Book Title: Sammadi Sambhavo
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 241
________________ यहाँ कूप है या नहीं पूछने पर किसान कहता है, कुआ है, पर जल नहीं, सूखा ही रहता। वह अशीष प्राप्त गुरुवर का पुनः देखता तब उसमें नीर ही नीर है, जल से पूर्ण कूप देखकर प्रसन्न होता है। 12 सीदे दिसंबर-खणे मिरजे वि गामे लोणस्स णीर-महुरो गुरु वास जाए। सव्वे पिवेति महुरं जल-णंद भावा अच्छेरगो इगखणे महुरो जलं च॥12॥ दिसंबर के समय शीतकाल में मिरजगाव संघ पहुँचा। यहाँ ठहरा। लोगों ने कहा यहाँ के कुए में जल खारा है। पर गुरु के प्रवास पर मधुर हो गया। सभी पीते है मधुर जल को। वे आनंदित आश्चर्य को प्राप्त हुए। एक क्षण पूर्व खारा था, अब मीठा हो गया। 13 अग्गे चरेदि सिरि-संघ तधेव जाणे पल्लट्टदे तध इगा बहुरत्त रत्ता। आणागुरुस्स णरिएल जलं पिवेज्जा तत्तो हु दिण्णचदु पच्छ वरा हवेदि॥13॥ संघ आगे चलता है उन्हीं के सामने यान पलट जाता है, एक महिला लहुलुहान हो जाती। तब आज्ञा गुरु की लेकर उसे नारियल पानी पिलाया जाता है, उससे वह चार दिन के पश्चात् स्वस्थ हो जाती हैं। 14 बाहुल्ल-केस-धरणिंद-पपस्स-सूरी भासेदि भो! तुहउ लंब-कचा कधं च। खोरो ण मिल्लदि ण मं समयो वि किंचि सव्वे इमे हु तुह पस्स कुणेहि इच्छं॥14॥ बड़े बड़े वालों बाले धरणेन्द्र से आचार्य पूछते-भो! तुम्हारे इतने बड़े बाल कैसे? वह कहता, कभी क्षोरकर्मी नहीं मिलता और कभी समय नहीं मिलता । तब गुरुवर मुनियों की तरफ इशारा करके कहते इन्हें देखो, यदि इच्छा हो तो बिना नाई के बाल कट सकते हैं। सम्मदि सम्भवो :: 239

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