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न हो असार, पुद्गलसार (खं-2-१३)
जोखिम, हृष्ट-पुष्ट शरीर के
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यह पढ़, इसमें क्या लिखा है ?
प्रश्नकर्ता : मैथुन संज्ञा चार प्रकार से जागृत होती है।
१) वेद मोहनीय के उदय से ।
२) हड्डी, मांस, खून वगैरह से शरीर पुष्ट होने से ।
३) स्त्री को देखने से ।
४) स्त्री का चिंतवन करने से।
वेद मोहनीय उदय से, यानी ?
दादाश्री : स्त्री को स्त्री वेद होता है, पुरुष को पुरुष वेद होता है, वह वेद जब उदय में आता है, तब वह विचलित कर देता है।
खास सावधानी कहाँ पर रखनी है कि 'खून और मांस से शरीर हृष्ट-पुष्ट होने से', वहाँ सावधान रहना है। तुम कहते हो कि हमें डिस्चार्ज हो जाता है तो उसमें यह कारण बाधक है एक ओर श्रीखंड, पकोड़े, जलेबियाँ वगैरह खाते हो और फिर वीर्य को रोके रखना चाहते हो, वह कैसे हो सकेगा ? शरीर को तो पोषण के लिए ही आहार देना चाहिए और वह भी भारी मालमलीदेवाला भोजन नहीं । इस किताब में स्पष्ट लिखा हुआ है । इसीलिए तो मैंने यह किताब तुम्हें पढ़ने के लिए दी है। कई जैन साधु आयंबिल (जैनों में किया जानेवाला व्रत, जब भोजन में एक ही प्रकार का धान खाया जाता है) करते हैं। आयंबिल में कोई भी एक ही चीज़ खाते हैं हमेशा के लिए । पानी में रोटी डूबोकर खाते हैं, तब जाकर वे साधु ब्रह्मचर्य पालन कर सकते हैं। सर्दी के दिनों में ठंड में शरीर कस जाता है, गर्मी में धूप में कस जाता है। हमें तो ठंड-वंड सहन ही नहीं करनी है न! रजाई लाकर ओढ़ दी कि चला ! इसीलिए सावधान रहना । यदि तुम्हें ब्रह्मचर्य