण णपुंसगवेदमग्गणाम सम्मत्त-मीसमोहणीया-ऽऽहारगसत्तगाण मसंजम.
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३८ ]
मुनिश्रीवोरशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे अन्तर
मग्गणास माहारसत्तगस्स गुरुसत्तंतर देसूणाद्धपुग्गलपरावतमाणं भवदि,एयस्संतकम्माण प्रदो पहिगकालस्स ससारे अणवट्ठाणादो, सत्ताकालम्स पुण प्रपत्तसम्म पडुच्च गुरुकायट्ठिदिमत्ततणावो य । ___ गरमग्गणातिगे पाहारगसत्तगस्स गुरुसत्तरं पुवकोडिपुत्त. माणं भवदि, जुगलिगमवे बंधाभावेण णूतणसत्ता अलाहादो, असत्ताकालस्स उ जुगलधम्मिगभवे वि लाहादो।
देवोह-सुक्कलेसामग्गणादुगे सम्मत्त-मोसा-ऽणताणुबंधिचदुः गाण गुरुसत्तरं देसूणेगतीससागरोवमाई, गवमगेविज्जगसुरंपडुच्च य्येव सत्तरलाहादु, प्रसत्ताकालस्स उण खइअसम्सदिट्टि गुत्तरसुरमासिज्ज तेत्तीससागरोधमाज मावादु ।
कायजोग-पोरालियकायजोगमग्गणादुगे सम्मत्त-मीसाऽऽहा•गसत्तगाण गुरुसत्तरं अंतमुहुत्तं भवदि, सण्णीण य्येव प थुयं. तरलाहे सदि जोगपरावत्तित्तणेणाहियंतरकालस्स प्रसंभवादु, असत्ताकालम्स पुरण तदसंतकम्मिगेगिदियजीवं समासिज्ज गुरुकायद्विदिलाहादो।
थीवेवमग्गणाअ तिरियास्स गणपुंसगवेप्रमग्गणाप्रणिरयाउ. तिरियाऊरण जहष्णसत्तंतरमंतमुहत्तं भोदि, तदो गुणस असंभवादो. असत्ताकालस्स उण मग्गरणाजहण्णकाटिदित्तो समयमत्तस्स लाहादु । एवमेव पत्थय मग्गणादुगे वि प्रणंताणबंधिचदुगस्स जहण्णसत्तंतरं पि अन्तमुहुत्तं भवति । ____वेदमग्गणातिगे वि गराउम्स जहण्णसत्तेतरस्स जहण्णासत्ता. कानस्स य अंतमुहुत्तमिदे वि ण तुल्लदा, पसगे खुडगभवदुतिभाग. रूवत्तणादो, दोसु य जहण्णाउपज्जत्तभवदुतिमागत्तणादो। एवं थोवेदपुवेदमग्गणादुगे सुराउस्स पुवेदमग्गमा तिरियाउस्स वि । एवमण्णत्थ वि । एवमेव अपय्यत्तचिनिया-ऽपज्जत्ततसकाय.
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द्वारम् ] स्वोपन-हेमन्तप्रमाणिसमलङकृतोत्तरपयडिसत्ता [३६ मगणादुगे दुविहमसत्तंतरं पि बुझ, सद्दसम्मे वि अत्यदो विसेसो विज्जदे। एवमण्णत्थ वि।
मदिणाण-सुदणाणा-ऽवधिणाणा-ऽवधिवरिसण-सम्मत्तसामण्णखाइप्रसम्मत्तमग्गणाछक्के णराउस्स चुलसीदिसहस्सवासाणि खग्रोव. समसम्मत्तमग्गणाम साधिगपल्लोवमं सत्तसु विसुराउस्स वासपुहुत्तं जहण्णसनंतरं भोदि मग्गणाछक्के पुन्वबर्वाणरयाउगस्स पच्छाऽवत्त. खइप्रसम्मत्तस्स जहत्तजहण्णठिइणिरये उप्पादादो वेअगसम्मत्रो पुण जहुत्तजहाटिदिगसुरे उत्पत्तिदो, खइप्रसम्मत्तमग्गणाम सुराउस्स सत्तरं दुप्पहसूरिआइव्व पंचभवकरणाविक्खान, अण्णहा
स्थि । पंचभवकरणाविरवान वि गुरुसत्तरं सयंणेयं । प्रसंजम. मग्गणाम प्रणताणुबंधिचदुगस्स गुरुसत्तंतरं देसूणतेत्तीससागरोवमारिण हवदि, सत्तमणिरयाविक्खाप तहालाहादो असत्ताकालस्स उण प्रणुत्तरसुर-तदुत्तरभवत्तिखइप्रसम्मद्दिछिमहिकिञ्च साहिगतेत्तीससागरोवममाणत्तादु। ... सुहलेसामग्गणात्तिगे प्राहारसत्तगस्स जेटुसत्तंतरमंतमुत्तं होदि, मणुाणमेव तल्लाहादो, असत्ताकालस्स उ देवा पडुच्च जिटकाटिदिलाहादो सव्वणिरय-सुरोह-भवणवदिपहुदिगविज्जय. पज्जंतसुर-तिरियोह--पंचिदियतिरिक्ख-पज्जत्तपणिदियतिरिक्खतिरच्छी-लेसाछक्कलक्खणासु तिचत्तमग्गणासु सम्मत्तमीसमोहाण, तिरियोह-गसगवेद-मइप्रणाण-सुआणाणा-संजम-मिच्छत्ताऽसण्णिरूवासु सत्तसु मग्गणासु वेउव्वेगारसग-मणुयदुग-उच्चगादाण, एगि. दियोह-सुहुमेगिदिय-बायरेगिदिय-कायजोगलक्खणासु चंदुसुमग्गणासु मणुयदुग-उच्चगोवाण वेदत्तिग-बक्खु-सण्णिरूवासु पंचसु मग्गणासु पाहारगसत्तगस्स, अचक्खुदरिसणा-ऽहारिमग्गणादुगे परदुगसुरदुग--वेउग्वियसत्तगा--ऽऽहारगसत्तग--उच्चगोदाणमेगूणवीसाप जहण्णासत्तंतरं पलिपोवमासंखभागमिदं भवदि, उचलणाकालस्स
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४.]
मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे [अन्तर.
तहत्तणादु, जहाणसत्ताकालक्ष्म 'पुण जहजोग समयादिसत्तावसेसे पगदमग्गणापवेसंग समयादिमित्तस्स लाहायो इस्थापवयणं। .
___ सत्तमवज्जसम्वणिरय-पंचिदियतिरिक्ख-पय्यत्तचिदियतिरिक्ख-तिरिच्छी-मण्योह-पज्जत्तमणुय-माणुसी•सुरोह-मवणवदि. प्रादिणवमगेविज्जयंतसुर पंचिदियोघ - पय्यत्तचिदिय- तसकायोहपज्जत्ततसकाय-थोवेद वेद पसगवेव-चक्खुदंसण- लेसा छक्कसण्णि-आहारिलक्खणासु पणवण्णाए मग्गणासु अणंताणुबंधचदुगरस जहण्णमसत्ततरं प्रतमुहत्त, चदुवीसाए सत्तामणंतरस्स तहत्तरणादो, जहमत्त कालस्स उण सासणगुणठाणं समासिज्ज समयमत्तादि. लाहादो।
मणुयोह-पय्यत्तमणुय-मणुयज़ोमिमदीमग्गणातिगे वेउव्वेगा. रसगस्स पंचिदियोह-पज्जत्तपचिदिय-तसकाय । यत्ततसकायमग्गणाचदुगे वेउव्वेगारसग-मणुयाणुपुवीण, .. वेअत्तिग-चक्खुदरिसण. सण्णि-पाहारिरूवासु छसु मग्गणासु गिरयदुगस्सोघन्य सादिरेगअष्ट्रवासाणि मोदि, उज्वलिमाण मग्गणापारम्भे अते जहसंभवं खवगसेढी अजोगिचरमसमये य प्रसत्तालाहेणुनपयोगमोघव्व असतंतरस्स परमाणादो, जहण्णसत्ताकालस्स पुण समयादिसत्तासेसे मग्गणंतरागमणेण मग्गणंतरभवणेण य समयादिमाणस्स कालस्स लाहादो। ___ मणुयोह-पज्जत्तमाय-मणुयजोणिणी-पचिदियोध पय्यत्तचिदिय-तसकायोह-पज्जत्ततसकाय-वेप्रत्तिय-चक्खुदरिसण--सप्णि-- आहारिमग्गणासु तेरससु. सम्मत्तमोहणीयारणं जहण्णमसत्तरमंतमुहत्तं होदि सम्मत्तपत्तीम. जामसंतकम्माण जहसिग्घमंतमुहुत्तेण खइप्रसम्मत्त्पत्तीम पुणो वि असंतकम्मत्तणादु, जहण्णसत्ताकालस्स तु मग्गणंतरागमाविमाप्र समयमत्तस्स लाहादो।
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द्वारम् ] स्वोपन हेमन्तप्रभाणिसमलकृतोत्तरपयडिसत्ता (४१
देवोध-सुक्कलेसामग्गणादुगे सम्मत्तमोहणीय मिस्समोहणीयाऽणंताणुबंधिचदुगाण छण्ह जेटुमसत्तरं देसूणेगतीससागरोवमाणि, णवमगेविज्जयसुरास्सयेण इह जहुत्तंतरस्स संभवादो सत्तान पुण कालस्स अणुत्तरसुराविक्खाम तेत्तीससागरोवमलाहादो।
पंचिदियोघ--पय्यत्तचिदिय-तसकायोह-पज्जततसकाय-संजमोघ-खइअसम्मत्तमग्गरणाछक्के आहारगसत्तगस्स जहण्णमसत्तरं अंतमुहुत्तं भोदि, सत्तालाहे सदि अतमुहुत्तेण पुण अजोगिदुचरम. समये विच्छेदादो, जहण्णसत्ताकालस्स तु मग्गणंतर गमगंण समयमत्तस्स वि संभवादो।
थीवेद-पुवेद मदिअणाण-सुपाणाणा-संजम मिच्छत्ता-ऽऽहारि मग्गणासत्तगे. सुराउस्स, गपुसगवेद-मदिअणाण-सुदाणाणा-संजममिच्छत्ता- हारिमग्गणाछक्के गिरयाउस्स य साहियदससहस्सवामाणि, वेदमग्गणातगे गराउस्संत मुहत्तं, मदिणाण-सुदणाणाहिणाणो-धिदसण-खग्रोवसमसम्मत्तमग्गणापंचगे गराउस्स वासपुहुत्तं जहण्णमसत्तरं भवदि. साबाधाउजहण्णहिदीन तहत्तणादो।।
गपुमगवेदा ऽसंजममग्गणादुगे प्रणंतागुबधिचदुगस्स जेट्टममत्तंतरमोघव्ध देसूणद्धपुग्गलपरावत्तो हुवदि, ओहत्तो विसेसस्स अमावादो, गुरुसत्ताकालम्स पुण धुवसत्तात्रणेण गुरुकाटिदिमाणादो विसेसभणणं।
मदि-सुदा-ऽवधिणाणतिगा.ऽवधिदरिसण -खमोबसामसम्मामग्गणापचगे जरा उस्स गुरु प्रसत्तर सादिरेगपुवकोडिवासाणि, गुरुठिदिबंधपमाणस्स तहत्तणादु, गुरुसत्ताकालस्स उण जुगलिन पडुच्च साहियपल्लोवमत्तिगमाणतणादु ।
असजममग्गणाम सुराउस्स जेटुमसत्तरं एगतीससागरोव. माणि, उक्कोसठिविबंधस्स तत्तिअमेत्तादो, गुरुसत्ताकालस्स उ अणुत्तरसुराविवखाअ तेत्तीससागरोवमप्पमितादो ॥४०३-४५५।।
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४२] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे [सन्निकर्ष
॥ अथ षष्ठं सन्निकर्षद्वारम् ।। — संपदं छ8 सणिकरिसदुवारं कहिज्जादपणणाणावरणाओ, संते एगस्स नियमओऽण्णेसि । सत्ता विग्घाणेवं, बीयावरणचउगेगस्स ॥४५६ ॥ संतेऽण्णतिण्ह णियमा, पणिहाण व णिद्ददुगसंते । थीणद्धितिगस्स सिआ,सत्ता पंचण्ह णियमाऽस्थि ।।४५७ । संते एगस्म भवे, थीणद्धितिगाउ नियमोऽढण्हं । (गीतिः) संते वेआणेगमणस्स सिआ तहेव गोआण ॥४५८॥ एगस्स दसणतिगा. मोहे संते व दंसणछगस्स । णियमाऽण्णाण सिआ अण-संते सम्मत्तमीमाण ॥४५६।। णियमा-ऽण्ण मि मज्झिम-कसागते व दंमण मगस्स । णियमाऽणाण सिमा चरमलोहस्तम्मि सम्वेमि ॥४६॥
तिममायाईण, एवं णरि णिय मेगदुतिगाण । संजलणाण मि पुम-संते णियमा सिआऽण्ण मि ।।४६१॥ हस्सछगदुवेआण', एवं गवरि पुमहस्सछक्काण । णियमा थी उण णपुम-संते णियमा भवे सत्ता ॥४६२।। णारंगदेवाऊओ, संते एगाउगस्स व भवे । इयराउगस्स मत्ता, तिरिक्खमणुयाउगाण सिआ । ४६३॥ तिरियणराउगसंते, सिआ तिआऊण णिस्यद्गसंते । वाऽऽहारगसत्तगसुर-दुगतित्थाण णियमाऽण्ण सिं ॥४६४॥ मत्ता व णिरयणरसुर-दुगविउवाहारसत्तगजिणाण । सेढिखयंतेगारस-संते सेसाण नियमाऽस्थि ॥४६॥
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द्वारम ] स्वोपज्ञ- हेमन्तप्रभाचूर्णिसमलङ्कृतोत्तरपयडिसत्ता । ४३
दुगपणिदितमतिग-सुहगा ssदेय- जस- तित्थणामाओ । (गीतिः) सते एगम्स भवे, जिणवज्जाण नियमा सिआपण सिं ॥ ४६६ ॥ वरि णदुगस्स सिआ णरदुगजिणरहिअसेससगसंते । रगड़ जिण संतम्मि व, णराणुपब्बी नियमा soणे ॥ ४६७॥ सुरद्रुगते तेरस - णामजिणाहारमत्तगाण सिआ । (गीतिः ) णियमा ऽण्णाण वं सग विवाण ं णवरि सुरदुगस्स सिआ।। ४६८ ।। आहारमत्तगस्स उ. संते वा तेरणामतित्थाण । नियमाऽण्ण सिं संते; एगाए सामाण तेरमणाममणुयसुर - दुर्गाविउवाहारसत्तगजिणाण' अस्थि मिआ सेमाण, मत्तग्णिामाण नियमाऽत्थि ||४७० || ओघ मणियासी, हवेज्ज मन्त्रासु पढमचरमाण' ।
||४६६||
1
तिणदु रणिदितस पण मण वय काय उरलेसु तहा 1189211 मयवेए अकमाये, णाणचउगमंजमेसु अहखाए 1 दरिणतिगसुक्क नवि-मम्मख असण्ण आहारे । ४७२।। णवत्री आवरणाण', ओघव्व तिवेअचउकसायेसु । सम अच्छे पसु नहा, सहमे श्रीणद्वियतिगस्स बीआवरणऽण्णलगा, मने एगा नियमओ सत्ता सेमाण पंच. सिआ उ थीर्णाद्वियतिगस्स सेसासु मग्गणासु, बीआवरणणवगाउ एगाए मंने जियमा सत्ता, हवेज्ज सेमाण अड्ड 118061
।।४७३ ।
1180811
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४४] . मुनि धोवीरशेखरविजयरचित सत्ताविहाणे [सन्निकर्ष
तिमणुयदुषणिदियतस प्रवेअअकमायकेवलदुगेसु ।. संजमअहखाएसु, भविसम्मेसु खइए अणाहारे । ४७६ । (गीतिः सत्तरसु सण्णियासो, ओघच हवेज्ज वेअणी अस्स । संते एगस्सऽण्णह, पडिवक्ख स णियमः सत्ता ॥४७७.।
सते साउस्म चरम-वजणिरय अट्ठमंत देवेसु ।। दोण्ह सिआ सिं सते, णियमा माउस्म णऽण स्म ॥४७८।।
