Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-4
का शुद्धपरिणमन कहा; रागादि अशुद्धता को द्रव्य का शुद्ध परिणमन नहीं कहते। इस प्रकार ज्ञान परिणमन और राग परिणमन की सर्वथा भिन्नता है। राग का एक भी अंश ज्ञान के परिणमन में नहीं;
और ज्ञान का एक भी अंश राग में नहीं; राग, शुद्ध आत्मा का परिणमन ही नहीं तो फिर वह आत्मा की शुद्धता का साधन कैसे होगा? होगा ही नहीं। ___भाई ! तेरे मोक्ष का साधन तुझमें है, उसे तू पहचान तो सही! तेरी शुद्धता के भान बिना तू किसे मोक्ष का साधन बनायेगा? मोक्ष का साधन अपने में है, उसे जाने बिना जीव ने अज्ञानभाव से शुभराग को मोक्ष का साधन मानकर अनादि काल से उस बन्धभाव का ही सेवन किया है, अर्थात् मिथ्यात्व का ही सेवन किया है। राग से पार निर्विकल्प अनुभूति, मोक्षसाधन है। वह निर्विकल्प अनुभूति वचन में नहीं आती। उस वीतरागी परिणति की क्या बात! अन्तर्मुख हुआ स्वसंवेदन ज्ञान, आत्मा को शुद्धतारूप परिणमाता है, वही मोक्ष का कारण है। अकेला बाहर का जानपना भी मोक्ष का कारण नहीं, वहाँ राग की तो क्या बात ! ज्ञान कैसा,कि वीतराग-परिणतिरूप परिणमित स्वसंवेदन ज्ञान, वह मोक्ष का कारण है।
शुद्ध परिणमन, वह मोक्षमार्ग है।
शुद्धपरिणमन उसे ही होता है कि जिसे शुद्धस्वरूप का अनुभव अवश्य हो। शुद्धस्वरूप के अनुभव बिना किंचित् भी शुद्धपरिणमन नहीं होता और शुद्धपरिणमन के बिना चौथा गुणस्थान भी नहीं होता। चौथे गुणस्थान से ही शुद्धस्वरूप का अनुभव है, शुद्धपरिणमन है, मोक्षमार्ग है; उसे अन्तरात्मा कहा है। चौथे गुणस्थान में
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