Book Title: Samar Sinh
Author(s): Gyansundar
Publisher: Jain Aetihasik Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 276
________________ समरा रास । भांडू आव्या भाउघणउ भवियायण पूजइ । जिम जिम फलही पूजिजए तिम तिम कलि धूजइ । खेला नाचइ नवलपरे घाघरिरवु झमकइ । अचरिउ देषिउ धामियह कह चितु न चमकइ ॥ ६ ॥ पालीताणइ नयरि संघु फलही य वधावइ । बालचंद्रमुनि वेगि पवरु कमठाउ करावइ । कि कप्पूरिहि घडाय देह षीरसायरसारिहि ॥ ७ ॥ सामियमूरति प्रकट थिय कृप करिउ संसारे । मागी दीन्ह वधावणी य मनि हरषु न माए । . देसलऊवह चरित्रि सहू रलियातु थाए ॥ ८ ॥ पञ्चमी भाषा संघु बहुभत्तिहिं पाटि बयसारिउ । लगनु गणिउ गणधरिहिं विचारिउ । पोसहसाल खमासण देयए । सूरिसेयंबर मुनि सवि संमहे ए ॥१॥ घरि बयसवि करी के वि मन्नाविया । के वि धम्मिय हरसि धम्मिय धाइया । बहुदिसि पाठविय कुंकुमपत्रिया । संघु मिलइ बहुमली य सजाइया ॥२॥ सुहगुरुसिधसुरिवासि अहिसिंचिउ । संघपति कन्पतरु अमिय जिम सिंचिउ ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294