चरमणिरय असमत्तपणिदिनि रणराण याइदेवेसु । सम्वेसु एगिदिय-विगलिंदियभूदगवणेसु ॥४७६ । आहारदुगे सुहमे, अवेअकसायतुरिअणाणेसु । परिहारे अहखाए, साउगसंते सिआऽण्णम्स ॥४८०॥ नियमाऽस्थि इयरमंते, साउस्स तिरितिपणिदितिरियेसु । तिमणुयसंजमसमइअ-छेएसु तहा अमणिम्मि ॥४८१।। सत्ताऽथि माउसंते, सेसाणं तिण्ह आउगाण मिआ । सेसाउगस्स संते, णियमा साउस्स ण-ऽण्णेसि ॥४८२।। संते एगाउम्स अ-पज्जपणिदितसउरलमीसेसु । (गीतिः) सेसाउस्स सिआ ण उ, सव्वागणिवाउकेवलदुगेसु ॥४८३।। णिरयसुराऊण सिआ, विउवे एगस्स तिरिणराऊओ । संते णियरस्स भवे, णिरयसुराऊण ओघव्व ॥४८४॥ एगस्सा-ऽऽउस्स विउव-मीसे कम्मे तहा अणाहारे । संतम्मि जत्थि सत्ता, सप्पाउग्गाण सेसाण ॥४८॥
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द्वारम् ] स्वोपक्ष-हेमन्तप्रमाणिसमलकृतोत्तरपडिसत्ता [४५
ओघव्वाऽण्णासु णवरि, खइए णिरयतिरियाउगाहिन्तो। एगाउगस्स संते, सत्ता व इयराउस्स ॥४८६॥ सत्ता सम्वेमु तिरिय-एगिदियविगलपंचकायेसु ।' असमत्तपणिदियतस-कायोरालदुगक.म्मेसु ॥४८७।। वेअतिगकमायचउग-दुअणाणाजयअचक्खुचक्खूसु ।। मिच्छकुलेसाअभविय मणि असणीसु आहारे ॥ ८८।। णीअम्म उच्चमंते, णियमा णीअस्स अस्थि ओघव्य । गोमाण य दुपणिदिय-तसेसु भविये अणाहारे ॥४८६।। उच्चम्सोधन तिणर-अवेअअकसायकेवलदुगेसु । संजम ग्रहखाएसु, सम्मत्ते खाइए यो ॥४९०।। उच्चस्म णीअसंते, णियमा सत्ता हवेज्ज सेसासु । अण्णयरगोअसंते, णियमा सेमस्म गाअस्स ॥४९१।। आघव्य णिरयपढमति-णिश्यतिरिक्खदुपणिदितिरियेसु । सुरबारसकप्पगणव-गेविज्जदुमीमजोगेसु ॥४९२॥ कम्मअजयकाऊसु, तेोपम्हासु तह अणाहारे । दसणसगस्स णवरं, अजयपउमतेउवज्जासु ॥४६॥ मिच्छस्स मिस्ससंते, णियमा वीसाअ सेमइगसंते । (गीतिः) दसणसगस्स उ सिआ,सेसणिरयभवणतिगतिरिच्छीसु॥४६४॥ णिरयव्व णवरि णियमा-ऽस्थि सम्मसंतम्मि मिच्छमीसाण। बारसकसायणवणो कसायसंते उ मिच्छसि ॥४६॥
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४६]
मुनिश्रीवारशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे । सन्निकप
सत्ता-त्थि अपज्जत्तग-पणिदितिरिणरपणिदियतसेसु । सवेगिदियविगलपणकातिअणाणमिच्छ अमणेसु।।४९६॥(गीतिः) सेमाण सम्मसंते, णियमा मम्मम्स मिस्ससंते वा । णियमा-ऽण्णाण व सेमिग-संते दोण्ड णियमाऽण्ण मि ॥४९७।। मोहस्सोपव्य भवे, दुणरपणिदितमपणमणवयेसु । (गीतिः) कायउरललाहणयण-प्रणयणसुक्कभविसणि बाहारे ॥४६८॥ ओघव्य माणुमीए, णवरं णियमा हवेज पुमसंते । हस्मछगस्स अणुत्तर-सुरेसु एगणसंतम्मि ॥४६६।। सगवीसार णियमा, णिस्यवऽण्णाण णवरिणियमाऽस्थि । दसणमोहदुगस्स उ, सत्ताए मिच्छमीसाणं ॥५००॥ एवं आहारदुगे, णिस्यव्य विउव्यकिण्हणीलासु । णवरं पंचसु वि भवे, चउत्थणिरयव्व सम्मस्स ।।५०१॥ थीअ ण सगसंते, णियमा संजलणणोकसायाण । सेसाण सिआ अडणो-कसायसंजलणचउगाओ ॥५०२।। इगमंते एगारस-तस्सेसाण णियमा सिआ-ऽण्णेसि । सेसाणोपब्वेवं, णपुमे णवरि णपुमस्स धुवा ॥५०३॥ पुरिसे अडवीसाए, मोहाणोघव्व णवरि हस्सव्व । चउसंजलणपुमाण', हवेज्ज पुरिसब्ध अण्णमए ॥५०४॥ गयवेए अकसाये, अहखाए होइ दसणसगस्स । आहारदुगव्य णवरि, मयंतरेण अणवज्जाण ॥५०५।।
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द्वारम् | स्वोपज्ञ हेमन्तप्रभाणिसमलकृतोत्तरपडिसत्ता [४७
इगवीमा अवेए. ओघव्व हवेज दोसु णिरयव्व । परमेगमए तीसु वि, सत्ता णत्थि अणचउगस्स । ५०६।। इत्थीणपुससंत मज्झकसायहगस्स गयवेए । णियमा सत्ता णे या, इत्थीमंते गपुसम्स ५०७॥ मोहाणोघच भवे, कोहाइतिगे पर कमा णयमा । तिदुइगसंजलणाण, चउतिदुसंजलणसंतम्मि ॥५०८। दंमण मगम चउण णसंजमसमइ अछेअओहीसु । (गीतिः) मम्मे अणुत्तरव्य उ, णवर मिच्छरस मिस्ससंते वा ॥५०९॥ सेसाणोघच भवे, परिहारे देसवेअगेसुच । ओहिव्व भवे दंमण-सगस्स णिम्यव्व सेसाण ॥५१०॥ वरं या बारस-कसायणवणोकमायसंतम्मि । वेअगसम्मे णियमा, मत्ता सम्मत्तमोहम्स ॥५११॥ सुहमे दंसणसंते. णियमाऽण्णाणतलोहसते वा । सेसिंगसंते सत्ता, व दमणाण णियमा-ऽण्ण सिं १५१२॥ अभवियमासाण सु, णियमा सेमाण एगसंतम्मि । खइए णियमिगमज्झिम-कसायसंते-ऽण्णवीसाए ॥५१३।। सेसाणोपव्व भवे, अणुत्तरव्वुवसमे अणाण भवे ।.. सेसिगसंते सत्ता, सिआ अणाण णियमा-ऽण्णेसि ॥५१४॥ मीसे सब्वाण भवे, उवसमसम्मव्व गवरि सव्वत्थ । सम्मस्स सिआ एगे, विति उवसमन्व णियमा से ।.५१५।।
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मुनिश्री वीरशेखर विजयचिते सत्ताविहणे [ सन्निकर्ष
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जिणसंते णिरयज्जति णिरयविभंगेसु णत्थि सत्तण्हं । नियमाऽण्णाणाऽऽहारग-सत्तगसंते ण तित्थम्स ||५१६|| नियमाऽण्ण सिं सेसिग संते वाऽऽहारसत्तगजिणाण ं । (गीतिः) णियमा सेसाणदेवं जिणं विणा ऽण्णणिरयेसु भणतिगे || ५१७ || सव्यतिरियए गिंदिय- विगलिंदियपंचकाय अमण सु । असमत्त पणिदितसेसु सुरदुगाहारसत्तगाण सिम ||५१८ ॥ ( गीतिः / णारगदुगसंते खलु, णियमा सेमाण देवदुगसंते । (गीतिः ) नियमाsस्थि दुणवईए, णिरयदुगाहारसत्तगाण मिआ ।।५१६ ॥ विकिय सगसंते सुर - णिरय दुगाहारसत्तगाण सिआ । (गीतिः ) नियमाऽण्णाणाऽऽहारग सत्तगसंतग्मिणियम ओऽपणे सिं ॥ ५२० ॥ विउवाहारगसत्तगणिरयसुरदुगाण व णरदुगसंते । ( गीतिः) नियम - Sण्णाण व सेसिग संते वीसाअ नियमओ ऽण्णेसिं ५२१ | ओघव तिमएस', णामाण अपज्जतिरिपणिदिग्व | ( गीतिः ) असंमत्तणरे णवरं, चउसु वि सव्वत्थ णरदुगं णियमा । ५२२ । । सेससुरे सु विवदुग- परिहारग दे सते उपमहासु (भीतिः) वे अगुवसमेसु सिआ, आहारगसत्तगस्स जिणसंते ।। ५२३|| नियमाऽण्णाणाहारग-सत्तगसंते जिणस्स वा SOण े सिं । णियमा सेसिग संते, वा अट्टह नियमाणे सिं ॥ ५२४ || णामाण दुपणिदिय-तसभव - ऽणाहारगेसु ओघव्व । ( गीतिः) ओघन्न पणमणतिवय - चउणाणेसु तह समइए छेए ।। ५२५ ||
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द्वारम् ] स्वोपज्ञ-हेमन्तप्रभागिसमलङ्कृतोतरपयडिसत्ता [ ४६
सुहमावहिसुक्कासु, आहारसगस्स तित्थसंते वा । तेरसणामा-ऽऽहारग-सगाण णियमा-ऽस्थि सेसाण ॥५२६॥ तेरसणामिगसंते, सिआ जिणाहारसत्तगाण भवे । णियमा-Sण्णाण सेसिग-संते वि सिएगवीसाए ॥५२७।। ओघव्व कायुरालिय-दुगकम्मतिवेअचउकसायेस । जयण यरसण्णीस, आहारे सुरदुगस्स तहा ॥५२८॥ विउपाहारगसत्तग-तेरसणामाण व णरदुगसंते । . सुरदुगविउवाहारग---सत्तगजिणतेरणामाणं ॥५२९॥ णियमाऽण्ण सिं तेरस-णामाणाहारसत्तगस्स सिआ । जिणसंते सेसाण', णियमा सेसेगसंतम्मि ॥३०॥ जिणतेरणामणरसुर-दुगविउवाहारसत्तगाण सिआ। (गीतिः) णियमा-ऽण्णाणेमेव दु-वयेसु णवरि णियमा गरदुगस्स ।।५३१॥ आहारदुगे या, णियमा सेसाण तित्थयरसंते । सत्ता सेसिंगसंते, सिआ जिणस्स णियमाऽण सिं ॥५३२॥
गयवेए अकसाये, संजमअहखायसम्मखइएमु । (गीतिः) मणुयव्य अजोगिचरम-खणणामाण मणव्व सेसाण ॥५३३॥ मणुयन केवलदुगे, अजोगिचरमसमयाण व जिणस्स । आहारगसगसते, णियमाऽण्णाणण्णइगसंते ॥५३४।।
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५० ] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे [ सन्निकर्षव जिणाहारसगाण, सेसाण णियमओ तिरिव्व भवे । दुअणःण अजयतिअसुह-लेसामिच्छेसु णामाण ॥३५॥ णवरि व जिणस्स सव्वह,वा-ऽऽहारगसत्तगस्स जिणसंते। (गीतिः) णियमा-ऽण्णाणा-ऽऽहारग-सत्तगतित्थाण तीसु णो जुगवं।। ५३६।। णिरयगस्स अभविये, सुरदुगसंते व णियमओऽण सिं । एवं णिरयदुगस्स उ, हवेज मणुयदुगसंतम्मि ॥५३७।।
सत्ता णिरयामरदुग-वेउब्वियसत्तगाण होइ सिआ । णियमाऽण्णाण विउव्विय-सत्तगसंतम्मि होइ सिआ ॥५३८।। णारगदेवदुगाण, णियमा-5ण्णाण इयरेगसंते वा । णिरयणरसुरदुगविउव-सगाण होइ णिश्माऽण्ण सिं ॥५३६ ।
मीसे तह सासाण, आहारगसत्तगाउ इगसंते। (गीतिः) णियमा-ऽण्णाण उ सेसिंग-संते आहारमत्तगस्स सिआ॥५४०॥ विग्घणवावरणाओ, संते एगस्स अधुवसत्ताण । पणणिद्दमोहतिरिदुग-जाइच उगथावरायवदुगाणं ॥५४१॥ (गीतिः)
साहारणस्स य सिपा, णियमा सडमीइसेसपयडीण । एमेव दुणि हाण, गवरं णियमाडण्णएगाए ॥५४२।। थीणद्धितिगतिरियदुग-जाइचउगथावरायवदुगाओ । साहारणा य संते, अण्णयराअ इगपयडीए ॥५४३॥
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द्वारम् ] स्वोपज्ञ हेमन्तप्रभा चूर्णि समलङ्कृतोत्तरपय डिसत्ता [ ५१
सत्ता सिआ हवेजा मिच्छअणचउक्क अधुवसत्ताणं । नियमा· Sण्णाऽण्णमए, सिआऽत्थि मज्झिमकसायाणं ॥ ५४४॥ इगवेणीअसंते, नियमाऽत्थि पणिदितसतिगाण तहा । सुहगा - SSएज्जजसाण, सिआऽण्णवण्णा हियसयस्स || ५४५|| दुदरिमणमोहचउअण आउग आहारसत्तगजिणाण 1 सम्मत्तमीस संते, सिआ हवेज्ज नियमा-ऽण्ण सिं ॥ ५४६ ॥ से सेगमोहसंते, मोहसठाणव्व होइ सेसाण । ( गीतिः) धुवमत्ताणं णियमा सिआ छवीमा अधुवसत्ताणं ||५४७ || थीद्धितिगतरिय दुग-जाइचउगथावराय वदुगाण' ( गीतः ) साहारणस्स वि सिआ, संजलणतिवेअहस्सछगसंते ॥५४८ ॥ मज्झिम कसायअट्टग-संतेवि य के सिं चउदसह । णिरयसुराउगसंते, व दंसणाहारसत्तगजिणाण ॥ ५४६ ॥ ( गीतिः ) सट्टावाऊण, नियमाऽण्णाण तिरिया उसंते उ । (गीतिः) ण जिणस्स सिआ अधु-संतऽणमिच्छाण नियमओऽण्णेसिं । ५५० | रगपणिदितसतिग- सुहगादेयजसउच्चगोआण । ( गीतिः) णियमा राउते - अणुपुव्वीअ वियसिआऽण्ण सिं ॥ ५५१ ॥ रगइ पणिदितसतिग- सुहगा देय ज स तित्थउच्चाण । (गीतिः) एवं वरि णराउस सिआ उच्चस्स उ णरगइसंते ॥५५२ || णरगइउच्चाण उ सग - पणिदिसंते सिआ ण जिणसंते । तिरियाउस्स णरगइव्व केइ उ णरागुपुच्चीए ॥ ५५३ ॥
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५२. ] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे [ सन्निकर्षव दरिसणाहारसगांजणाउसुग्दुगाण णिरयदुगसंते । अट्ठकसायाण वि इग-मए सिआऽस्थि णियमाऽण्णेसि ।। ५५४।। सुरदुगविउवाहारग--सत्तगसंते भवे सठाणच । णामाण सिआ आउग-घाईणऽस्थि णियमा-ऽण्णेसि । ५५५।। घाइअधुवसत्ताण,तिरियेगारसगणामपयडीण । सेसिगसंम्मि सिआ, सत्ता अन्थि णियमाऽण्ण सिं ॥५५६॥ मोहाण मोहसंते, सहाणव्वऽखिलणिरय देवेसु। (गीतः) सियराउजिणाहारग-सगाण वा-ऽस्थि णियमाऽण्णसिं ।।५५७ । सेसाण पुमव्व वरि, तिरियाउजिणाण ण जुगवं सत्ता (गीतिः) सव्वह सियराऊण वि, मिच्छम्सऽथि तिग्यिाउसइ णियमा॥५५८॥ सियराउगाहारग--सगाण बियणिर यजोइसाईसु । ण जुगवमाहारगसग-जिणाण णिरयेऽज्जणिरयनिगे ॥५५६ ।। णियमा-ऽऽहारगसगसइ, सम्मदुगस्स चउणिरयभवणतिगे । दुइआइदुगे वि परे, तिरितिपणिदितिरिअमणेसु । ५६० । सम्मत्तमीससंते, मोहाण सठाणगव्व होइ सिआ । आहारसत्तगाऽऽउग-तिगाण इयराण णियमाऽस्थि ॥५६१।। मोहाण सठाणध--ऽण्णमोहसंते-ऽण्ण अधुवसत्ताण । तिरियाउजिणूणाण, सिआ हवेज्ज णियमा ऽण्णेसि ॥५६२ । णा-ऽऽउदुगस्सा-ऽऽउगतिग-संते आहारसत्तगस्स सिआ । अमणे दुदंसणाण, दंसणछक्कस्स चउसु सिमा । ५६३।।
