Book Title: Sammadi Sambhavo
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 243
________________ 18 लच्छीइराम-सुमिणे परिदंसदे तं गड्ढे घिदं सरकरं परिपूरदे सो। झाणे पहुं णयदि सत्तदिवं च पच्छा चिन्तामणि व्व रदण व्व हु पासणाहं॥18॥ लच्छीराम स्वप्न में देखता जो उसी के अनुसार वह गड्ढे में घृत शक्कर भरवाता, फिर ध्यान करता सात दिन। इसके पश्चात् चिन्तामणि रत्न की तरह पार्श्वप्रभु के दर्शन करता है। औरंगावादपवेसो 19 सो सुव्वदो पयडिभद्द सुठाण-ठाणे खुल्लेक्कदिक्ख सुहरिस्समदी हु मादू। अज्जीइ सुव्वदमदीचरणं ठवेज्ज किच्चा विहार-कचणेर-उरंगवादे19॥ संघ सर्वतोभद्र एवं समवशरण जिनालय के उत्तम स्थान में एक क्षुल्लिका दीक्षा के नामकरण से सुहर्षमती माता जी कहलाई। यहीं पर सुव्रतमती के चरण स्थापित कराए गये। वहाँ कचनेर से विहार करता हुआ संघ औरंगाबाद में आता है। 20 संगीद बज्झ लहरे हि सहेव संघो सो भत्ति मंडल समूह णमो हुकारे। साहस्स माणुस समूह सुसाविगेहिं कित्तीइ जम्म दिवसे तध मण्णदे वि॥20॥ संघ णमोकार भक्तिमंडल की संगीतबद्ध लहरियों के साथ हजारों श्रावकों एवं विकाओं सहित औरगाबाद में प्रवेश करता। यहाँ 9 जनवरी को महावीरकीर्ति का जन्म दिवस मनाया जाता है। 21 साहू सुवंद विमदो तवसिं च दंसे थाणक्कवासि सुद अक्खय सोरहो वि। राजिंद-कासलि जणा वि पबुद्ध बुद्धा सिद्धंतसागर मुणी वि सदा हु अग्गी॥21॥ सम्मदि सम्भवो :: 241

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