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72...सज्जन तप प्रवेशिका
वर्तमान अवसर्पिणी काल खण्ड के भरत क्षेत्र (जिस भूलोक पर हम निवास कर रहे हैं) में चौबीस तीर्थङ्कर हुए हैं। प्रत्येक तीर्थङ्कर के पाँच कल्याणक होने से चौबीस तीर्थङ्करों के कुल 120 कल्याणक होते हैं। भगवान महावीर के गर्भापहरण का एक कल्याणक गिनने पर 121 कल्याणक होते हैं।
आचार्य जिनप्रभसूरि ने विधिमार्गप्रपा (पृ. 25 ) में 121 कल्याणक का उल्लेख किया है, परन्तु खरतरगच्छाचार्य श्री वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में 120 कल्याणकों की आराधना बतायी गयी है। इस तप में 'गर्भ अपहरण' को अलग से नहीं लिया गया है। कौन से महीने में कितने कल्याणक ?
सग तेरस दस चोइस,14 पनरस' तेरस य सत्तरस" दस छ । नव चउ' ति कत्तियाइस, जिण कल्लाणाई जह संखं ।।
विधिमार्गप्रपा, पृ. 25 कार्तिक मास में सात, मृगशिर में तेरह, पौष में दस, माघ में चौदह, फाल्गुन में पन्द्रह, चैत्र में तेरह, वैशाख में सत्रह, ज्येष्ठ में दस, आषाढ़ में छ:, श्रावण में नौ, भाद्रपद में चार और आश्विन में तीन इस प्रकार बारह मास में एक सौ इक्कीस कल्याणक होते हैं। कितने तप के बराबर कितने कल्याणक ?
आचार्य वर्धमानसूरि के अनुसार अमुक संख्या में किये गये उपवास आदि के द्वारा अमुक कल्याणक तप की परिपूर्ति हो जाती है। उसका कोष्ठक इस प्रकार है
एग उववासो दो अंबिलाइं, निविआई तेरस हवंति । एगासणाई चुलसी, कल्याण तवस्स परिमाणं ।।
आचारदिनकर, पृ. 340 1 उपवास = 4 कल्याणक 2 आयम्बिल = 6 कल्याणक 13 नीवि 84 एकासना = 84 कल्याणक कुल 120 कल्याणकों का यह तप परिमाण है। आचारदिनकर (पृ. 339) के अनुसार जिस दिन तीर्थङ्कर प्रभु का गर्भावतार
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