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द्वारम् ] स्वोपज हेमन्तप्रभाणिसमलङ्कृतोत्तरपडिसत्ता [ ५३ मिच्छस्स वि तीसु सिआ, सुराउ संते नराउसंते वा । णिग्यसुग्दुगविउविय-सगाण तीसु णियमाऽण्णेसि ।।५६४॥ सेमाण पुमव्य वरि, मणुयद्गस्म णियमुच्चसंते उ । णियमुच्चस्म णिरयसुर -दुगविउवाहारसगसंते ॥५६॥ ण मसठाणन धुवा, तिरिच्छि अमणेस मम्ममीसाण । आहारगमगसंते, पणिदितिरिये अपज्जत्ते ॥५६६॥ सव्येस एगिदिय-विगलिंदियपुह विदगवणेसु च । मत्ताऽन्थि सम्मसंते, णराउआहाग्मत्तगाण सिआ।।५६७१(गीतिः) णियमाऽण्णेसि एवं,मीमस्स णवरि सिआऽस्थि मम्मम्स । (गीतिः) वीसअधुवसत्ताण, गराउसंते व णियमओऽण्णेसि ।।५६८॥ णाममठाणव्य अधुव-णामसइ व सम्मदुगणराऊण । (गीतिः) णियमाऽणाण णवरि सइ, आहारसगे दुरिसणाण धुवा ॥५६६॥ परदुगसइ वुच्चस्स उ, दुगव्य से गवरि णरदुगस्स धुवा । सेसिगमइ चउवीसअ-धुवाण वा.ऽण्णाण णियमा-ऽस्थि ॥५७०।। सव्वाणोघव्यऽत्थि ति-रणरेसु परमत्थि परतिगुच्चारण। णियमा सव्वह तेरस-संते व णराणपुवीए ॥५७१॥ आउसठाणव्व विउवि-गारसगस्स तिरियाउसइ रिणयमा ।(गीतिः) दुणरेसु माणुसीए, हस्सछगस्स णियमाऽत्थि पुसंते॥५७२।। असमत्तपणिदितिरिव्व अपज्जणरे-ऽखिलाण णवरि सिआ। तिरियाउगस्स सम्बह, मणुयतिगुच्चाण णियमा-ऽस्थि ॥५७३।।
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५४ ] मुनिश्रीवोरशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे [ सन्निकर्ष
ओघव्व सणियासो, दुपणिदितसभवियेसु सम्वेसि । असमत्तपणिदितिरिव्य अपज्जपणिंदियतसेसु ॥५७४॥ सव्वेसिं गवरि सिया, हवेज तिरियाउगस्स सम्वत्थ । सव्वागणिवाऊसु, गराउवजाण पुहविव्व ॥५७५॥ घाइतिरियाउतेरस-णामाणोघव्व होइ तिमणेसु । सच्चवयणसुक्कासु', परं तिरिव्व णिरयदुगस्स ॥५७६॥ सपरपहाणे सव्वह, परसुरदुगविउवसत्तगुच्चाणं । (गीतिः) णियमा-ऽऽउद्गा-ऽऽहारग-सगाण ओघव जिणणराऊओ।।५७७॥ इगसंतेऽण्णस्स तहा, घाईण तिआउतेरणामाणं । (गीतिः) आहारसगस्स व जिण-सह तिरियाउस्स ण णियमाऽण्णेसिं ॥५७ ॥ सेससीईओ इग-संते णियमा-ऽस्थि पण असीईए । (गीतिः। घाइचउआउतेरस-णामजिणाहारमत्तगाण सिआ ॥५७९।। एवं दुमणवयेसु, णवरि धुवा-ऽऽवरणणवगविग्घाणं । (गीतिः) एमेव णवरि मोहस-ठाणव्वऽस्थि चउणाणओहीसु। ५८०॥ मणुयाउस्स धुवा मण-णाणे कायउरलेसु आहारे । घाइति पाउगतेरस-णामाण हवेज ओघव्व ॥५८१॥ वा-ऽऽउगघाईण अधुव-णामसइ गरदुगसह व उच्चस्स । (गीतिः) जिणसइ तिरियाउस्स ण, णामसठाणव्व णियमओऽण्णेसिं ।५८२॥ घाइचउआउसुरदुग-वेउव्वाहारसत्तगजिणाणं । (गीतिः) तेरसणामाण सिआ-ऽस्थि उच्चसंतम्मिणियमओऽण्णेसि ॥५८३॥
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द्वारम्] स्वोपज्ञ-हेमन्तप्रमाणिसमलङ्कृतोत्तरपडिसत्ता [ ५५ सेसाणेमेव परम-नराउसंते व गरदुगुच्चाणं । कायव्य वयदुगे पर-मिह णियमा गरदुगुच्चाणं ॥५८४॥ मोहाण उरलमीसे, सट्टाणव्वेगमोहसंतेऽस्थि । सम्मत्तमीससंते, आउजिणाहारसत्तगाण सिआ॥५८५॥ गीति:) वा-ऽऽउणिरयणरसुरदुग-जिणविउवाहारसत्तगुच्चाणं । सेसेगमोहसंते, णियमा सेसाण बोद्धव्वा ॥५८६॥ तिरियाउतेरणाम-ऽण्णघाइसंतमि अधुवसत्ताणं । अणमिच्छाण व णियमा-ऽण्णाण परं णिरयदुगसंते ॥५८७॥ धुवियरणरदुगविउवस-गुच्चाण जिणस्स आउसंते णो। घाइणरदुगुच्चूणअ-ध्रुवसत्तातेरणामाणं ॥५८८॥ मणुयाउगसंते वा, णियमाऽण्णाणं सिआऽऽउघाईणं । विउवाहारगसत्तगणरसुरदुगतित्थसंतम्मि ॥५८६॥ णामाण सठाणव्व उ, णियमाऽण्णाण परमत्थि जिणसंते। तिरियाउस्स असत्ता, णियमा सत्ता गराउस्स ॥१९॥ गरदुगसंतम्मि सिआ, उच्चस्स मण् यदुगव्व उच्चस्स । गवरं णियमा सत्ता, मणयदुगस्स उण बोद्धव्वा ॥५६१॥ सेसिगसंतम्मि सिआ, वासीईअ णियमा तिसयरीए । एवं कम्मे गवरं, णिरयसुराऊण, ओघव ॥५६२॥ णिरयसुराऊण वि वा, सव्वह व गराउगस्स जिणसंते । सेसाऊणं तिण्हं, सत्ता गाउसंतम्मि ॥६॥
ण
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५६ ] मुनिश्रीवोरशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे । सन्निकर्ष
मोहाणं विउवदुगे, भवे सठाणच मोहइगसंते । होइ सिआ-ऽऽउ-जिणा-ऽऽहारसत्तगाण णियमाऽणे सिं ॥५६४॥ सेसाण पुमव्व णवरि, तिरियाउजिणाण ण जुगवं सत्ता (गीतिः) आउसठाणव्वा-ऽऽउग-सइ मिच्छस्म तिरियाउसइ णियमा॥५९५॥ दंमणसत्तगसंते, आहारदुगे भवे सठाणव्व । मोहाण वा सुराउग-जिणाण होइ णियमा-ऽण्णेमि ॥५९६॥ दसणसगतित्याण व, सुराउसंतम्मि णियमओऽण्णेसि । जिणसंते दंसणसग-देवाऊणं व णियमओऽण्णेसि ॥५६७॥(गीतिः) सेसिंगसंतम्मि सिआ, दंसणसत्तगसुरारतित्थाणं । सत्ता णेया णियमा, सेसछचत्ताहियसयस्स ॥५९८॥ मोहाण सठाणव्य उ, संजलणतिवेअहस्सछगसंते । वेअकसायेसु सिआ, सोलसथीणद्विअधुवसत्ताणं ।।५९६॥ (गीति:) णियमा-ऽण्णेसिं सोलस-थीद्धितिगाइसेसमोहाणं । (गीतिः) णिरयतिरिसुराऊण वि, ओघव्वऽण्णाण चरमलोहव्व ॥६००॥ णवरि ण जिणसंते तिरियाउस्स सठाणगव्य णामाणं । (गीतिः) जामिगसंते णियमा, गराउसंतम्मि गरदुगुच्चाणं ॥६०१॥ णियमुच्चस्स उ सुरदुग-विउवाहारसगसंतकम्मेऽस्थि । णियमुच्चगोअसंते, मणुयदुगस्स हवए सत्ता ॥६०२॥ पणविग्घणवावरणिग-संतेऽवेअअकसायअहखाए मोहणिहासोलस-थीणद्वितिगाइतित्थाणं ॥६०३॥
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द्वारम् ] स्वोपज्ञ-हेमन्तप्रमाणिसमलकृतोत्तरपडिसत्ता [ ५७
VIE
तह आहारगसत्तग-देवाऊणं व णियमओऽण्णेसि । एमेव दुणिदाणं, णवरं णियमाऽण्णएगाए ॥६०४।। मोहिगसंतम्मि सिआ, सुराउआहारसत्तगजिणाणं. मोहाण सठाणव्य उ, णियमाऽण्णाण णवरमवेए IASkin थीणद्धितिगाईणं, पुमचउसंजलणहस्सछगसंते कई मोलसपयडीण सिआ, सिं उण मज्झिमकसायव्य ॥६० ।। सेसाणोघव णवरि सव्वत्थ विणाऽस्थि णिश्यतिरियाऊन सव्वह णियमा सत्ता, अस्थि परतिगुच्चगोआणं । । सुरदुगविउवसगाणं, णियमाऽस्थि अचरमखयपयडिसंते। एगे चरमखयपयडि-संते व गराणुपुबीए ॥६०८॥ णामाण केवलदुगे, सट्ठाणवेगणामसंतम्मि । णियमा-ऽण्णेसि णवरं, सिआऽस्थि मायियरणीआणं ।।६०९॥ गरगइपणिदितसतिग-सुहगादेयजसतित्थयरसंते मणयाणुपुविसंते-ऽण्णे णीअण्णाण सुरगइजिणव्व ॥६१०। (गीतिः णत्थि णिरयाउसंते, देवाउस्स दुअणाणमिच्छेसु । सत्ता सिआ दुदंसण-दुआउआहारसत्तगाजणाणं ॥६११॥(गीतिः) णियमा-ऽण्णाण सुराउ-स्सेवं ण जिणस्स वा गराउस्स । (गीतः) जिणसह णाऽऽहारगसग-तिरियसुराऊण णियमओऽण्णेसि ॥६१२॥ सेसाण अपजतसन्च णवरि णिश्यामराउगाण सिआ । सव्वह-ऽणाहारगसग-तिरियाउगसह जिणस्स सिआ ॥६१३॥
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॥६१६॥
५८] मुनिश्री वीरशेखर विजयरचिते सत्ताविहाणे [सन्निकर्षसङ्काणच्च विभंगे, मोहाणं एगमोहसंतेऽत्थि । चउआउजिणाहारग-सगाण वाऽत्थि नियमाऽण्णेसि ॥६१४ ॥ अण्णाणदुगव्व णिरय-सुराउआहारसत्तगजिणाणं सेसाण अणव्व णवरि, जिणस्स तिरियाउसंते जो ॥६१५॥ पज्जणरव्वऽखिलाणं संजमसम्मेसु णवरि णियमाऽत्थि । सुरदुगविउवसगाणं, अचरमखयपयडि संतम्मि सपरपहाणे सव्वह णिरयदुगस्सऽत्थि थीणगिद्धिव्व । अणमिच्छमीस संते, होह सठाणव्व मोहाणं ।। ६१७।। सम्मे व राउस्सा ऽऽउसठाणव्वा ऽऽउसंते उ । ( उद्गीतिः ) सामाइ अछेएस, थीणद्धितिगअडवीसमोहाणं ॥६१८॥ आउतिग- णिरयदुग- तिरि- एगारसगाण संजमव्व भवे । (गीतिः) सेसाण चरमलोहव्व णवरि तिरिया उगस्स ण जिणसः ॥ ६१९ ।। परिहारे व सुराउजिणाऽऽहारसगाण मोहइगसंते । (गीतिः ) मोहाण सठाणव्व उ, णियमा - ऽण्णेसिं पुमव्व सेसाणं ॥ ६२० ॥ मोहिगसंते देसे, तेउपउमवेअगेसु मोहाणं । ( गीति:) सट्टाणव्वाउग जिण आहारसगाण व नियमाणे सिं ॥ ६२१|| संजणव्वण्णेसिं परमण्णयरा उपयडि संतम्मि ।
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आऊण सठाणन्त्रण, जुगवं तिरियाउतित्थाणं ॥ ६२२ ॥ सुहमे मोहिगसंते, सुराउआहारसत्तगजिणाणं I
वा मोहसठाणन्व उ, णियमा सेसाण होइ परं ॥ ६२३ ॥
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द्वारम् ] स्वोपज्ञ - हेमन्तप्रभाचूर्णि समलङ्कृतोत्तरपयडिसत्ता | ५६ सोलसथीणद्धियतिग पमुहान वि चरमलोहस्ते वा । (गीतिः ) सत्तरीणद्धि तिग-प्पमुहऽण्णाण प्रेमचरमलोहव्व ॥ ६२४ ॥ अजया सुहले सासु जिणस्स हवए चिउव्वजोगव । सेमाण तिरिव्व णवरि, मोहसठाणव्व मोहसइ || ६२५|| आउमठाणव्वा ऽऽउग सह मिच्छस्स उ सिआ-ऽऽउदुगसंते । तिरियाउस्स व सव्वह, तिरियाउं विण जिणस्स सिआ । ६२६ ।। सन्त्रप्पयडीण णयण - अणयणसणीसु कायजोगव्व । णवरं णियमा सव्वह, णवावरणपंचविग्याणं ॥ ६२७॥ सङ्काणन्त्र अभविये, णामाणं अधुवणामसत्ताए । ( गीतिः ) आऊण सिआ णरदुग-संते उच्चस्स विनियमाणे सिं ॥ ६२८|| सेमाण णरदुगव्व उ णवरं णारगसुराउसत्ताए । ( गीतिः) आउसठाणचव धुवा, विउवेगारसगण दुगुच्चाणं ॥ ६२९॥ णियमा णराउसंते, मणयदुगुरुचाण उच्चसंते उ । णियमा मण्यदुगम् य सित्राऽत्थि सेसेगसंते से ||६३० ॥ सपरप्पहाणदंसण-सत्तगहीणो वेज सम्मव्व 1 खइए णवरि ण जुगवं सत्ता णिरयतिरियाऊणं ॥ ६३१ ॥ सङ्काणव्व उवममे, मोहिगसंतम्मि होइ मोहाणं । चउआउजिणाहारग-सगाण वा-स्थि नियमाऽण्णे सिं ।। ६३२ || मिच्छन्वण्णाण णवरि, जिणतिरियाऊणण जुगवं सत्ता । तह णिरयसुराऊण वि, एवं तित्थरहिओ मीसे ॥ ६३३ ॥
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६० ] मुनि गोवीरशेखर विजयरचितॆ सत्ताविहाणे ( सन्निकर्षससाणे इगसंते, सिआऽऽउ आहारसत्तगाण धुवा | ( गीतिः) अण्णाण सठाणच्च वि दुआउ आहारसत्तगविरोहो || ६३४|| ओघन्न अणाहारे, अजोगिचर मखणखी श्रमाणाणं । तेरसपयडीणुअ चउदसण्ड कम्मव्व सेसाणं ॥ ६३५॥ एगस्स असंते पण णाणावरणाउ होअर नियमा । सेसचउण्ह असता, पणंतरायाण एमेव ।।६३६ ।। एगस्स असंते चरबीआवरणाउ होअए णियमा । सेसदृण्ह असत्ता एग असत्ताअ णिद्ददुगा ।। ६३७॥ चउबीआवरणाण व चउण्ह णियमा इगअस्ते । (उपगीतिः) थीणद्वितिगाउ धुवा, दोण्ह असत्ताऽत्थि छण्ह सिआ ।। ६३८ || तह अस्सेग असंते, व असत्ताऽण्णस्स सत्तमस्सेवं । आऊणे असंते, तिन्ह असत्ता सिआऽण्णसिं ॥ ६३६ | सम्मस्स असत्ताए, सिआ असत्ताऽण्णसत्तवीमाए । मिस्सस्सेवं मिच्छअ-संते नियमा अणाण भवे ॥ ३४० ॥ तेवीस Sण्णाण सिआ, एवमणाण णवरं वमिच्छस्स । (गीतिः ) वा मज्झमिग कसायअ संते सजलणणोकसायाणं ॥ ६४१ ॥ नियमाऽण्णचउदसण्हण्णाण धुवंतिम कसा यिगअसंते ।
