Book Title: Samajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad

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Page 70
________________ श्री ऋषभचरण जैन नंगे बदन रहते हैं। इन्टर या थर्ड में होंगे। यह उनका फोटो से व्यक्ति हैं। हजारीलाल जी तो तुम्हारे साथ हैं ही / उन्हें बहुत सत्कार पूर्वक लाना / सन् 1924-25 की बात है। हरदोई में ब्रह्मचारी जी आने वाले थे बाबूजी (बै० चम्पतराय जी) ने उन्हें बुलाया था हमारी और मंशी हजारीलाल जी की ड्यटी उन्हें स्टेशन पर "रिसीव" करने की थी। बाबूजी के उपरोक्त शब्दों में ही हमने ब्रह्मचारी जी का प्रथम परिचय पाया / कुछ ही दिन पहिले ब्रह्मचारी जी समाज सुधार संबंधी घोषणा कर चुके थे। और इस घोषणा ने जैन-समाज के ऊपर वजपात का सा कार्य किया था / "जैन मित्र" और "दिगम्बर जैन" में ब्रह्मचारी जी के लेख हमने पढ़े थे / बिलकुल एक बालक का सा कौतूहल मुझे ब्रह्मचारी जी में मिला, अपना यह कौतूहल मैंने बाबूजी पर प्रकट भी कर दिया था तथा उनसे वादा भी ले लिया था कि वे एक दिन ब्रह्मचारी जी के दर्शन मुझे करायेंगे। यह उस कहे हुए की पूर्ति थी / . "जैन समाज" के छः - सात नाम बाबू जी के मुख से अक्सर निकलते थे। ये नाम थे, ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद जी, बाब देवेन्द्रकुमार आरा वाले, बाबू रतनलाल (वकील), लाला राजेन्द्रकुमार (विजनौर बाले) बाबू अजितप्रसाद (एडवोकेट) लखनऊ, बाब कामता प्रसाद (एटा) और बाबू मूलचन्द किशनदास कापड़िया / ब्रह्मचारी जी का नाम बास्तव में सबसे अधिक वार उनकी जवान पर आता था / आज ये मेरे जीवन के अमिट भाग बन गये हैं, जिन्हें मैं कभी भुलाए नहीं भूल सकता, और इनमें से ब्रह्मचारी जी का संस्मरण लिखने का अवसर पाकर मुझे अत्यन्त आनन्द प्राप्त हुआ है / बिलकुल ठीक उपरोक्त नख-शिख के ब्रह्मचारी जी थे / मेरी प्रकृति में आरम्भ से ही एक खास तरह की संयुक्त प्रांतीय ऐंठ है। मैंने अपने जीवन में बाब जी के अतिरिक्त और किसी के पैर नहीं

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