Book Title: Saral Samudrik Shastra
Author(s): Arunkumar Bansal
Publisher: Akhil Bhartiya Jyotish Samstha Sangh

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Page 2
________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र 1. Introduction अध्याय-1 अंगविद्याप्रकाशोऽयं, गूढार्थव्याससंयुतः । हस्तसंजीवनग्रन्थः, भूयाद् दैवविदां मुदे ।। श्रीवर्धमानो जयतु सर्वज्ञानशिरोमणिः । पंचहस्तोत्तरो वीरः सिद्धार्थनृपनन्दनः ।। ज्ञानियों में शिरोमणि श्री वर्धमान सबसे उत्कृष्ट हैं, उनकी जय हो। वे सदा संसार के भले के लिए तत्पर रहते हैं, वे ही दीर्घ शरीर के स्वामी हैं तथा सिद्धार्थ राजा के पुत्र हैं। निमित्त शास्त्रों के आठ भेद अङ्गविद्या निमित्तानामष्टानामपि गीयते। मुख्या शुभाशुभज्ञाने नारदादिनिवेदिता।। मनुष्य के शुभाशुभ फल के ज्ञान हेतु नारद, पराशर, गर्ग आदि महर्षियों ने सामुद्रिकशास्त्र का निर्माण किया और आठ विद्याओं के बारे में विस्तार से विवेचन किया। जिनमें हस्तरेखा मुख्य है। आठ विद्याएं इस प्रकार है। अंग, स्वप्न, स्वर, भूमि, व्यंजन, लक्षण, उत्पात, तथा अन्तरिक्ष ।

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