वरि कमा मायाइअ स ते ते गदुतिकसायाणं ॥ ६४२ ।। (गीतिः) बारकसा यतिदरिसण णपुमाण धुवा ऽत्थि थीअस ते वा ।
साण पुंसस्स वि, एवं णवरि उ सिआ थीए । ६४३ ॥
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द्वारम् ] स्वोपज्ञ-हेमन्तप्रमाणिसमलङ्कृतोत्तरपडिसत्ता [ ६१ चउसजलणाण सिआ, पुरिसअसंते ऽण तिजुअवीसाए। (गीतिः) णियमा मोहाणेवं, हस्सछगस्स णवरं पुमम्स सिआ ॥६४४। णिरयदुगेग असते, णि अमा-ऽसत्तेयरस्स वाऽसि । (गीतिः तिरिएगादमगाओ, एगअसंते धुवा-ऽण्णदसगस्स ॥६४५।। तह णिरयदुगस्स सिआ ऽण्णाण गरदुगा इगअसंते । (उद्गीतिः) णियमिया विउविगारस-गाहारगसगजिणाण वाऽण्णेसिं ॥६४६॥ सुन्दुगिग असंते णियमाऽ गाहारगसगाण वाऽण्णेसिं । (गीतिः) णियमाऽण्णाण पणिदिय-तसतिगसुहगाइतिगइगअसंते ॥६४७॥ विउद्यमगिगामइ धुवा-ऽऽहारमविउवदसाण वाऽण्णेसि । णियमा छण्हाहारग-सगिगअसंते सिऽण्णेसि ॥६४८॥ वा-ऽणाण जिण असंते. वणरदुगपणिदिजिणतसतिगाणं । (गीतिः) सुहगाएजजसाण-डण्णगासंतेऽस्थि णियमओऽणसिं ॥६४६॥
ओघव्य असत्ताए, सव्वह मणिकरिसोऽज्ज चरमाणं । गयवेए असाए, केवलजुगले तहा सम्मे ॥६५॥ खहआणाहारेसु, ओघव्य दुवे प्रणीअणी आणं । तम्हा एगअयंते, पडिवखस्सऽण्णह दससु णो ॥६५१॥
ओघव्य अणाहारे, उच्चस्स छसु गयवे अपमुहासु । णियमा णीअस्सुच्च अ-संते अण्णह ण णीअस्स ॥६५२।। दरिसणावरणाणं, गवण्ह तिरदुपणिदियतसेसु । तिमणवयणकायेसु', उरलावेआकसाएसु ॥६५३।।
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६२ ] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे सन्निकर्षमंनमअहखायसुइल-भविसम्मत्तखइएसु आहारे सट्टाणसणि यामो, ओघव्य भवे असत्ताए ॥६५४। दुनणवयण चउणाणति-दरिसण मण्णीसु होइ णिद्ददुगा । एगअसंते णियमा, चउण्ड णि ण उ असत्ता ॥६५५॥ एगस्म अमत्ताए, थीद्धितिगाउ दोण्ह इयरेसि । णियमा होइ असत्ता, णिहापयलाण होइ सिआ ॥६५६॥
वदरिसणावरणओ, एगअसंते असत्तरलमीसे । कम्माणाहारेसु, णियमा सेसाण अट्ठण्हं ॥६५॥ वेअतिगकसायचउग-समइअछेअसुहमेसु इयरेमि । दोण्ह असत्ता णियमा, थीणद्धितिगा इगअसंते ॥६५८॥ अंतिमवज्जणिरयमग-सुरामा-ऽवहिसुरेसु वा-ऽण्णस्स । एगाउअसंते ण अ-पज्जपणिदितम-उरलमीसेसु ॥६५६॥ (गीतिः) तिरितिपणिंदितिरियणर-संजमसामहअछेअअमणेसु । दोण्ह विगाउ असंते, उरालदेसेसु तिरिणराऊओ॥६६०॥ (गीतिः) णिरयसुराऊहिन्तो, विउवदुगे | इयरस्सिगअसंते । (गीतिः) दोण्हऽणाऊण सिआ तीसु य तिण्हऽण्णिगाउगअसंते ॥६६१।। व अवेए अकसाए, सुराउअसइ इयरस्स णियमिहरा ।
ओघविगवण्णाए, चउआऊणऽण्णहिं णस्थि ॥६६२।। णिस्यऽज्जतिणिरयतिरिय- पणिदितिरितस्समत्तदेवेसु । इंगवीसाइमकप्पप--मुहगेविजंतदेवेसु ॥६६३।।
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द्वारम् | स्वोपज्ञ हेमन्तप्रभाणिसमलकृतोत्तरपडिसत्ता [ ६३ विक्कियमीसे अजए, काऊए तेउपम्हासु । (उद्गीतिः) सम्मदुगेग असते, सेसदरिमणदुगचउअणाण सिआ ॥६६४ । मिच्छ असंतम्मि सिआ, सम्मत्तस्स णियमा-ऽणमिस्साणं । णवरि सिमा मिस्सस्स अ-सत्ताऽजयतेउपम्हासु ॥६६॥ अणिगअसंते सेमति-अणाण णियमा तिदंसणाण सिआ। सम्मअसंते ऽगणिरय-तिरिच्छि-भवणतिगदेवेसु ।।६६६॥ मिस्सस्स सिआ-ऽणाण ण, मिस्सस्सेवं धुवा उ सम्मरस । दुदरिसणाण ण अणिगअ-संते णियमा-ऽपणतिअणणं ॥६६७।। अप्पज्जत्तेसु च उसु, पणिदितिरिणरपणिं दियतसेसु। (गीतिः) सम्वेगक्खविगलपण-कायतिअण्णाणमिन्छ अमणेसु ॥६६८।। मिस्सस्स सिआ सम्मअ-संते सम्मस्स मीम असइ धुवा । (गीतिः) मोहाणोघव तिणर-दुपणिदितसपणमणवयेसु तहा ॥६६९॥ कायुरललोहणयणियरसुक्कभविसण्णिगेसु आहारे । (गीतिः) णवरि णरीहस्सछगे, धुवा पुमस्संतलोहबिण लोहे ॥६७०॥ पणऽणुत्तरेसु सम्मअ-संते दंसणछगस्स नियमाऽत्थि । सम्मस्स सिआ मिस्सअ-संते णियमा-ऽमिच्छाणं ॥६७१।। सम्मस्स सिआ मिच्छ अ-संते णियमा-ऽणचउगमिस्साणं । अणिगअसंते दंसण-तिगस्स व धुवाऽण्णतिअणाणं ॥६७२॥ ओघव्व उरलमीसे, कम्मेऽणाहारगे दरिसणाणं । (गीतिः) मिच्छअसइ मिस्सस्स उ, णियमा सेसाण सेसिगासंते ॥६७३॥
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६४ ] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे [सन्निकर्षछण्णदरिसणाण सिआ, सम्मासह विउवकिण्हणीलासुरौं । मिस्सासइ सम्मस्स उ, णियमा प्रत्थि सिआ ऽणमिच्छाणं ॥६७४॥ मिच्छअसंते दरिसण- सेसछगस्स णियमा ऽणिग असंते । सेस अतिगस्स भवे, णियमा दंसणतिगस्स सिआ ॥ ६७५ ।। नियमा आहारदुगे, हवए सेसस्स दंसणछगस्स । ( गीतिः) दंसणतिगिग असंते, -ऽणिग असदिधुवाऽण तिन्ह तिन्ह सिआ । ६७६ । सम्म दुगेग असंते, थीअ सिआ पणरसण्ह उ असत्ता । मिच्छ असंते नियमाणाऽगारसह सिआ ||६७७॥
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तिअणाण धुत्रा अणिगअ-संते वाऽण्णाण उ णपुमअसंते । नियमाणे असंते, णपुमस्स सिआ धुवा ऽण्णेसिं ॥ ३७८ ॥ थिव्व पुमे सव्वह उव, थीअ धुवा सोलसण्ह थीअसइ | ( गीतिः ) इस्सछगस्स वि एवं मयंतरे थिव्व अणपुमं णपुमे ॥६७९॥
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दरिणि असंते गय- वेए नियमा ऽण्णदसणाण सिआ । सेसाण संजलणपुम- इस्सछगाणऽत्थि ओघव्व ॥ ६८०॥ से से असंते खलु, चउसंजलण महस्सछक्काणं । एगारसह तु सिआ, नियमा सेसाण पयडीणं ॥ ६८१ ॥ ओघन्न तिकोहाइसु, वरि कमा अचउतिदुगसंजलणा । अकसाए अहखाए-ऽण्णद सणा रोगदंसणा संते ॥ ६८२ ॥ ( गीतिः ) नियमा सेसाण सिआ, नियमा सेसाण सेसिगअसंते । चरणाण संजमावहि सम्मेसु होअह असत्ता ॥६८३॥
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द्वारम् ] स्वोपज्ञ-हेमन्तप्रभाणिसमलङकृतोत्तरपडिसत्ता [ ६५ चउअणमिच्छाइतिगअ-संते तिचउअणपणछदंसाणं । (गीतिः) णियमा कममोऽस्थि सिआ, सेसाणोघव्व एगवीसाए ॥६८४॥ विण चरमलोहमेवं, समइअछेएसु णियमओ छण्हं । सम्मअसइ परिहारे, देसे एमेव मीसस्स ॥६८५॥ णवरं सम्मम्म सिपा, मिच्छ असंते दुदंसणाण सिआ।(गीतिः) णियमा-ऽणाण अणेगअ-संतेतिण्हणियमा सिआ तिण्हं ॥६८६॥ असायब्ध उ सुहमे, सप्पाउग्गाण मोहपयडीणं । सट्ठाणसणियामो, जाणेयव्वो असत्ताए ॥६८७॥ खड़ए विण दरिसणसग-मोघव्व उ उवसमेऽणिगासंते। (गीतिः) णियमा तिअणाण भवे, देसव्व उ वेअगे विणा सम्म ॥६८८॥ मिस्से सम्मासह णो, अणाण सम्मस्स ण अणिगासते । तदितरतिगस्स णियमा, मयन्तरेणऽस्थि विण सम्मं ॥१८॥ व जिणस्सा-ऽहारसगा, गिरयतिपढमाइणिरयदेवेसु । सोहम्माइछवीसा-सुरविउवदुगेसु भिंगे ॥६॥ परिहारे तह देसे, तेउपउमुवसमवेअगेसु च । एगासंते छह धुवाऽऽहारसगस्स वा जिणअसंते ॥६९शा(गीतिः) सेसेसु जिरयेसु', भवणतिगे मीससासणेसु च । आहारसगा एगअ-संते णियमाऽण्णछण्हऽस्थि ॥६९२।। सबतिरियएगिदिय-विगलिंदियपंचकायमेएसु । असमत्तपणिंदितसअ-मोस णिरयदुगिगासंते ॥६९३॥
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६६ ] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे [ सनिकर्ष.
णियमियरेगाहारग-सगाण वा-ऽण्णाण सुरदुगस्से । मणयदुगेगअसंते, णियमा सेमणवीसाए ॥६९४॥ विउवसगेगअसंते, सिआ गरदुगस्स णियमओऽण्णेसि । गीतिः) आहारसगा एगअ-संते छह णियमा सिआ-ऽण्णेसिं ।।६६५।। एवमपजणरे णर-दुगं विणा-ऽऽहारसगमभव्वम्मि । (गीतिः) तिणरेसु णिरयदुगिगअ-संतेऽण्णस्स णियमा सिआ-ऽसिं'।६६६।। तिरियेगारसगेगअ-संते णिरयदुगदसियगण धुवा । (गीतिः) वाऽण्णाण धुवा-ऽण्णेगा-ऽऽहारसगाण सुरदुगइगअसंते ॥६६॥ वा-ऽण्णाण विउवदसगा-ऽऽहारसगाणऽण्णविउवअसइ धुवा। (गीतिः) वाऽण्णाणाहारसगिग-असइ उ छह णियमा सिआऽण्णसिं॥६६८॥ तित्थअसंतम्मि सिआ, सेसऽखिलाणं सिआऽण्णिगासंते । तित्थस्स दुणवईअ ति-णवईए वा भवे णियमा ॥६९९॥
ओघव्य पणिंदियतम तिगसुहगाइजजसविरहिआणं । (गीतिः) दुपणिदितसभवेसु, णपरि धुवाण सह ण गरदुगिगेहिं ॥७००॥ होइ पणमणतिवयचउ-णाणोहि समहअछेअसुहमेसु । सुकाअ णिरयदुगतिरि-येगादसगाउ बारसऽण्णेसिं॥७०१।(गीतिः) धुविगासंते-ऽण्णाण व; आहारसगाउ छह णियमाऽत्थि ।(गीतिः) एगासंते-ऽण्णाण व, तित्थासंते सिआऽण्णवीसाए ॥७०२॥ दुवयेसु णिरयदुगिगा-संतेऽण्णस्स णियमा सिआ-soणेसिं । तिरियेगारसगेगअ-संते णिरय दुगदसियराण धुवा ॥७० ३।।(गीतिः)
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द्वारम् ] स्वोपज्ञ-हेमन्तप्रमाणिसमलङ्कृतोत्तरपयडिसत्ता [ ६७ होइ ण देवदुगविउव-सगाण वाऽऽहारसत्तगजिणाणं । सुरदुगिगासंते-ऽणिग-आहारगसगजिणाण धुवा ॥७०४॥ तिरियेगारसगस्स ण, णिरयदुगविउवसगाण होइ सिआ। (गीतिः) तित्थाहारसगविउव दसगाण णियमिगअसइ विउवसगा ॥७०५॥ तिरियेगारसगम्स ण, आहारगमत्तगा इगासंते । (गीतिः) छण्हऽस्थि तदियराणं, णियमाऽण्णेसिं सिआ जिणासंते ॥७.६॥ कायउरलदुगकम्मण-वेअतिगकसायचउगचक्खूसु । अणयणसण्णीसु तहा, आहारे एवमेव परं ॥७०७॥ ण तिरियिगारसगे णर-दुगस्स वाऽण्णत्थ तस्सिगासंते । तिरियेगारसगस्स ण, हवेज्ज णियमाऽण्णवीसाए ॥७०८॥ आहारद्गे ण भवे अवेअअकसायसम्मखइएसु । णियमियराण णिरयदुग तिरियेगारसगिगासंते ॥७०९॥ अवसेमाण मिश्रा जर-दुगस्स पंचिंदियव्य ओघव्व । आहारसगपणिदिय-सुहगाइजजसतसतिगजिणाणं||७१०॥(गीतिः) गरदुगपणिदितसतिग-सुहगाइज्जजसतित्थणामाणं । सेसेगाते वा. हवेज्ज णियमाऽण्णपयडीणं ॥७११॥ णामाण केवलदुगे, सठाणसणिकरिसो अवेभव्य । गवईएऽत्थि णिरयदुग-तिरियेगारसगवज्जाणं ॥७१२॥ दुअणाणाजयतिअसुह-लेसामिच्छेसु होइ तिरियव्व । परमाहारसगअसइ, व जिणस्स भवेऽण्ण असइ धुवा ॥७१३॥
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६८ ] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे [ सन्निकर्ष
जिणअसइ व सेसाणं, वीसाए संजमे अहक्खाए । णियमियराण णिरयदुग-तिरियेगारसगिगासंते ॥७१४॥ सेसाण सिआ एगा-संते आहारसत्तगा णियमा । छण्हं सेसाण सिआ, सेसाण सिआ जिणासंते । ७१५॥ सेसेगअसत्ताए, सिआ जिणस्स णियमा-ऽस्थि सेसाणं । सट्ठाणसण्णियासो, सव्वाणोपव्वऽणाहारे ॥७१६॥ घाइछचत्तति पाउग-तेरसणामाण णियमिगासंते । विग्घणवावरणाओ, होइ असत्ता सिआ-Sण्णेसि ॥७१७।। एमेव दुणिदाणं, णवरि सिआ-ऽऽवरणणवगविग्घाणं । थीणद्धियतिगतिरिये गारसगाओ इगासंते ॥७१८।। णियमा-ऽण्णतेरदरिससगाउतिगणिरयदुगाण वा-ऽण्णेसि ।(गीति:) सायियरेगासंते, सिहयरणरतिगपणिदियजिणाणं ॥७१९॥ तसतिगसुहगाऽऽइज्जग-जसउच्चाण णियमाऽण्णेसि । मोहेगासत्ताए, मोहसठाणव्व वाऽण्णेसि ॥७२०॥ (उपगीतिः) णवरि दरिसणसगूणअ-संते थीणद्धितिगतिआऊणं । तिरियेगारसगणिरय-दुगाण णियमा असत्ताऽस्थि ॥७२१।। आऊणेगअसंते, वाऽण्णऽखिलाणऽण्णणामिगासंते । णामसठाणव्य भवे, विउवेगारसगअस्संते ॥७२२। सम्मत्तमीसणारग-सुराउगाण णियमा सिआऽण्णेसि । सम्मत्तमीससुरणर-णिरयाउगउच्चगोआणं ||७२३॥
