Book Title: Samyag Darshan Part 02
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-2
मुमुक्षु को सेवनयोग्य दो साधन
आत्मस्वभाव की निर्मलता होने के लिये मुमुक्षु जीव को दो साधन अवश्य सेवन योग्य है - सत्श्रुत और सत् समागम। प्रत्यक्ष सत् पुरुषों का समागम क्वचित् जीव को प्राप्त होता है, परन्तु यदि जीव, सत्दृष्टिवान हो तो सत्श्रुत के बहुत काल के सेवन से होनेवाला लाभ प्रत्यक्ष सत्पुरुष के समागम से बहुत अल्प काल में प्राप्त कर सकता है। क्योंकि प्रत्यक्ष गुणातिशयवान निर्मल चेतन के प्रभाववाले वचन और वृत्ति क्रिया चेष्टितपना है। जीव को वैसा समागम योग प्राप्त हो, ऐसा विशेष प्रयत्न कर्तव्य है। वैसे योग के अभाव में सत्श्रुत का परिचय अवश्यरूप से करने योग्य है। जिसमें शान्तरस का मुख्यपना है, शान्तरस के हेतु से जिसका समस्त उपदेश है, सर्व रस शान्त रसगर्भित जिसमें वर्णन किये हैं - ऐसे शास्त्र का परिचय, वह सत्श्रुत का परिचय है।
(श्रीमद् राजचन्द्र)
भव-भ्रमण का भय लगे तो अरे रे! जिसे चौरासी के अवतार का डर नहीं है, वह जीव आत्मा को समझने की प्रीति नहीं करता। अरे ! मुझे अब चौरासी के अवतार का परिभ्रमण किस प्रकार मिटे? - ऐसा अन्दर में भवभ्रमण का भय लगे तो आत्मा की दरकार करके सच्ची समझ का प्रयत्न करे।
(पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी)
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