Book Title: Sammadi Sambhavo
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 258
________________ छक्कम्म-सिक्खग-इमो पढमेसरो वि आदी-विधाउ-उसहो वसहस्स चिंही॥7॥ चैत्रवदी दूज (2 मार्च 2010) को जन समुदाय के मध्य जय जयकार के साथ मूर्ति स्थापित की गयी। इसके पश्चात् 9वीं चैत्र वदी के दिन आदि प्रभु की जन्म : जयन्ती मनाई गयी। वे छहकर्म के शिक्षक प्रथमेश्वर आदि विधाता, ऋषम, वृषभ (नंदी) चिंह वाले हैं। कल्लाणगो हवदि अस्स अणंतगस्स इक्कीस पंचविस मेइ खणे हु अत्थ। अग्गी सुणील मुणिराय पइट्ठएज्जा आणा गुरुस्स महदी परिराजदे हु॥8॥ अनंतवीर्य का कल्याण महोत्सव 21 से 25 मई 2010 में कुंजवन में हुआ। आचार्य सुनीलसागर गुरु आज्ञा पूर्वक इसे सानंद संपन्न कराते हैं। मेहा तुमं च चरणं गुरुदेव-सूरि पक्खालएज्ज अवि विज्जुसदा वि दीव। सुज्जो समो तुह तवी गुरु गारवं च दाएज्ज णिच्च रदणत्तय-वड्डणं च॥9॥ मेघ गुरुदेव के चरण पखार लो, विजलियों विशेष आरती उतार लो। ये सूर्य सम तपते गुरु गौरव लहे, रत्नत्रय वर्धन नित्य गुरु कहे।। ये कविता गुरु को विनयांजलि देते हुए आचार्य सुनील सागरजी ने कही। 10 कुंजेवणे हु मुणि संघ-सहे जणा वि घोसेज्ज लोग जय सम्मदि-सम्मदी तुं। लुंचे कचे वय-गदे वि गहीर सूरी सामुद्दए व्व लहुबिंदु व तुल्ल अम्हे ॥10॥ कुंजवन में मुनिसंघ के साथ जनता भी 'जय सन्मति, जय सन्मति' कहने लगी। वयोवृद्ध आचार्य का केशलोंच गंभीरतापूर्ण रहा। सच में तुम समुद्र के समान और हम लघु बिन्दु के समान हैं। 256 :: सम्मदि सम्भवो

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