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द्वारम् । स्वापज्ञ-हेमन्तप्रमाणिसमलङमृतोत्तरपयसित्ता [६६
होई जरदुगासंते, णियमा-ऽण्णेसि सिआऽण्णसव्वाणं । णियमा पणिंदितसतिग सुहगाइज्जजसिगासंते ॥७२४॥ वा-ऽण्णाणाहारगसग-तित्थअसंते-ऽण्णणामिगासंते । वा सायियरणगउग-उच्चाणऽत्थि णियमाऽण्णेसि ॥७२५॥ सम्मदुगति आउविउवि-गारसगाहारसगजिणाण भवे । णियमा उच्च असंते, तेत्तीसाहियसयस्स सिआ ॥७२६॥ णीअअसत्ताअ सिआ, दुविज्जणरतिगपणिदियजिणाणं । तमतिगसुहगाऽऽइज्जग-जमउच्चाण णियमाऽसि ॥७२७।। सव्वणिरयदेवेसु स-जाईण सठाणगविगासंते । वाऽण्णाण णवरि मिच्छा-ऽसते तिरियाउगस्स धुवा ॥७२८॥ तुरिआईसु इगमए, दुइआईसु णिरयेसु भवतिगे । सम्मगमीसअसंते, आहारगसत्तगस्स धुवा ॥७२६।। सट्टाणव्व तिरिक्खे, पणिदियतिरियतिगे सजाईणं । वा-ऽण्णाण णवरिणियमा-ऽऽउदुगस्स उ मिच्छगासंते ।।७३०।। मिच्छाणासंते णो, विउवेगारसगणरदुगुच्चाणं । ण विउविगारसगणरदु-गुच्चासंतेऽणमिच्छाणं ॥७३१।। सम्मत्तमीसणारग-सुराउगाण णियमा गराउस्स ।(गीतिः). मणुयदुगुच्चासंते, णियमा उच्चस्स गरदुगासंते ॥७३२॥ गरदुगमुच्चासंते, विण णामाण णियमा गराउस्स । वेउव्वेगारसगा-ऽसंते दुपणिदितिरियेसु ॥७३३।।
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७० ] मुनिश्री वीरशेखर विजयरचिते सत्ताविहाणे / सन्निकर्षणिअमा होएज्ज तिरिय- जोणिमईए असत्ता उ । सम्मत्तमीसमोहअ-संते आहारगसगस्स || ७३४ ।। (उपगीतिः) सङ्काणव्व अपज्जग-पणिदिति रिणरपणिदियत से सु सव्वेगविगल इंदिय - पणकायेसु सजाईणं ।।७३५ ।। ससजोग्गाणेगासह, सेसाण सिआ परं भवे नियमा । आहारसत्तगस्स उ सम्मत्तगमीसगासंते ।।७३६।। तेरसणामासइ सम्मदुगस्स धुवा णराउउच्चाणं । णरजुगलासंते तह, उच्चासह णरदुगूणाणं ॥७३७॥ तिरिया असंते णो, पणिदियतसेसु णरदुगुच्चाणं । मणुयदुगुच्चासंते, तिरिया उस्स ण खलु असत्ता || ७३८|| ओघव्व सजग्गाणं, तिमणुयदुपणिदितसभवीसु परं । सायरस असारण वि-रोहो णीअस्स उच्चेण || ७३६|
रिगदुगुच्चेहिं धुव-सत्तातिरिया उगाण उ विरोहो । सह पणसु णराउस्स य, मिच्छाणणधुवसत्ताहिं ॥ ७४०॥ तिरिया उस्स विउविगा - रसगासंतेऽत्थि णरदुगे नियमा । ओघव्व सजोग्गाणं, मणतिगसच्चवयसुक्का सु ॥७४१॥ णवरि णराउअसंते, णो चत्ताघाइतेरणामाणं । तह तस्स ण सिमसंते, थीणद्धिव्व णिरयदुगस्स || ७४२ || एवं दुमणवयेसु स-जोग्गाणोघव्व होह दुवयेसु । ( गीतिः ) परमिगवण्णासंते, ण णराउस्स तह सिं ण तयसंते ||७४३ |
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द्वारम् ] स्वोपज्ञ - हेमन्तप्रभा
चूर्णिसमलङ्कृतोत्तरपयडिसत्ता [ ७१
सुरदुगविक्किय सगेहिं
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धुवसत्तातिरिया उवि - रोहोऽत्थि सुरदुगविउवसगासइ, जिणस्स णियमा असत्ताऽत्थि ||७४४ || कायुग्लाहारेसु सन्जोग्गाणोघन्व णवरि विष्णेयो । सुरद्गविउवसगाणं, धुवसत्ताहिं सह विरोहो ||७४५|| मिच्छ्रचउअणरहि अधुव-सत्ताण णराउणा सह विरोहो । णरदुगउच्चेहिं धुव मत्तातिरिया उगाण भवे ॥७४६ ॥ सुरदुगविउवसगासड़, जिणस्स णियमा णराउगासह वि । उरले जिणस्स नियमा, तह तिरियणराउगविगेहो ||७४७|| मिच्छाणासंते णर- सुदुगवेउव्वसत्तगुच्चाणं ण उरलमी से कम्मे, मोहसठाणव्व वा ऽण्णेसि ||७४८ || वा-सिं सम्मदुगअ णराउआहारसगजिणा संते । (गीतिः) वरिकमा णरतिदुगा-णच्चस्स य ण तिरिया उगासंते ||७४९|| चत्ताघाइतिरियिगा- रसगासह ण णरतिगसुरदुगाणं | ( गीतिः) विउवसगुच्चाण सिआऽऽहारसगजिणाण नियमओ ऽण्णे सिं ॥ ७५० ।। मिच्छाणाणाउ अधुव-सत्ताण सिआ णराउगासंते । (गीतिः) आउसठाणव्व धुवा, जिणस्स मीसे ण एगवण्णाए ।।७५१ ॥ निरयदुगासह नियमा डण्णिगसम्म उगदुगाण वाऽण्णेसिं । णरसुरदुगविउवसगअसंते णामाण खलु सठाणव्व ॥ ७५२ ( गीतिः) धुवघाइपञ्चचत्ता - तिरियाऊणं ण नियमओऽण्णेसि । (गोतिः) व तिरिणराऊच्चाणं, णवगे उच्चस्स णरदुगव्व व से । । ७५३ ।।
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७२ ] मुनिधीवीरशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे ( सन्निकर्षविउवाहारदुगेसु, परिहारे देसतेउपउमासु । उत्समवेअगसासण-मीसेसु भवे सठाणव्व ॥७५४॥ अण्णयरेगासंते, ससजाईणं सिआ-ऽण्णेसि । वरं मिच्छ असंते,तिरियाउस्स विउवे णियमा|७५५॥(उपगीतिः) देसे गराउगस्स ण, तिदंसणासइ णराउअसह ण सिं । (गीतिः) णियमा जिणस्स मीसे, आहारसगस्स सम्मअसइ धुवा ।।७५६॥ थीए थीणद्धियतिग-तिरियेगारसगओ इगासंते । मज्झट्टकसायणपुम-तित्थाहारगसगाण सिआ ।।१५७।। हवए णरतिगसुरदुग-विउवसगुच्चाण ण णियमा-ऽण्णेसि । सेमाण सजाईणं, सट्टाणव्य उ सिआ-ऽण्णेसिं ॥७५८ । परमडकसायणपुमअ-संते थीणद्धियव्व सेसाणं । मिन्छाणासंते णो, परसुरदुगविउवसत्तगुच्चाणं ॥७५९।। (गीतिः) मिच्छासइ ण णराउस्स णराउअसइ जिणस्स णियमा णो। गीतिः) थीणद्धितिगतिरियिगारसगअडकसायणपुममिच्छाणं ॥७६०॥ तिरियाउअसइ गरदुग-उच्चाण ण विउविगारसगअसइ (गीतिः) सम्माउदुगाण धुवा, सुरदुगविउवसगअसइ ण धुवाणं ॥७६१॥ धुवसत्ताअडवीसा-तिरियाऊण गरदुगअसइ ण धुवा ।(गीतिः) सम्मदुगाउच्चाणुच्चस्स गरदुगन्ध णवरि तम्स सिआ li७६२ । थिव्व पुरिसे णवरि ण असत्ता मणुयतिगसुरदुगासंते । विउवसगुच्चा संते, य थीअ वा-ऽस्थि इयरासंते ॥७६३।।
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द्वारम् ] स्वोपज्ञ-हेमन्तप्रमागिसमलाकृतोत्तरपयडिसत्ता [ ७३ णरतिगदेवदुगविउव-सगुच्चगोआण थीअसते ... णो । व जिणाहारसगाणं, णियमा सेसपणतीसाए ॥७६४॥ मणुयाउस्सऽण्णुण्णं, मिच्छेणं सह सिआ जिणस्स सिआ। मणुयाउअसत्ताए, एवं णपुमे विण णपुमथी ॥७६५।। सोलसथीणद्धितिगाइअडकसायित्थिणपुमिगासंते गयवेए णियमेयर-पणवीसदरिसणसगसुराउणं ॥७६६(गीतिः) वा-ऽण्णाण दरिसणसगा-संते मोहाण खलु सठाणव्व । सेसाण सिआ णरतिग-उच्चाण पणिदिजाइव्व ॥७६७॥ सायव्य सुरदुगविउव-सगाण ओघव अस्थि सेसाणं । कोहाईसु पुमव्व उ, णवरि व पुमहस्सछक्काणं ॥७६८।। माणाईसु कमिगदुति-संजलणाण वि परं असत्ता सिं । (गीतिः) णरतिगसुरदुगविउवस-गुच्चासइ ण सगअडणवदसण्हं।।७६९।। चउकोहाईसु कमा, सगअट्ठणवदसमोहअस्संते । मोहाण सठाणव्व उ, सेसाणं णपुमपयडिव्व ७७०।। सोलसगथीणगिद्धिय --तिगाइमोहेगवीसिगासंते । (गीतिः) अकसाए णियमेयर-सुराउदरिसणसगाण वा-ऽण्णेसि ॥७७१॥ सेसाण अवेअन्य उ, अहखाए एवमेव सव्वेसिं । (गीतिः) गरतिगपणिदितसतिग--सुहगाइज्जजसउच्चवजाणं ।।७७२।। चउणाणोहीसु मण-व्व सजोग्गाण गवरं सठाणन्व । मोहाण . सजोग्गाणं, केवलजुगले अवेअव्व । ७७३॥
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७४] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणं । सन्निकर्ष
सम्मासंते तित्या-ऽऽहारसगाण दुअणाणमिच्छेसु। (गीतिः) णियमा-ऽणाण सिएवं, मिस्सस्स परं धुवाऽस्थि सम्मस्स ॥७७४॥ आउ असंतेऽणाण व. तिरियाउ असई ण णरदुगुच्चाणं । णामाण सठाणब उ. णामअयते सिआऽण्णेसि ॥७७५।। णार असत्ता णियमा, विउगारसगणरदुगासंते । सम्माउदुगाण धुवा, णराउउरुच ण णग्दुगासंते ।७७६॥(गीतिः) तिरियाउगस्म णो णर दुगव्य उच्चस्स गरि तस्स सिआ । मिस्साऊण विभंगे,सम्मासंते सिमा धुवाऽण्णेसि ॥७७७॥(गीतिः) मिस्सस्सेवं णव,णियमा सम्मस्स सेसिगासंते । पयडीण सजाईणं, सट्ठाणन्य उ सिआऽण्णेसि ॥७७८।। सप्पाउग्गाणोघ-ब्ध संजमे णवरि वेअणीअम्स । अण्णयरवेअणीअअ-संते इयरस्स ण असत्ता ॥७७६।। सम्मगमीसअसंते, मोहसठाणव्य थीणगिद्धिव्व । णिरयदुगस्स उ सुरदुग विउवसगाण अहखायव्व ।।७८०॥ सोलसथीद्धितिगाइइगासंते उ समाए छेए ।(गीतिः) पणरसियरदरिसणसग-तिआउगाण णियमा सिआऽण्णेसि ॥७८१॥ मोहाण सठाणविग-मोहासंते सिआण्णेसि । (उद्गीतिः) णवरि दरिसणसगूणा-ऽसते णियमा तिआउगाण तहा ७८२॥ सोलसथीद्धितिगाईणं वाऽण्णाण सेसिगासंते । अकसायव्य उ सुहमे, सप्पाउग्गाण पयडीणं ॥७८३॥
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द्वारम् ] स्वोपज्ञ हेमन्तप्रमाणिसमलकृतोत्तरपडिसत्ता [ ७५
अजया-ऽसुहलेसासु स-जाईण सठाणगध वा-उण्णेसि । पररि तिरियाउणा सह, णरदुगउच्चाण व भवे ।।७८४॥ अणमिच्छासंते णो, विउवेगारसगणरदुगुच्चाणं । ण विउविगारसगणरदु-गुच्चासंतेऽणमिच्छाणं ।७८५॥ सम्माउदुगाण धुवा, णराउणोणरदुगुच्च असइ धुवा । (गीतिः) उच्चस्स गरदुगासइ, धुवुच्च असइ गुणवीसणामाणं ॥७८६।। जयणेयरसण्णीसु, सजोग्गपयडीण होई ओघव्व । णवरि तिरियाउणा सह, गरदुगउच्चाण उ विरोहो ॥७८७।। धुवसत्ताहि विरोहो, णरसुरदुगविउवसत्तगुच्चाणं । (गीतिः) सह अणमिच्छरहि अधुव-सत्ताहि णराउगस्स उ विरोहो ७८८॥ इगअसइ सजाईण अ-भव्वे सट्ठाणगव्व वाऽण्णेसि ।
वरि तिरियाउणा सह, गरदुगउच्चाण ण असत्ता ॥७८६।। णियमा-ऽऽउदुगस्स विउवि-गारसगासह तिघाउउच्चाण। (गीतिः) गरदुगअसइ धुवुच्चा-ऽसड होइ तिआउविउविगारण्हं ',७६०॥ ओघन्च सजोग्गाणं, सम्मे खइए परे असत्ताऽस्थि । दरिसणछगस्स णियमा, सम्मासंते.ऽणमिच्छाणं ॥७९१।। मीसासंते णियमा, णिरयदुगस्सऽस्थि थीणगिद्धिव्य । गयवेअव्व मणयदुग-सुरदुगविउवसगउच्चाणं ॥७९२॥ अमणे सट्ठाणब्व स-जाईजणाण व णवरं णियमा । सम्मगमीसासंते, आहारगसत्तगरस भवे ॥७६३।।
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1
७६ ] मुनिश्रोवोरशेखर विजय रचिते सत्ताविहाणे [सन्निकर्षद्वारम णियमा होड़ विउब्वे - गारसगमणुस्सदुगअसंतम्मि । सम्मत्तमीसणारग- सुराउगाणं असत्ता ॥७९४।। अन्थि णरदुगासंते, णियमा मरणुयाउउच्चगोआणं उच्चासने णियमा, तेवीसाए विण णरदुगं । ७६५॥ चत्ताघातिरियिगा -- रसगासंते धुवा अणाहारे । ( गीतिः ) वण्णेवर दरिसण सग-तिआउगणिरयदुगण वाऽण्णेसिं । । ७९६ ।। साणच हवेज्जा, ससजाईण खलु सेसिगासंते 1 ओघव्व सण्णियासो, हवेज्ज सेसअसजाईण ।।७९७ ।।
(हे. चू. " पण० " इच्चाइ बोधालीसाहियतिमय गाहा सामिनादिविसेसेण सयमेव मणिदव्वा ॥ ४५६-७९७ । अह भंगविचयद्वारं मणिज्जदि
इति
आचार्यविजय श्री वीरशेखर सूरिरचितं सत्ताविहाणं
(सत्ताविधानं)
तत्थ
स्वोपज्ञ हेमन्तप्रभाचूर्णिसमालङ्कृता
पर्याडिसत्ता
"
(उत्तरप्रकृतिसत्ता) पूर्वाधः समाप्तः
उ
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"
॥ अथ प्रथमं परिशिष्टम ॥
॥ मूलगाथाद्यांशाः ॥ अकारादिक्रमेणोत्तरप्रकृतिसत्ताविधानप्रथमाधिकारसन्निकषद्वार..
