________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 751 ) भोजन:-शि० 14150, संत्रासमबिभः शक्रः-भट्टि , जब उसे सोता हआ पाया तो उसने विष्ण की 17 / 108, श०७।२१ 8. समर्पण करना, प्रदान करना, छातीपर ठोकर मारी जिससे उसकी आँख खुल देना, पैदा करना-यौवने सदलंकाराः शोभा बिभ्रति गई। को धदिखाने के बजाय उस समय विष्णु ने सुभ्रवः-..- सुभा० 9. रखना, थामना, धारण करना भृदुता के साथ भृगु से पूछा कि कहीं उनके (स्मृति में) 10. भाड़े पर लेना--मनु० 11162, पैर में चोट तो नहीं लग गई, और यह कहने के याज्ञ० 31235 11. लाना, या ले जाना, उद्-, धारण साथ ही भंग का पैर शनैः२ मलने लगा। तब करना, सहारा देना, संभालना-भगोलमबिभ्रते-गीत० भग ने कहा कि यह विष्ण ही सबसे अधिक बलशाली 1, सम्-, 1. एकत्र करना, जोड़ना, इकट्ठा रखना देवता है क्योंकि इसने अपने सबसे शक्तिशाली शस्त्र ---त्यागाय संभृतार्थानाम्-रघु० 117, 515, 8.3, कृपालता और उदारता से अपना स्थान सबसे प्रमुख भट्टि०६।८० 2. उत्पन्न करना, पैदा करना प्रकाशित बना लिया है, इसलिए विष्ण ही सब की पूजा का करना, सम्पन्न करना-सुरतश्रमसंभृतो मुखे स्वेदलव: सर्वोत्तम अधिकारी समझा गया) 2. जमदग्नि ऋषि ---रघु०८1५१, कि० 9 / 49, मेघ० 115 3. संधारण का नाम 3. शुक्र का विशेषण 4. शुक्र ग्रह 5. उत्प्रकरना, पालन-पोषण करना, दूध पिलाना 4. तैयार पात, ढलवां चट्टान भृगुपतनकारणमपृच्छम् करना, सज्जित करना- विक्रम० 5, रघु० 19154 .... दश 6. समतल भूमि, पहाड़ की समतल चोटी 5. देना, अर्पित करना, प्रस्तुत करना। 7. कृष्ण का नाम / सम० ---उद्वहः परशु राम का भृकुंशः (सः) [भ्रुवा कुंश: (कुंश् (स)+अच) भाव- विशेषण,.. जः, तनयः शुक्र का विशेषण,-नन्दनः प्रकोश इंगितज्ञापनं यस्य, नि० संप्रसारण ] स्त्री का 1. परशुराम का विशेषण वीरो न यस्य भगवान् वेष धारण करने वाला नट / भृगुनन्दनोऽपि---उत्तर० 5 / 34 2. शुक्र,-पतिः भृकुटि, टी [ भ्रवः कुटि: (कुट+इन्) कौटिल्य, नि० परशुराम का विशेषण- भगपतियशोवर्म यत् संप्र०] भौह / दे० भ्र (भ्र) कुटि / क्रौञ्चरन्ध्रम मेघ० 57, इसी प्रकार भृगूणां पतिः, भृग् (अन्य ) अग्नि को चटपट आवाज को अभिव्यक्ति -वंशः परशुराम से प्रवर्तित वंश,- वारः बासरः करने वाला अनुकरणात्मक (शब्द)। शुक्रवार, जुमा,-शार्दूलः,---श्रेष्ठः- सत्तमः पराराम भगः [ भ्रस्ज-- कु, संप्र, कुत्वम् ] एक ऋषि जो भृगुवंश का विशेषण, सुतः,—सूनः 1. परशराम का विशेषण का पूर्वपुरुष माना जाता है, इस वंश का वर्णन मनु | 2. शुक्र का विशेषण।। 1135 में मिलता है; मन से उत्पन्न दश मूलपुरुषों में भृतः [भू+गन् कित्, नुट च] भौंरा भामि० 115, रघु० से एक (एक बार जब ऋषियों का इस बात पर एक 8153 2. एक प्रकार की भिर, ततैया 3. एक प्रकार मत न हो सका कि ब्रह्मा, विष्णु और शिव में से का पक्षी, भीम राज 4. लम्पट, कामुक, व्यभिचारी, कौन सा देवता ब्राह्मणों की पूजा का श्रेष्ठ अधिकारी तु० भ्रमर 5. सोने का कलश,--गम अभ्रक,-गी है तो भग को इन तीनों देवों के चरित्र का परीक्षण भौंरो-भंगी पुष्पं पुरुषं स्त्री वांछति नवं नवम् / करने के लिए भेजा गया। वह पहले ब्रह्मा के निवास सम०-अभीष्टः आम का पेड़,--आनन्दा यूथिका बेल, स्थान पर गया और जानबूझ कर प्रणाम नहीं किया . आवली भौरों की पांत, मक्खियों का झुण्ड,--जम् इस बात पर ब्रह्मा ने उसे बहुत फटकारा परन्तु क्षमा 1. अगर 2. अभ्रक (जा) भांग का पौधा,—पणिका मांगने पर वह शांत हो गए। उसके पश्चात् वह छोटी इलायची,--राज (0) 1. एक प्रकार की बड़ी कैलाश पर्वत पर शिव जी के पास गया तथा पहले मक्खी 2. भंगरा नाम का पौधा,-रिटिः,-रीटिः की भाँति प्रणामादि के शिष्टाचार का पालन नहीं शिव का एक गण (जो बहुत कुरूप कहा जाता है), किया। प्रतिहिंसापरायण शिव क्रुद्ध होकर भुग का -- रोलः एक प्रकार की भिर, बल्लभः कदंब वृक्ष उस समय भस्म कर देता यदि मृदु शब्दों से भृगु ने का एक भेद / उन्हें शांत न किया होता। (एक दूसरे वृत्तान्त के | भङ्गारः,-रम् [भङ्ग+ऋ+अण] 1. सोने का कलश या अनुमार भृगु का ब्रह्मा ने आदर सत्कार नहीं किया, घट 2. विशेष आकार का कलश, झारी-शिशिर इसलिए भुग ने शाप दे दिया कि संसार में उसकी सुरभि-सलिल पूर्णोऽयं भङ्गारः - वेणी० 6 3. राज्याआराधना और पूजा नहीं होगी; शिव को भी 'लिंग' भिषेक के अवसर पर प्रयक्त किया जाने वाला घड़ा, बन जाने का अभिशाप दिया क्योंकि जव भुग शिव --गम् 1. स्वर्ण 2. लौंग / के पास गया तो उस समय वह उससे मिल न सका | भृङगारिका, भङ्गारी [भृङ्गार+कन् + टाप, इत्वम् झींगुर। क्योंकि उस समय शिव अपनी पत्नी पार्वती के साथ | भङ्गिन (पु.) भङ्ग इनि] 1. वट वृक्ष 2. शिव के एक विराजमान थे; अन्त में वह विष्णु के पास गया और गण का नाम / For Private and Personal Use Only