Book Title: Sahajta Hindi
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 161
________________ १२२ सहजता दादाश्री : वह तो, जब वह व्यवहार सभी तरह से छूट जाएगा तब आपका काम होगा । प्रश्नकर्ता : अब अप्रयत्न दशा में पहुँचने के लिए फाइल में से किस तरह से निकलना है ? दादाश्री : वह तुझे पता चलता है न, वह कैसे ? यह व्यवहार तुझसे नहीं चिपका है, तू व्यवहार से चिपका है । हम तो सावधान करते हैं कि भाई, ये सभी चीजें नुकसानदायक हैं। आपको जो चाहिए उसमें ये सभी चीज़ें बाधक हैं, इतना ही कहते हैं । फिर यदि उसे अच्छी लगती हो तो वह करता ही रहता है । उसमें कहाँ मेरी मनाही है ? प्रश्नकर्ता : कभी न कभी तो छूटना पड़ेगा ही न, उसके बगैर तो कोई चारा ही नहीं है I दादाश्री : हाँ, लेकिन फिर ज्ञान को समझ लेना है। जिन्हें जल्दी हो उन्हें अपरिग्रही बन जाना चाहिए। हाँ, वर्ना पकौड़े खाते-खाते जाना। दोनों में से एक पक्का होना चाहिए । प्रश्नकर्ता : अब जिसे पूर्णता प्राप्त कर लेनी है, उसकी अपरिग्रही दशा होनी चाहिए। अभी जो पूरा व्यवहार बाकी है, उसका कैसे निकाल (निपटारा करेंगे? उसमें अपरिग्रही दशा कैसे लानी है ? दादाश्री : वह तो, तेरा तुझे खुद को ही पता चल जाएगा । प्रश्नकर्ता : उसकी चाबी दीजिए न । दादाश्री : नहीं, लेकिन यह सब उत्पन्न किसने किया ? तूने किया ? तू पढ़ाई करता था, तो नौकरी में कैसे आया ? तूने क्या किया ? वह तो, व्यवहार को चिपका है और फिर वापस कहता है कि मैं करता हूँ। यह सब चिपक गया है। प्रश्नकर्ता : अगर खुद व्यवहार से चिपका है तो फिर जिस समय छोड़ना हो उस समय व्यवहार को छोड़ सकते हैं क्या ? उसे किस तरह से छोड़ सकते हैं?

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