पर्यन्तमूलगाथाद्यांशाः गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः
- अस्थि गरदुगासते ७६५ अंतमुहत्तं समयो, ३६४ अस्थि तिमणसच्चवयण २१४ अतमुहुत्तमणाणं, . ४२८ अन्तिमवज्जणिरयसग० ६५६ अंतमुत्तमण पण २७० अपमत्तता-ऽणाण व, अंतिममायाईण, ४६१ अपमत्तता तिरि० अंतिमवज्जणिरयसग० ६५६ अप्पज्जत्तपणिदिया २८४ प्रकसायव्व उ सुहमे,
६८७ अप्पज्जत्तेसु चउसु, अजए जेट्टो साहिय० ३१६ अप्पज्जपरिणदितिरिय अजयासुहलेसासु, ६२५ प्रब्भहिय पुव्वाणं, प्रजयासुहलेसासु, २२६ अभवम्मि प्रणाइधुवा, प्रजयासुहलेसासु स० ७८४ प्रभवियसासाणेसु, अडवीसप्रधुवसत्ता० ३६२ प्रमणे पाऊण लहू, प्रणच उगसम्ममीसदु २०८ प्रमणे सट्ठाणव्व स० प्रणच उगाउदुगाणं, ३७३ अवसेसाण सिना पर प्रणतित्थारण उवसमे,... २२८ असमत्तपणिदितिरिय : २०० अणमिच्छतिपल्ला ऽण्णो, ३४३ असमत्तपणिदितिरिय०२१० प्रणमिच्छाउजिणाण प्र० ३८७ असमत्तपणिदितिरिव ५७३ प्रणमिच्छासते णो, ७५ असमत्तपणिदितिरिव्व:२९४ प्रणिगप्रसंते सेसति० ६६६ अस्सत्ता प्रणाणं,
२६८ अण्णयरेगासते ७५५ ग्रह विण्णेयारिण पडि० १६३ अण्णाणदुगन्ध णिरया ६१५ मह सच्चउरिविभूषण. १९० अण्णा दुगे मिच्छे, २१३ अहियपणवण्णपलिया, ३८६
२५६ ५१३ ३६९
७५०
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२]
गाथाद्यांशाः
अहिया समा श्रड णिश्य०
श्रा संतेऽणाणव, श्राउति गरिरयद्गतिरि०
प्राउ पठाणव्व विउवि०
श्राउसठाणव्बा -ऽऽउग०
श्राऊणेगप्रसंते,
प्राणतपहुडीसु विण दु०
श्राहारदुगे ण भवे,
श्राहारगे या
श्राहारदुगे णेया,
प्राहारदुगे सुहमे, ग्राहारमीसजोगे,
ब्राहारमीसजोगे,
श्राहारसगस्स दुहा,
प्राहारसगस्स लहूं,
श्राहारसत्तगस्स उ,
प्राहारसत्तगस्स उ,
प्राहारसत्तगहस ख०
इ
इगग्रसर सजाईए प्र० इगवीसान प्रवेए, इगवेधणीप्रसते,
प्रथमं परिशिष्टम्
गाथाङ्काः
२६४
इगसंते एगारस० इगतेऽण्णस्स तहा,
७७५
६१९
४४६
४६
३३१
३१४
७८६
५०६
५४५
[ मूलगाथाद्यांशाः
५०३
५७६
गाथ द्यांशाः
५७२
६२६
७२२
. २०२
७०९
५३२ ऊणा गुरुकाय ठ
२१६
ऊना लहकार्याठि
४८०
३६१
३०२
४४१
इत्थीणपुंससते
इह तवसमे मोसे
उ
उच्चस्स णीअसते उच्चस्सोधन्व तिणर०
उरले सव्वारण लहू
ऊ
ऊणपणवण्णपलिया
ऊणपणवण्णवलिया
ए
एगस्स असंते उ०
एगस्स संते पण०
एगस्स प्रसत्ताए,
एगस्स दसणति,
गाथाङ्काः
५०७
३६३
एगस्सा-ssउस्स विउव० एमेव दुणिद्दारण,
एवं प्राहारदुगे,
एव दुमणवयेसु
एव दुमणवयेसु स०
एवमपज्जणरे णर०
श्रो
ओघव प्रणाणदुगे,
श्रोधव्व प्रणाणदुगे,
४६ १
४१०
२६८
३६५
४१६
३४५
३३६
६३७
६३६
६५६
४५९
४८५
७१८
५०१
५८०
७४३
६९६
४४७
४२०
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४७२
५३३
मूलगाथाद्यांशाः प्रथमं परिशिष्टम्
गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः ओघन्य प्रणाहारे, ६३५ कायुरलेसु जहण्णो, ३५६ मोघव्व प्रणाहारे, ६५२ कालो प्रणाइणतो, . २६१ प्रोघव्व असत्ताए, ६५० कोहाईसु पुमक्ष स० २२२ प्रोघव उरलमीसे, ६७३ प्रोघव कायुरालिय० ५२८ खइमारणाहारेसु, ६५१ मोघव णिरयपढमति० ४६२ खइए विण दरिसणसग० ६८० मोघम्वऽण्णासु णवरि, ४८६ मोघव्व तिकोहाइसु, ६८२ गयवेए प्रकसाए, ५०५ मोघव तिमणुएसु, ५२२ गयवेए प्रकसाए, २२१ प्रोघव पणिदियतस० ७.० गयवेए प्रकसाए, मोघव माणुसीए, ४ गयघेए प्रकसाए, प्रोघव्व सजोग्गाणं, ७३६ गुरुमूणगुरुठिई प्रण ४३६ प्रोघव्व सजोग्गाणं, श्रोधव्व सण्णियासो, ५७४ घाइअधुवसत्ताणं, प्रोघव्व सणियासो, ४७१ घाइचउप्राउजाइणिरय० २९५ प्रोधवाउजिरणाण दु० २९२ घाइच उमाउसुर दुग० प्रोघधिगतीसाए, ४१० घाइछचत्ततिप्राउग0 पोरालमीसजोगे, ३५८ घाइरिगरयतिरिणरसुर० २५६
घाइतिरियाउतेरस. २४६ कम्मप्रवयकाऊK ४६३ घाइतिरियाउतेरस०७६ कम्मतिवेअकसाय० १९६ घाइदरिसरणसगरहिन० २५६ कम्माणाहारेसु ३०३ घाइसुराउगतेरसः ३१३ कायउरलदुगकम्मण कायुरललोहणयणियर० ६७० चउमणमिच्छाइतिगन. ६८४ कायुरलाहारेसु स० ७४५ बउआउतित्थदसण, २१८
५८३
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प्रथमं परिशिष्टेमूलगाथाद्यांशाः
३५४
૨૨૨
2
५५१
७२२
गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः चउमालोसाहियसय० ३०७ गयणेयरसरणीसु, ७८७ चउकोहाईसु कमा, ७७० णयणे सणिम्मि दुहा, चउणाणोहीसु मणव
गरपाउगइपणिदिय० चउबीनावराण व, ६३८ णरगइउच्चाण उ सग. चउसजलणाण सिप्रा, ६४४ परगइणिदितसतिग० चत्ताघाइतिरियिगा. ७५० णरगइपणिदितसतिग० ५५२ चत्ताघाइतिरियिगा. ७६ णगइपणिदितसतिग० चरमणिरयप्रसमत्त० ४७६ परतिगदेवदुगविउव०
परदुगपणिदितसतिग० छण्णदरिसणाण सिमा, ६७४ गरदुगपणिदितसतिग० छोहसुहमभेएसु, २८९ परदुगमुच्चासते,
परदुगसइ वुच्चस्स उ, जिणप्रसह व सेसारणं, ७१४ परदुगसतम्मि सिप्रा. जिणणिरयसुराऊ विण, २०१ परिगदुगुच्चेहि धुवः जिणतेरणामणरसुर० ५३१ वदरिसणावरणप्रो, जिगसते णिरयज्जति. ५१६ णवबोप्रावरणाणं, ४७३ जेटुं अंतमुहुत्तं, ४२६ णवर या बारस० जेट्रो तिरियाउमणुय० २६६ णवरं भिन्नमुहतं, ३०४
गवरं मिच्छस्स गुरू, ३८८ माऽण्णाण भवे जे ४५४ णवरं सम्मस्स सिमा, णऽण्णाणऽहियतिपल्ला, ४३६ वरि प्रणाणं ऊणा, ३८९ ण तिरियिगारसगे णर० ७८ गरि असत्ता णियमा, ७७६ पत्थि चउप्रणणाणं, ४०४ गवरि जहण्णो समयो, पत्थि रिणरयाउसंते, ६११ णवरि जिणस्स जहण्णं, ४४६ गपुमे थीए दुविहो, ३६८ णवरि ण जिणसते तिरि० ६०१
७४०
६८६
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________________
०
५२४
मूलगाथाद्याशाः। प्रथमं परिशिष्टम्
गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः णवरि णरदुगस्स सिपा, ४६७ णियमा-ऽऽउदुगस्स विउवि० ७९० णवरि णरदुगुच्चाणं, ४१४ णियमा णराउसते, ६३० गवरि गराउअसंते, ७४२ णियमा ऽणचउदसण्ह० ६४२ गवरि तिरिये तिपल्ला, २८३ रिणयमा ऽण्णतेरदरिस० ७१६ गवरि दरिसणसगूणप्र० ७२१ णियमा-ऽण्णाण सुराउ० ६१२ रणवरि दुतसचक्खसु, ४१२ णियमा-ऽऽण्णाणाहारग० रणवरि पणऽणुत्तरेस, २७८ णियमा-ऽण्णेसि एवं, ५६८ णवरि लहू तीसु खणो, ३१८ णियमाऽण्णेसि तेरस० ५३० णवरि व जिणस्स सव्वह, ५३६ णियमा-ऽण्णेसि मज्झिम० ४६०
वरि विणा सयलागरिण० २११ णियमा ऽण्णेसि सेसिग० ५१७ णाऽऽउदुगस्साऽऽउगतिग० ५६३ णियमा-ऽण्णेसि सोलस० ६०० णाणतिगोहीसु दुहा, ३७२ णियमा सेसाण सिपा, ६८३ णामसठाणव्व प्रधुव० ५६९ गियमा-ऽऽहारगसगसइ, ५६० णामसठाणव्य धुवा, ५६६ णियमा होइ विउव्वे० ७९४ णामाणं दुपणिदिय० ५.५ णियमियरेगाहारग० ६९४ गामाण केवलदुगे, ६०९ णियमुच्चस्स उ सुरदुग० ६०२ णामाण केवलदुगे, ७१२ णिरयज्जतिणिरयतिरिय० ६६३ णामाण सठाणव्व उ, ५६० णिरयतइअरिणरयेसु, २७६ णारगदुगसते खलु, ५१९ णिरयतिरिक्खाऊणं २५० णारगदेवदुगाणं, ५३६ णिरयतिरिक्खाऊणं ३३५ णारगदेवाऊमो, ४६३ णिरयतिरिक्खाऊ विण, २०५ गारयतिरियाऊणं, २४६ णिरयतिरिरणराऊणं, णिग्रमा होएजज तिरिय० ७३४ णिरयदुगस्स प्रभविये, ५३७ णिहादुगस्स दुविहो, ३७६ गिरयदुगासइ णियमा० ७५२ णियमा प्राहारदुगे०६७६ णिरयदुगेगप्रसंते, ६४५
३०६
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प्रथमं परिशिष्टम्
[ मूलगाथाद्यांशाः
३४०
गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः गाथाद्यांशाः गाथाङ्का गिरयदुगे तस्स अडसु, ३४१ तह णिरयदुगस्स सिमा, ६४६ णिरयपढमणिरयेसु, २७५ ताउ कमाऽहियऽहिययर० २३२ गिरयपढमाइतिरिणरय० २०७ तिप्राण धुवा अणिग० ६७८ णिरयव्व णवरि णियमा० ४१५ तिण रेसु मुहत्तंतो, गिरयसुराऊण लहू, २६३ तित्थसंतम्मि सिना, ६९६ णिरयसुराऊरण वि वा, ५६३ तित्थस्स मुहुत्तंतो, णिरयसुराऊरण सिपा, ४८४ तित्थस्स लहुभवठिई, णिरयसुराऊहिन्तो, ६६१ तित्थस्स सुहासु खणो, गिरयाउगस्स अयरा, ३२२ तित्थाहारगसत्तग० २३७ णिरयाउजिणारण लहू, ३३० तिदरिसणमोहचउप्रण. २५७ गिरयाउस्स तिप्रयरा० ३३२ तिदरिसणाण तिरितिगे, २५२ गिरयाउस्स सुहासु, ३२६ तिपणिदियतिरियेसु, ४३१ णिरये पढमाइणिरय० १६८ तिपणिदियतिरियेसु, ४०८ णीप्रप्रसत्ताप्रसिप्रा, ७२७ तिमणुयदुपणिदियतस० णीप्रस्स उच्चसंते, ४८६ तिरिचउगे देसजई २४५ गुणा तेत्तीसुदही, ३९४ तिरिणिरयाऊण लहू, ३०५ णेया प्रजोगिता, २३४ तिरितिपदितिरियणर० ६६० णेया इहत्तरपयडि० १६१ तिरिमणुयाऊण सयल० २७३ णेया बासीईए,
२३६ तिरियणराउगसंते ४६४ यो गुरुकाठिई, ३६६ तिरियव्व सजोग्गाणं, ३५० यो गुरुकाठिई, ३६७ तिरियाउअसइ परदुग० ७६१
तिरियाउअसंते णो, ७३८ तइअस्सेगप्रसंते,
६३१ तिरियाउगस्स णो पर० ७७७ तसतिगसहगाऽऽइज्जग० ७२० तिरियाउतेरणाम० ५७८ तह पाहारगसत्तग० ६०४ तिरियाउस्स अयरसय० ३७०
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७५७
५४३
३४१
५९७
मूलगायाद्यांशाः ] प्रथमं परिशिष्टम् [७
गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः तिरियाउस्स विउविगा० ७४१ थोए थोणद्धियतिग०। तिरिये अंतमुहत्तं, ४०७ थीणद्धितिगतिरियदुग० तिरियेगारसगस्स ण, ७०६ थोणद्धितिगतिरियदुग० ५४८ तिरियेगारसगस्स ण, ७०५ थीगद्धितिगसुराउग० २३० तिरियेगारसगेगअ. ६९७ । थीपद्धितिगस्स तहा, तिरिये पणिदियतिरिय० १६४ थीणद्धितिगाईरण, तिरिये मिच्छस्स अहिय० ३४२ तिरिये लहुकायठिई, २८१ दसणआउगद्गजिण. तीस वि थोरणद्धितिगति० २२० दसणआहारगसग० तीसोघन्य लहुँ विण, ४१५ दसणविउवाहारग. २०६ तुरिपाईसु इगमए, ७२६ सणसगतित्थाण व, तेउअणिलेसु तेसि, २६० सणसगस्स चउणाण. ५०९ तेत्तीसघाइआउग. २१५ दंसणसत्तगसंते, तेत्तीसघाइआउग० २२७ दरिसणआवरणाणं, तेत्तीसा मिच्छस्स अयर. ३५४ दरिसणिगअसंते गय० । ६८० तेरसणाममणुयसुर०
दुअणाणव्व हवेज्जा, तेरसणामासइ सम्म०
दुअणाणाजयतिअसुह. तेरसणामिगसते,
दुदरिसणमोहचउअण. तेवीसा-ऽण्णाण सिपा, ६४१ दुपरिणदितसभवीसुति० तेसु पडिप्राईसु, १९२ दुणिदितसेसु गर० ३५२
दुपणिदितसेसु दुहा, ४३५ थिम्व पुमे सव्वह उव, ६७९ दुमणवयरगचउणारगति० थिव्व पुरिसे णवरि ण अ. ७६३ दुवयेसु णिरयदुगिगा० ७०३ थीन जहण्गो सोलस० ३६३ दुविहं देवाउस्स कमा० ४१६ थीअ णपु सगसते, ५०२ दुविहो पणिहाण, ३८५
४७.
३२६
७३७
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--------------------------------------------------------------------------
________________
८ ]
गाथाद्यांशाः
दुविहो समयो यो, दुहिगक्खे काये लहु० देवाउगस्स ऊणति०
देवाउजिणाहारग०
देवाउन्स जहणं संता तह सिद्धा, देसूणद्धपरट्टो,
देसे ण उगस्स ण, दो विगुरुकाठई,
ध
धुवघाइपचचत्ता० ध्रुवसत्ताअडवोसा,
धुवसत्ताणोघअणव्व० धुवसत्तातिरियाउवि०
ध्रुवसत्ताहि विरोहो, धुविगासंते ऽण्णाण व. धुवियरणरदुग विजवस०
प्रथमं परिशिष्टम्
गाथाङ्काः
३६२
४३४
३६७
३१५
४४४
२३९
पंचक्खव्वाहारे, पज्जणरव्वऽखिलाणं, पणरणारावरणाश्रो, पणऽणुत्तरेसु सम्मअ० पण मरण वय काय उरल ०
२६२
७५६
३५७
[ मूलगाथाद्यांशा
७८८
७०२
५८८
न
नियमात्थि इयरसंते, ४८१
प
गाथाद्यांशाः
पण वय काय उरल ०
पर विग्धरणवावर रिग०
परमडकसाग पुमश्र० परमत्थि साइसंतो,
परमाउतिगस्स गुरू,
परमाहारसगजिणाण
७५३
७६२ पल्लासंखियभागो,
परमूणिगती सुदही
परिहारे तह देसे
परिहारे व सुराउजिणा०
पल्लासंखसो सुर
पल्लासंखिय भागो,
३१७
पल्लासखिय भागो,
७४४ पुरिसे अडतीसाए
ब
बारकसायतिदग्सिण बीआवरणऽण्णछगा,
गाथाङ्का:
४१३
६०३
७५९
i .४००
६१६
४५६ भिन्नमुहुत्तं दुविहो,
६७५ भिन्नमुहुत्त दोसु अ०
२४१
भिन्नमुत्तमणाणं,
३७८ ३५३
३६५
४२२
६६१
६२०
४५२
४५५
२७४
४३७
५०४
६४३
४७५
भ
१९४
भंगविचयो उ भागो, भवणतिगम्मि विणा जिग० २०३ भवियेत मुहुत्त, भिन्नमुत्तं गयो,
३६१
३५०
३००
३२८
२७१
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________________
मूलगाथ द्यांशाः ]
प्रथमं परिशिष्टम्
२०६ ७९२
गाथाद्यांशा गाथाङ्काः गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः
मिच्छासइ ण णराउस्स ७६० मज्झिमकसायअट्रग० ५४६ मिच्छे सण्णिम्मि तहा, १६७ मणुयव्व केवलदुगे, ५३४ मिस्सस्स सिआऽण्णाण ण, ६६७ मणुयाउगसते वा, ५८६ मिस्सस्स सिमा सम्मअ० ६६९ मणुयाउस्सऽण्णुण्णं, ७६५ मिस्सस्सेवं णवरं, मणुयाउस्स तिणाणोहि० ४४३ मिस्से सम्मासइ णो, मणुयाउस्स तिणाणोहि. ४८ मीसं सम्म तित्थं, मणुयाउस्स धुवा मण०५८१ मीसासंते णियमा, मणुयाउस्स पुहुत्तं, ३११ मोसे तह सासाणे, माणाईसु कमिगदुति० ___७६६ मोसे सव्वाण भवे, मिच्छअसंतम्मि सिआ, ६६५ मोहस्सोघव्व भवे, मिच्छअसंते दरिसण. ६७५ मोहाण उरलमीसे ५८५ मिच्छचउअणरहिअधुव० ७४६ मोहाणं विउवदुगे, ५६४ मिच्छन्वऽण्णाण णवरि, ६३३ मोहाण मोहसते मिच्छस्सऽणव्य दोसु, ३४८ मोहाण सठाणव्व उ मिच्छस्स मिस्ससंते, ४६४ मोहाण सठाणव्व० मिच्छस्स मुहत्ततो, ३८६ मोहाण सठाणविग० मिच्छस्स वि तीसु सिपा, ५६४ मोहाणोघव्व भवे, मिच्छस्स सहस्ससमा, ३३८ मोहिगसंतम्मि सिआ, मिच्छाउतिगाहारगः ४२९ मोहिगसंते देसे मिच्छाणाउजिणाणं, ३६० मिच्छाणाणाउअधुव० ७५१ लहुजेट्ठो धुवसत्ता मिच्छाणासंते णर० ७४८ लहुमणसम्मणिरयदुग० ४३८ मिच्छाणासते णो, ७३१ लहुमोघव्व णपु से ४४० मिच्छा तह सम्माई, २३८ लहुमोघव रणरतिगे ४३२
५६२ ७८२
२५८
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________________
१०]
प्रथमं परिशिष्टम्
[ मूलगाथाद्यांशाः
२९४
३४४
५४१ २२९
गाथाघांशाः गाथाङ्काः गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः लहुमोघव्व सुराउ० ४४८ विउवेगारसगस्सव, २८८ लहुमोघव्वाहारे ४५३ विउवेगारसगस्स वि, लेसासु लहू समयो, ३२४ विउवेगारस्स दुहा,
विलियमीसे अजए, ६६४ व अवेए अकसाए ६६२ विक्कियमीसे विण पर० २०४ व जिणस्साहारसगा, ६६० विक्कियमीसे सासण० व जिणाहारसगाणं ५३५ विक्कियसगसंते सुर० ५२० व परिसणाहारसगजिरणा० ५५४ विग्घणवावरणाओ, वा-ऽऽउगघाईण अधुव० ५८२ विग्घणवावरणाणं, वाऽऽउणिरयणरसुरदुग० ५८६ विण चरमलोहमेवं, ६८५ वा-ऽण्णाण जिणअसंते, ६४९ विण्णेयो देसूणा, ३७४ वा-ऽण्णाण दरिसणसगा० ७६७ विन्भंगम्मि दुवंसण. २२४ वा-ऽण्णाण विउवदसगा० ६९८ वीसापज्जत्तेसु स० वाऽण्णाणाहारगसग० ७२५ वेअतिगकसायचउग० वा-ऽण्णेसि सम्मदुग० ७४३ वेप्रतिगकसायचउग० विउवव्व तिम्राउ विण, २२५ विउवसगिगासइ धुवा. ६४८ संजमग्रहखाएसु, ३८० विउवसगेगअसते, ६९५ संजमअहखायसुइल. ६५४ विउवाहारगसत्तग० २६७ संजलणव्वऽण्णेसि, विउवाहारगसत्तग० ५२१ संते एगस्स भवे, ४५८ विउवाहारगसत्तग० ५२६ संते एगाउस्स अ. ४८३ विउवाहारदुगेसु, ४५४ संतेऽण्णतिण्ह णियमा, ४५७ विउवेगारसगस्स उ, ४३३ संते साउस्स चरम० ४७८ विउवेगारसगस्स उ, ४३० सगचत्तधाइआउग० बिउवेगारसगस्स य, २६७ सगवीसाए णियमा,
३४६
४८८
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________________
मूलगाथाद्यांशाः
प्रथमं परिशिष्टम्
३०८
२४२
३६३
४११
गाथाद्यांशाः गाथाङ्का गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः सट्टाणव्व अपज्जग. ७३५ समइअछेएसू दुहा, ३८१ सट्टाणव्व अमविये, ६२८ समयो अणमिच्छ धुव० ४०२ सट्टाणव्व उवसमे, ६३२ समयो अणसेसअधुव० सट्टाणव्व तिरिक्खे, ७३० समयो लहुँ रणरतिगे, ४०९ सटाणव्व विभंगे, ६१४ समयो लहू विभंगे, ३७९ सट्टाणव्व हवेज्जा, ७६७ सम्मखइअसणीसु, सट्टाणवाऊणं, ५५० सम्मगमीसअसते, ७८० सत्तरसु सणिणयासो, ४७७ सम्मत्तखाइएसु, सत्तसु वि मग्गणासु, २८२ सम्मत्तमीसणारग० ७३२ सत्ताप प्रणरहिअधुव० ४०३ सम्मत्तमीसणारग० ७२३ सत्ता मोघव्व भवे, २५५ सम्मत्तमीसमोहग० सत्ता णिरयामरदुग० ५३८ सम्मत्तमीससंते, सत्ताऽस्थि अपज्जत्तग. ४९६ सम्मदुगतिआउविउवि०
७२६ सत्ताऽस्मि साउसंते, ४५२ सम्मदुगेगअसंते, ६७७ सत्ता व णिरयरगरसूर० ४६५ सम्मम्मीसाहारग. ३०१ सत्ताऽसत्ता-ऽस्थि पडि० १६५ सम्मस्स असत्ताए, ६४० सत्ता सम्वेसु तिरिय. ४८७ सम्मस्स सिआ मिच्छअ० ६७२ सत्तासामी तिमणुय० २४० सम्माउदुगाण धुवा, सत्ता सिआ हवेज्जा, ५४४ सम्मासते तित्था० सपरपहाणे सव्वह ५७७ सम्मे व गराउस्मा० सपरपहाणे सव्वह, ६१७ सम्मे होइ तिहा चउ० सपरप्पहाणदंसण. ६३१ सम्वणिरयप्रणणुत्तर० ४२७ सप्पाउग्गाणंतर० ४५० सव्वणिरयअणणुत्तर० ४०५ सप्पाउग्गाणंतर० ४५५ सम्वणिरयदेवेसु अ० सप्पाउग्गाणोघव्व ७७६ सम्वणिरयदेवेसु स० ७२८
७८६
७७४
३३७
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________________
१२]
प्रथमं परिशिष्टम
।मूलगाथाद्यांशाः
६३४
६०८
गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः सव्वणिरयेसु तिरियति० २४४ सायव्व सुरदुगविउव०
७६८ सव्वतिरियएगिदिय० ६९३ सासणसजोगिरहिआ, २४७ सव्वतिरियएगिदिय० ५१८ सासाणे इगसते सवप्पयडीण णयण. ६२७ साहारणस्स य सिआ, ५४२ सव्वह असंतसामी, २५१ सियराउगआहारग० ५५९ सव्वाण अणाहारे, ४०१ सियराउतिगस्स लहू २७६ सम्वाण केवलदुगे, ३७७ सुरदुगविउवसगाणं, सम्वाण गस्थि अण्णह ४२४ सुरदुगविउवसगासई, ७४७ सव्वाणऽण्णह लहुगुरु) ३३३ सुरदुगविउवाहारग० ५५५ सव्वाण लहू पणमण ३५५ सुरदुगसते तेरस० ४६८ सव्वाण लहू समयो, ३१६ सुरदुगिगअसंते णियमा सव्वाण वेनगे-ऽण, ३६६ सुहअसुहासुकमसो, ३२७ सव्वाणाहारे लहु. ४२३ सुहमंता विग्णेया, सव्वाणोधव्व णपुम० ४१७ सुहमावहिसुक्कासु, ५२६ सव्वाणोघवऽस्थि ति. ५७१ सुहमे अतमुहत्तं, सव्वाणोघव्व भवे, ४२१ सुहमे दंसरणसंते, सम्वे वि अस्थि अण्णह, ३२४ सुहमे मोहिंगसते, सम्वेसि गवरि सिआ, ५७५ सेसमधुवसत्ताणं सम्वेसुएगिदिय० ५६७ सेसछसीईओ इग. ५७६ ससजोग्गाणेगासइ, ७३६ सेससुरेसु विउवदुग० साइअणंतो-ऽण्णेसि, २६६ सेसाऊण जहण्णो, साइअणंतो तह जिण० २७२ सेसाण अंतरं णो, ४०६ साइअणाइधुवियरा, ०५३ सेसाण अपज्जतसव्व ६१३ साइधुवा ऽस्थि असत्ता, ५४ सेसाण अवेअव्व उ, ७७२ साउअगरहिअधुवसत्ताण २८० सेसाणं जेठिई.
