Book Title: Samar Sinh
Author(s): Gyansundar
Publisher: Jain Aetihasik Gyanbhandar

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Page 244
________________ प्रतिष्टा के पश्चात् । २०७ देसलशाह पुनः शत्रुजय में उत्सवपूर्वक संघ से मिले और पुनः यात्रा की। ___शत्रुजय की पुनः यात्रा कर संघपति देसलशाह गुरु सहित पाटलापुर पधारे । पहले जब जरासंध से युद्ध करते समय श्रीकृष्ण की सारी सेना रणक्षेत्र में विकल और विह्वल हो गई थी उस समय श्रीनेमीनाथ भगवान्ने शंख की जबरदस्त उद्घोषणा कर एक लाख राजाओं को जीता थी। उस स्थानपर विष्णु कृष्णने नेमीजिन को स्थापित किया था। उन श्रीनेमीजिनेश्वर को पूज कर वे सब संखेश्वरपुर नगर में पहुँचे । संखेश्वरपुर के भूषण श्रीपार्श्वजिन हैं । जो प्राणत् देवलोक के स्वामी से दीर्घकाल तक पूजे गये थे। जो पार्श्वप्रभु १४ लाख वर्ष तक प्रथम कल्प में देवलोक के स्वामी से पूजे गये थे और उतने ही लाख वर्ष तक चन्द्र, सूर्येन्द्र और पाताल के तक्षक नागपति से भी पूजे गये थे, नेमीनाथ स्वामी के आदेशानुसार वासुदेवने पाताल से श्रीपार्श्वनाथ को प्रकट कर प्रतिवासुदेव के युद्ध के समय के पीड़ित सैनिकों को शांति पहुँचाई थी और जिन के स्नात्र के जल के छीटों से सर्व रोगी निरोग हुऐ थे ऐसे पार्श्वनाथ प्रभु को १ शङ्कः श्रीनेमिनाथेन, यजरासिन्धुविग्रहे; नृपलक्षजयोऽभूरि तस्मात् शश्वरं पुरम् ।। नामिनंदनोद्धार प्रबंध प्रस्ताव ५ बाँ, कोक ९३४ २ पातालात् प्रतिवासुदेव समरे धीवासुदेवेन यः सैन्यैर्मारिभदितेते विलसति श्रीनेमिनाथासंज्ञा ।

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