Book Title: Samvedna Upnishadonu Sarvangin Adhyayan
Author(s): Kashyap Mansukhlal Trivedi
Publisher: R R Lalan Collage
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પ્રકરણ-૧૧
ઉપસંહાર
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ricानों (1 .... महर गगा ब्रह्मचर्यमध्युपासाभ्युवस ॥
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- अव्यक्ती
(२) सापयोगी पृथबालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः ।
एकमप्यस्थितः सम्यगुभयोविन्दतं फलम् ॥
- गोशः अ. ५-४,
श्रक्षावांस्वभते ज्ञान तत्पर; संवतंन्द्रियः ।
ज्ञानं लठभ्या परां शान्तिमांचरेणाधिाति ॥
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__- गीतः ४-३३. (४) श्री मर्षि सEि - यो। ५२ तमो . २०-२१ (५) डॉ. रानाडे, उपनिषद् दर्शन का रचनात्मक सर्वेक्षण पृ. २९.४ (6) द्रव्यार्थमठबस्त्रार्थ यः प्रतिष्ठार्थमेव वा । सन्यसेंदुमय भ्रष्ट: स मुक्ति माप्तुम्हते ॥
- मैत्रयो उप.२ २३
(स) कमन्द्रियाणि संयम्य य अस्ते पनसा स्मरन् ।
इन्द्रियान्निदात्मा, मिथ्याचार: स उच्यते ।।
-- गीता अ. ३.६
संन्पासो २-२२.
10
गीता अ. १५.७
...शाश्वतोऽजः स्वतन्त्र: स्वं महिनि तिष्ठत्यनेनेदं शरीर चेतनवत्प्रतिष्ठापित 'प्रचोदयिता...]
-मैत्रा. २.४
छा. उप. ६.४.२-४
પ૩ર
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