६२३ ११२
५२३ २८६
.
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________________
मूलगाथाद्यांशाः]
प्रथमं परिशिष्टम्
[१३
६२४
गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः सेसाणं जेठिई, २९९ सेसेगप्रसत्ताए, सेसाण परदुगव्व उ, ६२९ सेसेगप्रसंते खलु ६८१ सेसाण पचसु वि साइ० २६० सेसेगमोहसंते,
५४७ सेसाण पुमन्व गवार, ५६५ सेसेसुणिरयेसु ६९२ सेसारण पुमन्य णवरि, ५५८ सोलसगथोणगिद्धिय० ७७१ सेसाण पुमन्व णवरि, ५६० सोलसथोणद्धितिगाइ० ७६६ सेसारण मुत्ततो, २६६ सोलसथीणद्धितिगाइ. ७८१ सेसाण मुहत्तंतो, ३६० सोलसथोद्धितिगा० ७८३ सेसाण मुहत्ततो, २६५ सोलसथीद्धियतिग० सेसाण लहुठिई पर० २६३ सेसाण लहू समयो, २८७ सेसाण लह समयो, ३५१ हवए कायउरलदुग० २१७ सेसाण लहू समयो, ३२१ हवए परतिगसुरदुग सेसाण सम्मसते ४६७ हस्सछगदुवेआणं, ४६२ सेसाण सिआ एगा० ७१५ हस्सछगस्स दुहा खलु, सेसामेव परम० ५८४ होइ असखपरट्टा, २७१ सेसाणोघव्य णवरि, ६०७ होइ जहण्णो समयो, ३३४ सेसाणोघव भवे ५१४ होइ ण देवदुगविउव० ७०४ सेसाणोघव भवे, ५१० होइ गरदुगासते, ७२४ सेसासु मग्गणासु, ४७५ होइ दुहा परिहारे ३८३ सेसिंगसंतम्मि सिमा ५६८ होइ पणमणतिवयचउ. सेसिगसतम्मि सिमा ५९२ होइ लहुणरसुरदुग. ४५१
७०१
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________________
॥ अथ द्वितीयं परिशिष्टम् ॥
॥श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथाय नमः॥ श्री प्रात्म-कमल-वीर-दान-प्रेम-रामचन्द्र-हीरसूरीश्वरसद्गुरुभ्यो नमः श्राचार्यश्रीविजयवीरशेखरसूरिरचितम्
उदयस्वामित्वं जमिअ अणुदयणुदीरग-सिरिवीरं उदयुदीरणासामि । ओहाएसेहि कहिमु, पयडीसु जहसुयं गुरुपसाया ॥॥ उदओ विवागवेअण-मुदीरणमपत्ति इह दुवीससयं । सतरसयं मिच्छे मीससम्म आहारजिणणुदया ॥२॥ सुहमतिगायवमिच्छ, मिच्छंतं सासणे इगारसयं । णिरयाणपुषिणदया, अणथावरहगविगलंते ॥३॥ मीसे सयमणुपुव्वी-ऽणुदया मीसोदएण मीसंतो । चउसयमजए सम्मा-ऽणुपुविखेवा विअकसाया ॥४॥ मणुतिरिणुपुग्विविउवड-दुहगअणाइजदुगसतरछेओ । सगसीह देसि तिरिगइ-आउनिउज्जोअतिकसाया ॥५॥ अदुच्छेओ इगसी, पमत्ति आहारजुअलपक्खेवा । थीणतिगाहारगदुग-छेओ छस्सयरि अपमत्ते ॥६॥ सम्मत्तंतिमसंघयणतिगच्छेओ विसत्तरि अपुवे । हासाइछक्कतो, इसटि अनिअट्टि वेअतिगं ॥७॥ संजलणतिगं छच्छेअ सहि सुहुमंमि तुरिअलोभंतो । उवसंतगुणे गुणसट्टि रिसहनारायदुगअंतो ॥८॥
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________________
उदयस्वामित्वम् ] द्वितीय परिशिष्टम् [ १५ सगन्न खीणदुचरिमि, निद्ददुगंतो अचरिमि पणवना । नाणंतरायदंसण-चउछेअ सजोगि बायाला ।। तित्यदया उग्लाथिर-खगइदुगपरित्ततिगछसंठाणा । अगुरुलहुवनचउनिमिणते अकम्माइसंघयणं ॥१०॥ दूसरसुस्मरसाया माएगयरं च तीसवुच्छेओ । बारस अजोगि सुभगा-इज्जजसऽन्नयरवेअणि ॥११॥ तसतिगपणिदिमणुआउगइजिणच्चं ति चरिमसमयंतो। उदयव्वुदीरणा पर-मपमत्ताई. सगगुणेसु ॥१२॥ एसा पयडितिगूणा, वेणियाहारजुअलथीतिगं । मणुयाउ पमत्ता, अजोगिअणुदीरगो भयवं ॥१३॥ इय उदयुदीरणाणं, देविंदायरिअरइअकम्मथवा । उद्धरिओ खलु ओहो, अह णमो मग्गणासुतु ॥१४॥ णिरयेसुदयछसयरी, थीणद्धितिगपुमथी विणा घाई । सायेयरणिरयाऊ, णी णामस्स तीसाओ ॥१५॥ णिरयुदयारिहणामा, णिश्यविउवदुगपणिदिहुंडधुवा । . परधूसासुक्वाया, कुखगइतसदुहगचउगाणि ॥१६॥ सम्मत्तमीमऽणुदया, मिच्छे चउसत्तरी उ मिच्छंतो । णिरयाणुपुग्विणुदया, दुसयरिपयडीअ सासाणे ॥१७॥ चउअगछेओ मीसे, गुणमयरी मीससजुआ णेया । मीसच्छे यो सम्मे, सयरी णिरयाणुसम्मजुओ ॥१८॥
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________________
१६ |
द्वितीयं परिशिष्टम् [ उदयस्वामित्वम्
,
वरं पंकाई, सासाच्च णिरयाणुपुविखओ । बीअत अणिरयेसु वि एवं इच्छंति अण्णे उ । १६ । सिद्धं तमएऽज्जणिरय छगे ससम्मो वि जाइ तेणुदओ | छज्जणिरयेसु तुरिए गुणम्मि णिरयाणुपुची ||२०|| तिरिये विउवट्टगणर- तिगआहार दुगतित्थउच्चूणा 1 सत्तमयं मिच्छत्ते, पंचसयं सम्ममीसूणा ॥२१॥ सासाणे मिच्छायव सुहमतिगंता सयंमीसे । ( उपगीतिः ) अणजाइच उगथावर तिरियाणु विण समीसा य ||२२|| एगणवई दुणवई, सम्मे तिरियाणुपुव्विसंजुत्ता देसे विणा णरतिगं, ओघव्व हवेज्ज चुलसीई ।।२३॥ पज्जपणिदितिरिक्खे, थावरजाइचउगायवेहि विणा । तिरियोहो अडणवई, मिच्छे विण दोहि छण्णवई ॥२४॥ मिच्छत्तमोहवज्जा, पयडी सासायणम्मि पणणवई । तिरियन्व अस्थितीसु', मीसाईसु गुणठाणेसु तदपज्जे घाई विण, थीण द्वितिगपुममीससम्मित्थी । सायेयरतिरियाऊ, णीअ णामस्स सगवीसा ||२६||
I
।। २५॥
1
॥२७॥
तिरिउरलदुगपणिदिय धुवहु डछिवदुबायरुवघाया
·
तसपत्ते अअपज्जा, दुहगाणा देय अजसाणि
1
विजवगतिरितिगच उ-जाइपण गथावरायवदुगूणा मणए दुसयं मिच्छे, पंच विणा सत्तणवईओ ||२८||
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________________
उदयस्वामित्वम ]
द्वितीय परिशिष्टम्
। १७
मिच्छा पज्जूणा पण णवई साणे तिरिव्य मीसतिगे। णवरि णियाऽस्थि तहुच्चं, गज्जोणीअमवि देसे ॥२९॥ सत्त पमत्ताईसु, ओघव्य अपज्जतिरिपणिदिव्य । असमत्तनरे णवरं, मणयतिगं तिरितिगट्ठाणे ॥३०॥ देवेसु उदयस ई, थीणद्धितिगणपुमा विणा घाई । सायेयरदेवाऊ. उच्चं णामस्स तेत्तीसा ॥३१॥ सुरविउवदुगपणिदिय-ऽणादेयदुहगसुहागिई अजसं । परघूमासुवघाया, सुखगइतससुहगचउगधुवणामा । ३२॥(गीति:) सम्मत्तमीसमोहा, वज्जेउं अट्ठसत्तरी मिच्छे । मिच्छत्तमोहबजा, सासाणे सत्तसयरीओ ॥३३|| विण अणसुराणुपुव्वी, मिस्से मिस्सोदयेण य तिसयरी । मीसूणा चउसयरी, सम्मे सम्माणुपुविजुआ ॥३४॥ णव सिद्धतमए, भवणतिगे एवमेव कम्ममए । देवाणपुञ्चिवज्जा, विण्णेया तिसयी सम्मे ॥३५।। तहाईसु सुरेसु, गेविज्जतेसु इथिवेउणा । पणऽणुत्तरेसु तुरिअ, च गुणं तहि तिसयरी विण थिं ॥३६॥ एगिदिये असीई, घाई थीपुरिससम्ममीमणा । मायेयतिरियाऊ, णी णामस्स तेत्तीसा ॥३७॥ तिग्दुिगएगिदियुरल-धुवथावरचउगवायतिगाणि । दुहगाणादेय अजस-जसहुडगपंचपत्तेआ ॥३८॥
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१५ ]
द्वितीयं परिशिष्टम् ! उदयस्वामित्वम्
||४०||
मिच्छे असीइपयडी, सासाणम्मि गुणसत्तरी मोतु ं । थीणद्धिसुहमतिगमिच्छआयत्र दुगपरघायऊमासा ॥३६॥ । (गीतिः) विगलेसु इगिंदियथावर दुगसाहारणायवूणा ता 1 ससजाइउरलुवंग कु-खगइछवट्ठतस दुसरजुआ मिच्छे बासीई इग-सयरी साणे अथीण गिद्धितिगं । मिच्छ कुखगइपराघू-सासुज्जोअसरदुग अपज्ज विणा ॥ ४१ ॥ ( गीतिः) अस्थि चउजाइआयव-साहारणथावरदुगूणा । (उपगीतिः) चउदस्यं पंचक्खे. पण विण मिच्छे णवजुअसयं ॥ ४२ ॥ सासाणे छसयं विण, मिच्छ पज्जणिश्याणुपुब्बीहिं । ओघव्व जाणिपव्वा, मिस्साईसु गुणठाणेसु ॥४३॥ एगिदियन्त्र पुहवी - दगहरिएस परमत्थि पृहवीए । साहारणं विण वणे, विणायचं दोणि विविण दगे ||४४ || साहाराय व दुगजस वज्जो एगिदियोहभंगो उ ते अणि कायेसु ओहे मिच्छे य णायच्चो एगिदिय साहारण थावरसुहमायवं विणाऽत्थि तसे । सत्तरससयं ओहे, मिच्छे पंच विण बारसयं सासाणम्मि णवसयं, मिच्छापज्जणिरयाणपुव्विविणा । ओघव जाणियव्वा, मिस्साईसु गुणठाणेसु
।। ४५ ।।
•
118511
116811
मणत्रयणेसु आयव था व रजाइ अणुपुच्चिचउगूणा मिच्छम्मि विणा पणगं, मिच्छ्रणा सासणे तिसयं ॥ ४८ ॥ |
1
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उदयस्वामित्वम् ]
द्वितीयं परिशिष्टम्
[ १६
ओघव्व जाव सगुणं, परमणुपुवि विणा सयं सम्मे । वहावये कुज्जा, ओहे मिच्छे य विगलजुआ ॥ ४९ ॥ ओघव्व कायजोगे, पढमा तेरस गुणा अणाणदुगे । अजा दो तिणि वणव, तिणाणओहीसु अजयाई || ५०|| सत्त खलु पमत्ताई, चउत्थणाणम्मि केवल दुगम्मि । दो चरमगुणा समइत्र- छेएसु चउपमत्ताई ॥ ५१ ॥ सट्टाणं खलु देसे, सुहमे सासाणमीसमिच्छेसु । चत्तारि अहक्खाये, चरमा ऽज्जा य चउरो अजए । ५२ ।। बार अचक्खुद रिसणे, पढमा भवियम्मि सव्वगुणठाणा | पढममभविये चउरो, अजयाई वेअगे गेया ॥ ५३ ॥ | ओराले विउबग आहारऽणुपुव्विदुगअपज्जूणा नवजुत्तसयं मिच्छे, छसयं सम्माइ तगहीणो ॥ ५४ ॥ मिच्छचउजाइआ यव-साहारणथावर दुगुणा माणे सगणवई चउ णवई मी से समसणहीणा ॥ ५५ | | ( उद्गीतिः ) मीमं विणा ससम्मा, सम्मे ओघव्व सेसगुणणवगे । वरि पमत्ते आहारदुगाभावाउ गुणसयरी ॥५६॥ थीणद्वितिवि उबग सरायवाहारखगड आणुदुगं परघूमासा मीसं विणऽगुणवई उरलमीसे सम्मजिणणा मिच्छे, मिच्छापज्जत्तसुहुमसाहारं विण सासणे दुणवई, सम्मजुआ सम्मगे गुणासीई || ५८|| (गीतिः)
1
1
1
119011
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द्वितीयं परिशिष्टम् [ उदयस्वामित्वम्
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चउअणजाइणप्रमथी थावरऽणादे यदुहगअजसूणा पर घूमासखगडसर दुगवज्जोहो सजोगिम्मि विrवे णिरया उगगड़-हुडण पुमणी अकुसर खगइजुओ / देवाणपुब्विविजुओ, देवोहो पर्याछासीई 118011 मीमदुगुणा मिच्छे, चुलसोई सासणम्मि मिच्छूणा | ( गीतिः ) मीसे सम्मेsसीई, अणं विण कमेण मीससम्म जुआ ।। ६२ ।। तम्मिस्से बिउवोहो, परघूसास सरखगइदुगमीसा | विण गुणसीई मिच्छे, सम्मृणा अट्ठसयरीओ | ६२ ॥ सासाणम्मि दुसरी, णिरया उग आपण गमिच्छूणा (गीतिः ) सम्मे थी अणवज्जा, णिरयाउग आइपण गसम्म जुआ ||६३ || थीद्धितिगउरलदुग थी आगिइपणगसंघयण छवकं अपमत्था सरखगई, वज्जि छट्टगुणठाणोहो | ६४ ॥ आहारकायजोगे, बासट्ठी तस्स मीसजोगम्मि । परघाऊसासखगह सरहीणा अडवण्णाओ
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।। ६५।।
२० ]
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श्रीणद्धिति मीसं विउरलाहार दुगछसंघयणा छागिइखगइसरायव- दुगपर घूमासउवघाया साहारणपत्तेआ, विण गुणणवई उ कम्मणे मिच्छे | सम्म जिणणा मत्ता सीई साणे इगासीई ||६७|| मिच्छणिरयतिगसुहम अ-पज्जूणा सम्मणिरयतिगजुत्ता । अणजाइ वउगथावर थी विण पंचसयरी सम्मे ॥६८॥
