Book Title: Samar Sinh
Author(s): Gyansundar
Publisher: Jain Aetihasik Gyanbhandar

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Page 285
________________ ૨૨૮ समरसिंह गामागरपुरवोलिंतो वलिउ सेतुजि संपत्तो । आदिपुरीपाजह चडिऊ ए। वंदिऊ ए वंदिऊ ए वंदिऊ ए मरुदेविपूतो ॥२॥ अगरि कपूरिहिं चंदणिहि मृगमदि मंडणु कीय । कसमीराकुंकुमरसिहि अंगिहिं ए अंगिहिं ए अंगो अंगि रचीय । जाइबउलविहसेवत्रिय पूजिसु नाभिमल्हारो । मणुयजनमुफलु पामिऊ ए । भरियऊ ए भरियऊ ए भरियऊ सुकृतभंडारो ॥३॥ सोहग ऊपरि मंजरिय बीजी य सेत्रुजि उधारि । ........ठिय ए समरऊ ए समरऊ ए समरु आविउ गुजरात । पिपलालीय लोलियणे पुरे राजलोक रंजेई । छडे पयाणे संचरए राणपुरे राणपुरे राणपुरे पहुचेई ॥ ४ ॥ वढवाणि न विलंबु किउ जिमिउ करीरे गामि । मंडलि होईउ पाडलए। नमियऊ ए नमियऊ ए नमियऊ नेमि सु जीवतसामि । संखेसर सफलीयकरणु पूजिउ पासजिणिदो। सहजुसाहु तहिं हरषियउ ए। देषिऊ ए देषिऊ ए देषि फणिमणिवृंदो ॥ ५॥ डुंगरि डरिउ न खोहि खलिउ गलिउ न गिरवरि गयो । संघु सुहेला आणिउ ए। संघपती ए संघपती ए संघपतिपरिहि अपुरो ॥ ६ ॥

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