Book Title: Samyag Darshan Part 02
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-2
को स्वीकार नहीं करता है, वह भगवान सर्वज्ञ के प्रवचन को नहीं जानता है।
छह द्रव्य, भगवान सर्वज्ञदेव के प्रवचन का सार हैं। ऐसे प्रवचन के सार को जो जीव जानता है, वह दु:ख से परिमुक्त होता है परन्तु किस प्रकार जानता है ? कि अर्थतः अर्थीरूप से जानता है।
'अर्थतः अर्थी' - ऐसा कहकर आचार्यदेव ने पात्र श्रोता की विशेष योग्यता बतलायी है। पात्र श्रोता कैसा है ? आत्मा का अर्थी है, आत्मा के हित का वाँछक है। किसी भी प्रकार मुझ आत्मा का हित हो - अन्तर में ऐसा गरजवान हुआ है। याचक हुआ है अर्थात् हित के लिये विनय से दीनपने अर्पित हो गया है, सेवक हुआ है। जिनसे आत्मप्राप्ति हो – ऐसे सन्तों के प्रति सेवकभाव से वर्तता है और शास्त्र जानने में उसे दूसरा कोई हेतु नहीं है; एकमात्र आत्महित की प्राप्ति का ही हेतु है। शास्त्र पढ़कर मैं दूसरों से अधिक हो जाऊँ अथवा मान-प्रतिष्ठा प्राप्त कर लूँ अथवा दूसरों को समझा दूं- ऐसे आशय से जो शास्त्र नहीं पढ़ता, परन्तु शास्त्र पढ़कर, छह द्रव्यों का स्वरूप समझकर, मैं अपनी आत्मा का हित किस प्रकार साध लूँ और मेरा आत्मा दुःख से कैसे छूटे? इस प्रकार आत्मा का शोधक होकर जानता है।
वह आत्मा का अर्थी जीव, शास्त्र के अर्थ को किस प्रकार जानता है ? कि अर्थतः जानता है अर्थात् अकेले शब्द से नहीं जानता, अपितु उसके वाच्यरूप पदार्थ को अनुलक्ष्य करके जानता है, भावश्रुतपूर्वक जानता है; अकेले शाब्दिक ज्ञान में सन्तुष्ट नहीं हो जाता, अपितु अन्तर में शोधक होकर वाच्यभूत वस्तु को शोधता
___Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.