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उदयस्वामित्वम् ] द्वितीयं परिशिष्टम [२१
ओहो उरलदुगवइर-आगिइखगइसरणामपत्तेआ । परघसासुवघाया, विण पणवीसा सजोगिम्मि ।।६९॥ वेअजुगलणारयतिग-थावरजाइचउगायवजिरगुणा सत्तजुअसयं पुरिसे, मिच्छे सम्माइचउवज्जा ॥७॥ मिच्छत्तमोहवज्जा, दुसयं सासायणम्मि अणुपुयी । पढमकसाया य विणा, मीसजुआ छणवई मीसे ॥७१॥ मीणा णवणवई, सम्मम्मि तिआणुपुब्बिसम्मजुआ।
ओघव दुवेऊणा, देसाईसु गुणठाणेसु ॥७२।। थीअ पुमव्व णवरि विण, आहारदुगं कमोहछडे सु। (गीतिः) पंचसयं सगसयरी, विणाऽणु पुव्वी य छणवई सम्मे ।७३।। सोलसजुअसयपयडी, णपुमे थीपुरिससुरतिगाजणणा। मिच्छे दुवालससयं, सम्माहारदुगमीसूणा ॥७४।। छजुअसयं मिच्छायव-नारयअणुपुब्बिसुहमतिगवज्जा । (गीतिः) बीए मीसे चउअण-जाइदुअणपुचिथावरूणाऽथि ।।७।। मीससहिया छणवई, ससम्मणिरयाणपुब्विमीसूणा । सम्मम्मि सत्तणवई, पणदेसाईसु पुरिसव्व ॥७६।। कोहाईसु चउसु, ओघव दुदुइगचउगुणेसु कमा । (गीतिः) बार णव छ ति कसाया, विण ओघव्व दसमे गुणे लोहे ||७७।। मणजोगव्य विभंगे, दोणि व तिण्णि व गुणा णवरि मिच्छे । णिरयसुरऽणुपुग्विजुआ, सासाणे सुरऽणपुविजुआ ॥७८।।
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२२ ] द्वितीयं परिशिष्टम् [ उदयस्वामित्वम् परिहारे छ8 विण, थीआहारदुगपंचसंघयणा । छट्ठोहो अपमत्ते, सयरी थीणद्धितिगवज्जा ॥७९।। चक्खुम्मि तिजाइसुहम-थावरसाहारणायवजिरगुणा । चउदससयं दससयं, मिच्छे सम्माइचउवज्जं ॥८॥ सासायणम्मि वज्जिअ, मिच्छापज्जणिरयाणुपुव्वीओ। सत्तजुअसयं दससु, मिस्साइगुणेसु ओघव्व ॥८॥ ओपव्व कुलेसासु, सिद्धतेऽण्णह ण किण्हणीलासु। दो अणपुव्वी सम्मे, सुराणुपुव्वी ण काऊए ॥८२। एगारसयं आयव-तित्थविगलणिरयसुहमतिगहीणा । तेऊए सत्तसयं, मिच्छे सम्माइचउवज्जा ।३॥ मिच्छृणा सासाणे, छजुअसयं मीसमोहसंजुत्ता । मीसे अडणवई विण, अणिगिदियथावराणुपुब्बीहिं ॥८४॥(गीतिः) सम्मम्मि मीसहीणा, सम्मतिरियणरसुराणपुविजुआ । एगजुअसयं तीसु, देसाइगुणेसु ओघव ॥८५।। पम्हाए णारगतिग-थावरजाइचउगायवजिणूणा । णवजुअसयं पणसय, मिच्छे सम्माइचउवज्जं ॥८६॥ मिच्छृणा सासाणे, मीसाइगुणेसु पणसु तेउव्व । णवरि भवे सयमेगं, सम्मे तिरियाणुपुवी णो ॥८७॥ सुकाए तुरिअगुणं, जा पम्हव्वऽत्थि गवरि होइ णवा । तिरियाणपुविउदओ, ओघवेत्तो सजोगिं जा ॥८॥
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उदयस्वामित्वम् । द्वितीयं परिशिष्टम् । २३ सम्माईसु असम्म, ओघव्य ण वा पणंतसंघयणा । खइए देसे विण तिरि-गहआउज्जोअणी आणि ॥६|| ओघन्य उवसमे अड, अजयाई णवरि चउसु सम्मृणा । अजए ण तिअणपुव्वी, आहारदुगं वि य छठे ९० । सणिम्मि विण जिणायव-थावरसुहमचउजाइसाहारं । तेरससयं णवसयं, मिच्छे सम्माइचउवज्जं ॥१॥ सासाणे छसयं विण, मिच्छापज्जणिरयाणपुव्वीहिं । ओघव अस्थि दससु, मिस्साईसु गुणठाणेसु ॥९२।। अमणे जिणुच्चविउव ढगआहारदुगसम्ममीणा । अठुत्तग्सयमोहे, मिच्छे वि ण णरतिगं पणसयं वा ॥९३।। सासाणे णवई विण, थीणद्धिणरतिगमिच्छमोहाणि । परघाऊसासायव सरखगइदुगसुहमतिगाणि ॥९४॥ ओघव्य आणपुची, विण आहारे भवे अणाहारे ।(गीतिः) कम्मच णवरि ओघन्य अजोगिम्मिति उदयसामित्तं ॥६५।। उदयव्वुदीरणाए, सव्वह ओघव्य उण विसेसो वि । मुणिवीरसेहरथ', मह णदयुदीरणं वीरं ॥६६।। सिरिपेममूरिगुरुवर-रज्जे भूवा गहिंदुणह (२०१९) वासे । वीरां-ऽकमयजिणद्दे (२४८९), जावालपुरे समत्तमिमं ॥९७॥
इति श्राचार्यश्रीविजयवीरशेखरसूरिरचितम्
उदयस्वामित्वं
समाप्तग
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॥ अथ तृतीयं परिशिष्टम् ॥
॥ श्री शङ्खेश्वरपार्श्वनाथाय नमः ॥
श्री आत्म-कमल-वीर-दान- प्रम रामचन्द्र ही रसूरीश्वर सद्गुरुभ्यो नमः
.
श्राचार्य श्री विजयवीर शेखरसूरिरचितं सत्तास्वामित्वम्
इयनिखिलकम्मसत्तं. सिरिवीरं वीरसेहरं सरिउं । कहिमु गुरुणि ओगा जह· सुत्तं पयडीसु सत्तसामित्तं || १ | | ( गीतिः ) सत्ता कम्माण ठिई, बंधाईलद्धअत्तलाभाणं 1 संते अडयालसयं, जा उवसमु विजिणु बिअतइए ||२|| अप्पुव्वाइचउक्के, अणतिरिनिरयाउ विणु बियालसयं । सम्माहचउसु सत्तग खयम्मि इगचत्तसय महवा खत्रगं तु पप्प चउसु वि, पणयालं निरयतिरिसुराउविणा । सत्तग विण अडतीसं जा अनियट्टीपढमभागो || ४ || थावरतिरिनिरिया यव- दुगथीणति गेगविगलसाहारं
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॥६॥
सोलखय दुवीससयं, बीअसि बिअतिकसायतो ||५|| तड़ आइसु चउदसतेर बारछपणचउतिहिय सयकमसो नपुइस्थिहास छग सतुरिअको हमयमायखओ सुहृमि दुसय लोहंतो, खोण दु चरिमेगसय दुनिद्दखओ । नवनवइ चरमसमये, चउदंसणनाणविग्धंतो पणसीइ सजोगिअजोगिदुचरिमे देवखगइगंधदुगं | फासट्रुवन्नरसतणु- वधणसंघायपणनिमिर्ण
॥७॥
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सत्तास्वामित्वम् ] तृनीय परिशिष्टम् [२५ संघयणअथिरसंठाणछक्कअगुरुलहुचउअपज्जत्तं सायं व असायं वा, परित्तुवंगतिगसुसरनि ॥६॥ विलयरिख यो अचरिमे, तेरस मणुअतसतिगजसाइज्जं । सुभगजिणचपणिंदिय-सायासायेगयरछेओ ॥१०॥ नरअणपुव्वि विणा वा, बारस चरिमसमयम्मि जो खविउं । पत्तो सिद्धिं देविंदवंदिअ नमह तं वीरं ॥११॥ इय उद्धरिओ ओहो, देविंदाय रिअरइअकम्मथवा । अह भणिमु मग्गणासु', पयडीणं संतसामित्तं ॥१२।। णिरयेसु विण सुराउं, सगचत्तसयं तहाऽजतुरिएसु । बीए बायालसयं, आहारचउक्कतित्थूणा ॥१३॥ आहारच उक्कजुआ, हवेज मोसे छचत्तसयमेवं । पढमचउत्थगुणेसु वि, तीसु तुरिआइणिरयेसु ॥१४॥ जिणणरदेवाऊ विण, पण चत्तअहियसयं तमतमाए । एवं गुणेसु च उसु वि, परमाहारचउगं विणा बीए ॥१५।। तिरिये पणिदितिरिये, जिणं विणा सत्तचत्तसयमेवं । पंचसु वि गुणेसु परं, बीए आहारचउगूणा ॥१६॥ असमत्तपणिदितिरियाणरेसु विण तित्थणारगसुराऊ । पणयालीसजुअसयं, देवेसु विणा-ऽस्थि णिरयाऊ ॥१७॥ सगयालीसहियसयं, एवं तुरिए गुणम्मि तित्थूणा । छायालभहियसयं, आइमदुइअतइ अगुणेसु ॥१८॥
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२६ ]
तृतीयं परिशिष्टम [सतास्वामित्वम् णिरयाउतित्थरहियं, छचत्त अहियसयमस्थि भवणतिगे। (गीतिः) तह चउगुणेसु वि णवरि, सयमाहारचउगस्स बीअगुणे ॥१६॥ णिरयतिरियाउगूणा, गेविज तेसु आणयाईसु । छायालसयं एवं, तुरिए पढमाइतिगुणेसु ॥२०॥ पणयालीसजु असयं, तित्थूणाऽणुत्तरेसु तुरिअगुणे । आहारदुगे छ8, तिरिणिरयाऊ विणा छचत्तसयं ॥२१॥ ओघव्व गरपणिदिय तसवियेसु सयला गुणा तेर । दुमणवयणकायउरल-सुक्काहारेसु पढमा-ऽस्थि ॥२२॥ दुमणवयणयण अणयण-सण्णीसु हवेज वारसगुणाऽजा । दस लोहे चउ विउवा-ऽजएसु चउ छ व कुलेसासु ॥२३ । वारसयं तेरसयं, जा पुमथीसु नवमे कमाऽजाई । पणचउतिजुअसयं जा, कोहाइतिगे कमा णवमे ॥२४॥ णाणतिगे ओहिम्मि य, नव अजयाई उ वेअगे चउरो । केवलदुगे दुवेऽता-ऽजा दो तिण्णि व अणाणतिगे ॥२५॥ होह सठाणं देसे, सुहमे सासाणमीसमिच्छेसु । अहखाए चरमचऊ, सत्तऽज्जा तेउपउमासु ॥२६॥ णवरं तित्थयरं विण, . सगचत्तालीससंजुयसयं तु । गुणठाणम्मि य पढमे, तीसु पसत्थासु लेसासु ॥२७॥ एगिदिविगलभूदग-वणेसु विण तित्थणारगसुराऊ । पणयालसयं बीए, णराउआहारचउगूणा ॥२८ ।
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सत्तास्वामित्वम् ] तृतीयं परिशिष्टम् [२० चउआलीससयं जिण-तिआउहीणाऽस्थि तेउवाऊसु । णिरयामराउगूणा, छायालसयं उरलमीसे ॥२६॥ एमेव चउत्थे विण, तित्थं पढमतइएसु सासाणे । तित्थाहारचउक्क, विणा सजोगिम्मि ओघव्व ॥३०॥ छायालसयं विक्किय-मीसे विण तिरिणराउगं एवं । पढमचउथे बीए, चउचत्तमयं अतित्थणिरयाऊ ॥३१॥ (गीतिः) कम्मे सव्या एवं, पढमचउत्थेसु तित्यणिरयाऊ । विण छायालहियसयं. बीए ओघव्य तेरसमे ॥३२॥ णपुमे अडतीससयं, जा ओघव्व गुणठाणणवगम्मि । ताउ खवगसेढीए, गुणठाणे अट्ठमे णवमे ॥३३॥ णेया सगतीससयं, विण तित्थयरं तओऽथि णवमगुणे । ओघविगवीससयं, तेरसयं च विण तित्थयरं ॥३४॥ ओघव्य पमत्ताई, सत्त उ मणपज्जवम्मि अस्थि परं । अडयालसयट्ठाणे,तिरिणिरयाऊ विणा छचत्तसयं ॥३॥(गीतिः) ओहचउपमत्ताई, समहअछेएसु तुरिअणाणव्व । दो परिहारे अभवे, तित्थाहारचउसम्ममीसूणा ॥३६॥ खइए इगचत्तसयं, विण सणसत्तगं चउसु एवं । तुरियाईसु केइ उ, देसाइतिगे विणाउदुगं ॥३७॥ गुणचत्तसयं अट्ठम-गुणाइचउगेऽट्ठम गुणे णवमे । अडतीससया इत्तो, जाव अजोगिगुणमोघव ॥३८॥
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२८ ) तृतीयं परिशिष्टम् [ सत्तास्वामित्वम अजयाईनु अदुसु, गुणेसु खलु उवसमम्मि ओघव । णवरि गवमदसमेसु, बावीससयाइवज्जाओ ॥३९।। अमणे सगचत्तसयं, विणा जिणं एवमेव मिच्छगुणे । साणे चत्तहियसयं, तिाउआहारचउगूणा ॥४॥ कम्मव्व अणाहारे, ओघव्व चउदसमेऽत्थि वीरपहुं । मुणिवीरसेहरथुअ', णमह हयासेसकम्मरयसत्तं ॥४१॥(गीतिः) सिरिपेमसूरिगुरुवर रज्जे भूवा गहिंदुनह (२०१९) वासे । वीरां-ऽकमयजिणद्दे (२४८९), जावालपुरे समत्तमिणं ॥४२॥
श्राचार्यश्रीविजयवीरशेखरसूरिरचितं
सत्तास्वामित्वं
समाप्तम्
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________________ राजस. बंधविहाणं नवाचान कमसाहित्य प्रथमखण्डे भा. 1 मूलपडिबंधो " " " 2 उत्तर" " (1) राजाधिराज सं रु० 40 " 25 m " " 0 | द्वितीय ,, ,1 " " " 2 मूल , ठिईबंधो उत्तर " " तृतीय " " मूल , रस, उत्तर " मुल, पएस, ar Mor Morrm>> Hororanar AGO SEWWWWWWWW. Kokww.00 सत्ता प्रथम उत्तर " ," (1) " " "" पसत्थी (पूर्वाध:) , (उत्तरार्धः) मूलपयडिसत्ता (सम्पूर्णा) " " " (पूर्वाध:) ___" " " (उत्तराधः) " " (आद्यतृतीयांशः) उत्तर, , (पूर्वार्धः) 25