Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
सम्यग्दर्शन : भाग-4]
[79
सम्यक्त्व के लिये आनन्ददायी बात
___ आचार्यदेव सम्यग्दर्शन का प्रयत्न समझते हैं और शुद्ध के विकल्प से भी आगे ले जाते हैं। ___ श्री समयसार की 144 वीं गाथा, अर्थात् सम्यग्दर्शन का मन्त्र... मुमुक्षु को अत्यन्त प्रिय ऐसी यह गाथा आत्मा का अनुभव करने की विधि बतलाती है। इसके प्रवचनों का दोहन यहाँ प्रश्नोत्तर शैली से प्रस्तुत किया है, बारम्बार इसके भावों का गहरा मनन, मुमुक्षु जीव को चैतन्य गुफा में ले जाएगा।
प्रश्न-सम्यग्दर्शन करने के लिये मुमुक्षु को पहले क्या करना?
उत्तर-मैं ज्ञानस्वभाव हूँ-ऐसा निश्चय करना। वह निर्णय किसके अवलम्बन से होता है? श्रुतज्ञान के अवलम्बन से वह निर्णय होता है। वह निर्णय करनेवाले का जोर कहाँ है ?
यह निर्णय करनेवाला यद्यपि अभी सविकल्पदशा में है परन्तु उसका विकल्प पर जोर नहीं है; ज्ञानस्वभाव की ओर ही जोर है।
आत्मा की प्रगट प्रसिद्धि कब होती है ?
आत्मा के निश्चय के बल से निर्विकल्प होकर साक्षात् अनुभव करता है तब।
ऐसे अनुभव के लिए मतिज्ञान ने क्या किया? वह पर से परान्मुख होकर आत्मसन्मुख हुआ।
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.