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विषय विचार परेशान करें तब... (खं-2-४)
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दिखाई देते हैं हमें। स्त्री के कपड़े पहनने अच्छे लगेंगे? विषय चाहिए तो स्त्री के कपड़े लाने ही पड़ेंगे न फिर?
प्रश्नकर्ता : आपने शुरू से ही हमारा बहुत ध्यान रखा है।
दादाश्री : वह तो रखना ही पड़ेगा न! अब ध्यान रखने जैसा नहीं है, अब चलता रहेगा। इसलिए अब दूसरे को पकड़ते हैं। जो कच्चा है, उसे पकड़ते हैं।
प्रश्नकर्ता : लेकिन अभी भी बहुत ज़रूरत है। अब सबकुछ जल्दी से खाली हो जाए, ऐसा कुछ कर दीजिए।
दादाश्री : ऐसा है न, जल्दी खाली होने का मतलब इस देह का खत्म होना।
प्रश्नकर्ता : यानी कि यह जो सारा विषय और कपट का जो माल भरा है, वह सारा माल खाली करना है।
दादाश्री : ओहोहो! विषय का! विषय का खाली करना है, क्या? लेकिन उसके टाइम पर खाली करोगे तब भी हर्ज क्या है लेकिन?
प्रश्नकर्ता : वह चुभता है अंदर।
दादाश्री : वह माल फूटे तो उसमें तुझे क्या परेशानी है? चुभेगा तभी जब तू उस तरफ सो जाएगा। इस ओर सो जाएँ, अपने अंदर सो जाएँ तो? 'स्त्री' के पलंग पर सो जाएगा, तब चुभेगा न! 'अपने' पलंग पर सो जाएँ तो फिर हमें क्या चुभेगा? बहुत चुभता है? तो फिर शादी कर ले।
प्रश्नकर्ता : नहीं, ऐसा नहीं। ये जो गाँठे फूटती हैं, वे चुभती
दादाश्री : उसमें क्या चुभना? 'देखते' रहना है। उसमें चुभता क्या है? 'हम' 'वहाँ' बैठेंगे तभी चुभेगा।