Book Title: Samaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 429
________________ ३७६ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) प्रश्नकर्ता: कुरुक्षेत्र से भी बड़ा ? दादाश्री : हाँ, उसके लिए अकेले में पूछना चाहिए। दोपाँच लोग हों तो हर्ज नहीं, लेकिन पूछने से सब हल मिलेगा । प्रश्नकर्ता : आपसे पूछा था कि ज्ञान का अपच का मतलब क्या है? तब आपने कहा था कि यह बात तो युवा लड़कों के लिए है। उन्हें ज्ञान का अपच हो जाता है, तो वह क्या है ? दादाश्री : जवान लोगों को ज्ञानजागृति पर आवरण आते देर नहीं लगती। वह जो आवरण आता है, वही ज्ञान का अजीर्ण है। जबकि बड़ों को ऐसे आवरण नहीं आते। उन्हें जवानी के जोश से आवरण आ जाता है, वह स्वाभाविक कहलाता है। हम उन्हें ऐसा नहीं कह सकते कि तुम ऐसे क्यों कर रहे हो ? क्योंकि हम जानते हैं कि नौ बजे पानी आता है, तो फिर उस समय पानी आए बिना रहेगा ही नहीं न! फिर बारह बजे पानी आएगा ? नहीं। नहीं आता। वैसा ही जोश जवानी में होता है। वह जोश आया कि तुरंत ही अंदर घोर अंधेरा कर देता है। उस तरह का घोर अंधकार आप बड़ी उम्रवालों को नहीं होता। आपको जागृति रहती है I यह तो उपयोग नहीं है इसलिए गलतियाँ हो जाती हैं । उपयोग रखें तो गलती नहीं होगी। जैसे कि पैसे कमाते समय नुकसान नहीं हो और हर एक चीज़ में फायदा होना ही चाहिए, इसलिए हर एक चीज़ का भाव - ताव देखकर बेचते हैं, वर्ना अगर गड़बड़ कर दें तो फिर दुकान में नुकसान ही होगा । उसी तरह हर एक में शुद्ध उपयोग रखकर काम लेना पड़ेगा । वहाँ व्यापार में वैसी जागृति रहती है और यहाँ क्यों नहीं रही ? यह बड़ा व्यापार है और फिर यह तो खुद का व्यापार है। जबकि वह तो पराया, चंद्रेश का व्यापार है। उससे 'हमें' लेना भी नहीं है और देना भी नहीं । यह तो खुद का व्यापार, उसमें कभी भी उपयोग के

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