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foot [ दैनिक + ङीप् ] प्रतिदिन की मज़दूरी, दिनभर की उजरत, घ्याड़ी ।
वैर्घम्,
र्यम् [ दीर्घ + अण्, प्यञ, वा] लम्बाई, लम्बापन । देव ( वि० ) ( स्त्री-बी) [ देव + अण् ] देवों से सम्बन्ध रखने वाला, दिव्य, स्वर्गीय संस्कृतं नाम देवी बागन्वाख्याता महर्षिभिः --- काव्या० ११३३, रघु० ११६० याज्ञ० २।२३५, भग० ४।२५, ९।१३, १६३, मनु० ३।७५ 2. राजकीय, वः ( अर्थात् विवाहः ) आठ प्रकार के विवाहों में से एक, (इसमें कन्या यज्ञ कराने वाले ऋत्विज् को ही दे दी जाती है) - यज्ञस्य ऋत्विजे देव :- पाश० १५९, ( विवाह के आठ प्रकारों के लिए दे० 'उद्वाह' या मनु० ३।२१), बम् 1. भाग्य, नियति, भवितव्यता, किस्मत- दैवमविद्वांसः प्रमाणयति -- मुद्रा० ३, विना पुरुषकारेण देवमत्र न सिध्यति — 'भगवान् उन्हीं की सहायता करते हैं जो अपनी सहायता आप करते हैं, -- दैवं निहत्य कुरु पौरुषमात्मशक्त्या -पंच० १।३६१, देवात् 1. संयोग से, भाग्ययश, अकस्मात् 2. देव, देवता 3. धार्मिक संस्कार, देवों को आहुति । सम० -- अत्ययः देवी उत्पात, आकस्मिक अनर्थ, अधीन, आयत (वि०) भाग्य पर निर्भर, - दैवायत्तं कुले जन्म मदायत्तं तु पौरुषम्, - वेणी० ३।३३, -- अहोरात्रः देवताओं का एक दिन अर्थात् मनुष्यों का एक वर्ष,उपहत ( वि०) दुर्भाग्यग्रस्त, अभागा - मुद्रा० ६८, - कर्मन् ( नपुं०) देवताओं को आहुति देना, कोविद, चिन्तकः, ज्ञः ज्योतिषी, भविष्यवक्ता, याज्ञ० ११३१३, काम० ९१२५, गतिः (स्त्री० ) भाग्य का फेर - मुक्ताजालं चिरपरिचितं त्याजितो दैवगत्या - मेघ० ९६ – तन्त्र ( वि० ) भाग्य पर आश्रित, दीपः आँख, दुविपाकः भाग्य की निष्ठुरता भाग्य का बुरा फेर या प्रतिकूलता - उत्तर० ११४०, - दोषः भाग्य की कठोरता, पर ( वि० ) 1. भाग्य पर भरोसा करने वाला, भाग्यवादी 2. भाग्य में लिखा हुआ, प्रारब्ध - प्रश्नः भविष्यकथन, ज्योतिष, युगम् देवों का एक युग' (१२००० देववर्षों का एक युग माना जाता है, इस विषय में दे० मनु० ११७१ पर कुल्लू ० ), योग: संयोग, इत्तिफ़ाक भाग्य, मौका --- दैवयोगेन दैवयोगात् भाग्य से, अकस्मात् - लेखक: भविष्यवक्ता, ज्योतिषी, - वशः, शम् नियंति का बल, भाग्य की अधीनता, - वाणी 1. आकाशवाणी 2. संस्कृत भाषा - तु० काव्या० १।३३ ऊपर उद्धृत, - होन ( वि०) भाग्यहीन, क़िस्मत का मारा, अभागा ।
देवकः [ देव -+-कन् ] देवता । दैवत ( वि०) ( स्त्री० -ती) [ देवता + अण् ] दिव्य, तम् देव, देवता, दिव्यता --मृदंगां दैवतं विप्रं घृतं मधु
चतुष्पदं, प्रदक्षिणानि कुर्वीत मनु० ४।३९, १/५३, अम३ 2. देवों का समूह, देवताओं का पूरा समूह 3. देवमूर्ति (यह शब्द पुं० भी बतलाया जाता है परन्तु विरल प्रयोग है, मम्मट इस बात को शब्द का 'अप्रयुक्तत्व' दोष बतलाते हैं- दे० 'अप्रयुक्त ' ) । देवलस् ( अव्य० ) [ देव + तस् ] संयोगवश, किस्मत से, भाग्य से ।
देव
(वि० ) ] देवता + ष्यव्य ]
किसी देवता को संबोघित, या मान्य - याज्ञ० १९९, मनु० २।१८९, ४। १२४ । वैबलः, --लकः [देव + ला+क, देवल + अण् दैवल + कन्] प्रेतपूजक, किसी दुष्ट आत्मा ( भूत प्रेतादिक) का
उपासक ।
देवारिपः [ देवारीन् असुरान् पाति आश्रयदानेन दैवारिपः
समुद्रः, तत्र भवः देवारिप अण् ] शंख । देवासुरम् [ देवासुरस्य वैरम् - अण् ] देवताओं और राक्षसों
के मध्य रहने वाली स्वाभाविक शत्रुता । दैविक (वि० ) ( स्त्री० -- की) [ देव + ठक् ] देवताओं से सम्बन्ध रखने वाला, दिव्य, मनु० १/६५, ८/१०९, -कम् अवश्यंभावी घटना ।
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दैविन्
दैव्यं
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(पुं० ) [ देव + इनि ] ज्योतिषी ।
(वि० ) ( स्त्री० - व्या, -व्यी) [देव + यज्ञ ] दिव्य, व्यम् किस्मत, भाग्य 2. दिव्य शक्ति ।
दैशिक
(वि० ) ( स्त्री० की ) [ देश + ठञ, ] 1. स्थानीय, प्रांतीय 2. राष्ट्रीय, समस्त देश से सम्बन्ध रखने वाला 3. स्थान सम्बन्धी 4. किसी स्थान से परिचित 5. अध्यापन करने वाला संकेतक, निदेशक, दिखलाने वाला, कः 1. अध्यापक, गुरु 2. पथ दर्शक । देष्टिक ( वि० ) ( स्त्री०- की) [दिष्ट + ठक् ] भाग्य में लिखा हुआ, प्रारब्ध, कः भाग्यवादी ।
दैहिक
(वि० ) ( स्त्री० - की ) [ देह + ठक् ] शारीरिक, देहसम्बन्धी ।
देह्य
(वि० ) [ देहे भवः - ष्यञ ] शारीरिक, ह्यः आत्मा ( शरीरगत ) ।
दो
( दिवा० पर० - द्यति, दित-प्रेर० दायरति इच्छा० दित्सति) 1. काटना, बांटना 2. फसल काटना, अनाज काटना, अव-काट डालना -- यदन्यस्मिन्यज्ञे स्रुच्य वद्यतिशत० ।
दोग्ध (पुं०) दुह् + तृच् ] 1. ग्वाल, दूध दोहने वाला, दूधिया - मेरी स्थिते दोग्धरि दोहदक्षे- कु० ११२ 2. बछड़ा 3. चारण या भाट ( वह भाड़े का कवि जो पुरस्कार प्राप्त करने के लिए कविता की रचना करता
4. जो स्वार्थवश कोई कार्य करता है ( अपने आप को लाभ पहुंचाने के लिए) । दोग्ध्री [ दोग्वृ + ङीप् ] 1. दुधारु गाय 2. दूध पिलाने वाली
गाय ।
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