Book Title: Saral Samudrik Shastra Author(s): Arunkumar Bansal Publisher: Akhil Bhartiya Jyotish Samstha Sangh View full book textPage 9
________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र सामुद्रिक शास्त्र में ग्रहों का कारकत्व हाथ का अध्ययन करते समय ग्रहों के स्थान को भली प्रकार निरीक्षण कर अनेक बातों का भविष्य बताया जाता है। यदि कोई ग्रह नीच है या किसी ग्रह के क्षेत्र में दूषित रेखाएं अथवा अशुभ चिन्ह हो तो उस ग्रह से सम्बन्धित विषय को बताना चाहिए। सूर्य आत्मा, स्वभाव, स्वास्थ्य राज्य रोग, सिरदर्द, अपच, टी.बी, बुखार, दस्त, पेचिस, नेत्ररोग, पिता, अपमान व कलह आदि । चन्द्र- बात, कफ, राजकृपा, शारीरिकबल मनोवृत्ति, सम्पत्ति, पीलिया, जुकाम, दमा, बुखार, खाँसी, मूत्ररोग, गुप्तरोग, भ्रमण, पेट व मस्तिष्क आदि । . मंगल - खून, पित्त, रक्तवाहिनी, माँस, संक्रामक रोग (टिटनेस), भाई-बहिन, सम्पत्ति, पदाधिकार, शासन, राजयोग, आदि । बुध नपुंसकता, त्रिदोष, व्यापार, गूढ़ विद्याएँ, चिकित्सा कला, वाणी, गुप्तरोग, कागजी कार्रवाई, संग्रहणी, गूंगापन, सफेदकोढ़ आदि । गुरु चर्बी, कफ, पुत्र, पौत्र, धर्म, घर, सूजन वाले रोग । शुक्र- स्त्री कामशक्ति गाना, कविता, नेत्र, गहने, माता तथा सुखभोग आदि । शनि नपुंसकता, वायुविकार, विदेशी भाषा, माता-पिता, आयु बल, उदारता, मुसीबत, ऐश्वर्य, मोक्ष कीर्ति, नौकरी, काली वस्तुएँ, व्यापार, तथा बेहोशी वाली व हृदय की बीमारियाँ, आपरेशन आदि । राहु हृदय रोग, भ्रमण, मुसीबत, दुर्घटना, बाएँ अंग की चोट, हानि आदि । केतु - खाल के रोग, भूख, मृत्यु, हाथ-पाँव, ऐश्वर्य तथा मातृपक्ष आदि ।Page Navigation
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