Book Title: Samajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad

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Page 68
________________ के बड़े पक्के थे / "बैन मित्र" के संपादक थे, उसे पाक्षिक से साप्ताहिक उन्होंने ही बनाया। वे स्याद्वाद महाविद्यालय के अधिष्ठाता थे / उनके संरक्षण-संवर्धन में उनका बड़ा योगदान रहा है / वह जहाँ भी जाते थे, आहार करने से पहले आहारदाता से अपने छात्रों के लिए भोजन मांग लेते थे / विद्यालय से उन्हें बड़ा अनुराग था / जब वह सामाजिक कारणों से विद्यालय से पृथक हो गए तब भी वह उस अनुराग से मुक्त नहीं हो सके और विद्यालय में बराबर आते रहे / वह जब भी आते थे मुझसे यह कहना नहीं भूलते थे कि किसी भी लोभ में पड़कर मैं विद्यालय न छोडूं / बम्बई के सेठ माणिकचन्द्र जी के वह दाहिना हाथ थे। उनके साथ उन्होंने बहुत कार्य किया और समाज के कर्मठ कार्यकर्ता ही नहीं नेता बने / उन्होंने अपने जीवन में समाज और धर्म की जो सेवा की उसका दूसरा उदाहरण आज नहीं मिलता। पं० नाथूलाल शास्त्री जो महान व्यक्ति होते हैं वे बज से भी कठोर होते हैं और फूल से भी अधिक कोमल होते हैं / ब्र० शीतलप्रसाद जी ऐसे ही महान पुरुष थे। उनके 77 ग्रंथों में से 45 ग्रंथ अध्यात्म पर हैं, सभी नथ विवेक से लिख गए हैं / हर चातुर्मास में एक ग्रंथ छपता था / बे जैनमित्र, जैन गजट तथा वीर के संपादक रहे / जितने जैन बोडिंग आज खुले हुए है व सर सेठ हुकमचन्द्र पारमार्थिक संस्था को दान मिला है, उसके पीछे पू० ब्र० शीतलप्रसाद जी की प्रेरणा थी। श्री अक्षय कुमार महापुरुष 50 वर्ष आगे की बात सोचते हैं और यही कारण है कि ब्र० जी ने 50 वर्ष बाद जो स्थिति आने वाली थी उसको देखते हुए समाज का मार्ग दर्शन किया। इसी कारण वे आज समाज के प्रेरणा स्रोत हैं / हमारा कर्तव्य है कि उनके मार्ग पर चलते हुए समस्या का समाधान खोजें। सेठ मूलचन्द्र किशनदास कापड़िया जो कुछ सेवा हम अपने पत्रों या प्रेस द्वारा कर सके हैं उसका धेय स्व० ब्रह्मचारी जी को ही है / 61

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