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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...167
उद्यापन - इस तप के पूर्ण होने पर मूलनायक परमात्मा की स्नात्र पूजा करें, ज्ञान की भक्ति करें, परमात्मा के आगे 148-148 संख्या में मोदक, फल आदि चढ़ायें, गुरु को आहार आदि बहरायें तथा साधर्मी भक्ति एवं संघ पूजा करें।
• जीतव्यवहार के अनुसार इस तप में उपवास के दिन उत्तर प्रकृतियों के क्रम से निम्न जाप आदि करेंजाप
|सा. |खमा. कायो.| माला 1. | ज्ञानावरणी कर्म की उत्तर प्रकृतियों में 5 दिन |
श्री अनन्तज्ञान संयुताय सिद्धाय नमः 5 | 5 | 5 | 20 | दर्शनावरणी कर्म में 9 दिन
श्री अनन्तदर्शन संयुताय सिद्धाय नमः वेदनीय कर्म में 2 दिन श्री अव्याबाधगुणसंयुताय सिद्धाय नमः 2 | 2 मोहनीय कर्म में 28 दिन श्री अनन्तचारित्रगुण संयुताय सिद्धाय नमः आयुष्य कर्म में 4 दिन श्री अक्षयस्थितिगुण संयुताय सिद्धाय नमः | 4 | नामकर्म में 93 दिन श्री अरूपी निरंजनगुण संयुताय सिद्धाय नमः 93 | 93 | 93 गोत्रकर्म में 2 दिन श्री अगुरुलघुगुण संयुताय सिद्धाय नमः | 2 अन्तराय कर्म में 5 दिन श्री अनन्तवीर्यगुण संयुताय सिद्धाय नमः | 5
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फल की आकांक्षा से किये जाने वाले तप
आचार्य हरिभद्रसूरि (पंचाशक प्रकरण 19/25) कहते हैं कि जिससे कषाय का निरोध हो, ब्रह्मचर्य का पालन हो, जिनेन्द्र देव की पूजा-स्तुति हो और