Book Title: Sahajta Hindi
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 182
________________ 'सहज' को देखने से, प्रकट होती है सहजता १४३ ज्ञानी की अनोखी साहजिकता प्रश्नकर्ता: ज्ञानी के पास पड़े रहो, ऐसा जो कहा है अर्थात् फिर यही सब देखना है न ? दादाश्री : हाँ, पूरे दिन उनकी सहजता देखने मिलती है। कैसी सहजता! कैसी निर्मल सहजता है ! कितने निर्मल भाव हैं ! अहंकार बगैर की दशा कैसी होती है, बुद्धि बगैर की दशा कैसी होती है, वह सब देखने मिलता है। अहंकार बगैर की दशा और बुद्धि बगैर की दशा, वे दोनों दशाएँ तो देखने को मिलती ही नहीं न ! हर जगह तो बुद्धिशाली ! वे ऐसे बात करेंगे न, तो भी नाक चढ़ी हुई होती है ! सहज कुछ भी नहीं रहता । फोटो खींचे तब भी नाक चढ़ी होती है ! जबकि फोटोग्राफर हमें देखें न, तो अगर उसे फोटो नहीं लेनी हो तो भी ले लेगा कि ये फोटो लेने जैसे (व्यक्ति) हैं! वे सहजता ढूँढते हैं । यदि चढ़ी हुई नाक दिखे तो फोटो सहज नहीं आता । इसलिए जब हम किसी के साथ जाते हैं न, किसी के समूह में, वहाँ भी हमारा मुँह ऐसा चढ़ा हुआ नहीं दिखाई देता, तो वे लोग भी समझ जाते हैं कि नहीं, देयर इज़ समथिंग (कुछ तो है)! लोगों को देखना अच्छी तरह से आता है। खुद का रखना नहीं आता। खुद का चेहरा वीतराग रखना नहीं आता लेकिन सामने वाले का चेहरा वीतराग है, उसे देखना बहुत अच्छे से आता है, बहुत बारीकी पूर्वक । मुँह चढ़ा हुआ अच्छा नहीं दिखाई देता, नहीं ? फोटो देखने पर भी पता चल जाता है कि यह मुँह चढ़ा हुआ है इसीलिए इन फोटोग्राफरों को असहज हुए व्यक्ति की फोटो लेना (अनुकूल) नहीं आता। वे सहजता देखते हैं। जबकि हमारे लिए तो खुश ही हैं। जैसे घूमेंगे वैसे वे खुश, क्योंकि सहज हैं। वे बहुत खुश हो जाते हैं । उन्हें सहजता चाहिए और वह यहाँ सहज ही मिल जाती है। जबकि औरों को तो कहना पड़ता है, कि ज़रा सीधा बैठना । फिर भी फोटो खींचवाते समय लोग असहजता में रहते हैं इसलिए उनकी फोटो सुंदर नहीं दिखती । सहज की फोटो सुंदर दिखती है। अच्छा कौन सा दिखाई देता है ? सहज ! और उनमें (असहज लोगों में) अहंकार अंदर ही रहता है।

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